दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि कमाने में सक्षम होना अलग रह रही पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है, क्योंकि कई बार पत्नियां केवल परिवार के लिए अपना करियर कुर्बान कर देती हैं। जस्टिस सुब्रमण्यन प्रसाद (Justice Subramonium Prasad) ने याचिकाकर्ता की पत्नी को 33,000 रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
अदालत ने याचिकाकर्ता कर्नल की यह दलील खारिज कर दी कि उसकी पत्नी जीवन यापन करने में सक्षम है, क्योंकि वह पूर्व में टीचर रह चुकी है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की यह दलील भी खारिज कर दी कि सेना का अधिकारी होने के नाते गुजारा भत्ता दावा पर फैसला आर्म्ड ट्रिब्यूनल द्वारा आर्मी आर्डर के अनुरूप करना होगा।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, फैमिली कोर्ट (Family Court) ने सेना के एक कर्नल को अपनी पत्नी को 33,000 रुपये हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। पति ने फैमिली कोर्ट के इसी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। पति का कहना था कि उसकी पत्नी पहले टीचर रही है, इसलिए वो कमाने में सक्षम है और उसे गुजारा भत्ता देने का आधार नहीं बनता।
इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि कमाने में सक्षम होना अलग रह रही पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने से मना करने का आधार नहीं हो सकता है, क्योंकि कई बार पत्नियां सिर्फ परिवार की खातिर अपने करियर की कुर्बानी दे देती हैं।
2002 में हुई थी दोनों की शादी
याचिकाकर्ता की शादी 22 दिसंबर 2002 को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत सिख रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। विवाह के बाद दंपत्ति के 10 और 7 साल के दो बच्चे हैं। पति इंडियन आर्मी में कर्नल है, जिस वजह से उसकी देश के अलग-अलग राज्यों की सीमाओं पर तैनाती रहती है।
इसके बावजूद शादी के बाद दंपति 2015 तक एक साथ खुशी-खुशी रह रहे थे, लेकिन अचानक याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी सेना में उसके एक सीनियर अधिकारी के साथ में व्यभिचारी रिश्ते (Adulterous Relationship) में थी, जो विवाहित है और परिवार के करीबी भी था।
याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया है कि जुलाई 2015 में उसे पता चला कि उसकी पत्नी उसके सीनियर और पारिवारिक मित्र के साथ एक प्रेमपूर्ण संबंध में है। याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि उसने प्रतिवादी के फोन की जांच की और उसके व्हाट्सएप पर पाया कि कुछ चैट कामुक प्रकृति (lascivious in nature) के थे। साथ ही याचिकाकर्ता ने सीनियर और पत्नी के बीच बातचीत रिकॉर्ड भी किया था।
पति ने इसी आधार पर अंतरिम गुजारा भत्ते देने का विरोध किया था। याचिका में यह भी कहा गया था कि पत्नी ने कई बार माफी मांगने की कोशिश की लेकिन उसे याचिकाकर्ता ने स्वीकार नहीं किया और उसके द्वारा किए गए सुलह के सभी प्रयास विफल हो गए। इसके बाद पत्नी ने पति से अलग-अलग राहत का दावा करते हुए उसके खिलाफ कई मामले दर्ज कराए।
“आर्मी के आदेश धारा 125 के प्रावधानों से बढ़कर नहीं हो सकते”
अदालत ने पति की इस दलील को खारिज करते हुए 21 दिसंबर के अपने आदेश में कहा कि आर्मी के आदेश Cr.P.C की धारा 125 के प्रावधानों से बढ़कर नहीं हो सकते है। कोर्टा ने साफ कहा कि ये नहीं कहा जा सकता कि आर्मी के जवान सिर्फ सैन्य ऑर्डर के तहत आते हैं और धारा 125 उनपर लागू नहीं होती।
जस्टिस प्रसाद ने कहा कि Cr.P.C की धारा 125 का मकसद उन महिलाओं की वित्तीय पीड़ा (Financial Sufferings) को कम करना है जो किसी कारणवश तलाक ले लेती है, ताकी उन्हें मिलने वाले गुजारा भत्ता से वह अपने और अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य दे पाए।
कोर्ट ने पत्नी को दी गई राशि को कम किया
मामले में अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट ने हालांकि पत्नी को दी गई राशि को इस आधार पर कम कर दिया कि बच्चे अब उसके साथ नहीं रह रहे थे। अदालत ने आदेश दिया कि पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में 01.01.2017 से हर महीने 14,615 रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है। अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से पता चलता है कि बच्चे 2015 से याचिकाकर्ता के साथ हैं और इसलिए प्रतिवादी दो शेयरों का हकदार नहीं है, इसलिए प्रतिवादी केवल एक शेयर का हकदार है।
एडल्ट्री का बाद में होगा फैसला
पति ने हाई कोर्ट के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि उसकी पत्नी के संबंध दूसरे आर्मी अधिकारी के साथ थे, इसलिए वो उसे गुजारा भत्ता नहीं दे सकता। वहीं, पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति ने हमेशा उसे और बच्चों को नजरअंदाज किया और जब उसने अलग रहने का फैसला लिया तो एडल्ट्री का आरोप लगा दिया है।
पत्नी ने कहा कि पति अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता। पत्नी की दलील पर हाई कोर्ट ने कहा कि एडल्ट्री का मामला है या नहीं, इस पर सबूतों के आधार पर ही फैसला लिया जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत इस समय सिर्फ गुजारा भत्ते की रकम तय कर रही है, एडल्ट्री रिलेशनशिप के मामले पर फैसला बाद में होगा।
अदालत ने आगे कहा कि एडल्ट्री के मुद्दे पर दोनों पक्षों द्वारा सबूत पेश किए जाने के बाद ही फैसला किया जा सकता है और अंतरिम गुजारा भत्ता तय करते समय वह इसमें जाने के लिए इच्छुक नहीं है। हालांकि, साथ ही हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि बाद में एडल्ट्री के आरोप साबित होते हैं, तो निचली अदालत राशि को उलट सकती है।
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READ ORDER | Issue Of Adultery To Be Decided Later, Not During Grant Of Interim Maintenance To Wife: Delhi High Court
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