बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में भिवंडी के एक पुनर्वास केंद्र से गुटखा की लत से पीड़ित एक व्यक्ति को मुक्त कर दिया, जहां उसे उसकी पत्नी की शिकायत पर अनावश्यक रूप से हिरासत में रखा गया था। वैवाहिक विवादों को देखते हुए पत्नी ने उसे मानसिक इलाज के लिए अमूल्य प्रेम फाउंडेशन में भर्ती कराया था। पति की तरफ से दायर याचिका में कहा गया कि उन्हें बिना किसी कारण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया और किसी को उनसे मिलने की इजाजत नहीं दी गई।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) के मुताबिक, जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस गौरी गोडसे ने व्यक्ति के चचेरे भाई की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पति के UAE स्थित भाई ने 16 जुलाई को अपने चचेरे भाई को उनके बारे में जानने के लिए एक ईमेल भेजा था, क्योंकि उन्हें तत्काल हर्निया सर्जरी की आवश्यकता थी। उनसे उन्हें उचित कदम उठाने का भी अनुरोध किया था। इस दौरान चचेरे भाई को पता चला कि व्यक्ति के वैवाहिक विवादों को देखते हुए पत्नी ने उसे मानसिक इलाज के लिए अमूल्य प्रेम फाउंडेशन में भर्ती कराया है। इसके बाद भाई ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनकी याचिका में कहा गया कि उन्हें बिना किसी कारण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया और किसी को उनसे मिलने की इजाजत नहीं दी गई।
हाई कोर्ट
4 अगस्त को हाई कोर्ट ने भिवंडी पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी को केंद्र में उस व्यक्ति के साथ-साथ उसके मालिक पॉल फर्नांडीस का बयान दर्ज करने का निर्देश दिया। 18 अगस्त को उस व्यक्ति को जजों के चेंबर में पेश किया गया। फर्नांडिस ने कहा कि उन्हें हर्निया सर्जरी की जरूरत नहीं है। जजों ने कहा कि बयानों से पता चलता है कि उसे “उसकी पत्नी के आदेश पर जबरन उक्त पुनर्वास केंद्र में रखा गया था”। इस दौरान उन्होंने उस आदमी से बातचीत की।
उसने उन्हें बताया कि वह गुटखा का आदी था, लेकिन केंद्र में रखे जाने के बाद से उसने इसका सेवन नहीं किया था। कोर्ट ने कहा, “उसने हमें यह भी बताया कि वह पुनर्वास केंद्र में नहीं रहना चाहता है और वह याचिकाकर्ता (चचेरे भाई) के साथ जाना चाहता था। उसने कहा कि उसकी पत्नी के साथ विवाद के कारण उसने उसे पुनर्वास केंद्र में रखा था।” चचेरे भाई ने कहा कि वह उसकी पूरी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है और उसे अपने घर ले जाएगा।
फर्नांडिस और एक ट्रस्टी मनीषा पाटिल ने कहा कि पत्नी के निर्देश पर किसी को भी उनसे मिलने की अनुमति नहीं दे रहे थे। वह उसे केंद्र में रखने के लिए उन्हें भुगतान कर रही थी। कोर्ट ने कहा, “इस प्रकार, उपरोक्त पर विचार करते हुए यह स्पष्ट है कि उन्हें उनकी पत्नी के आदेश पर उक्त पुनर्वास केंद्र में अनावश्यक रूप से हिरासत में रखा गया था।”
पाटिल ने कहा कि उन्हें यह साबित करने के लिए मेडिकल कागजात नहीं दिखाए गए कि उस व्यक्ति को केंद्र में भर्ती कराया जाना आवश्यक था। इसलिए जजों ने उसे अपने चचेरे भाई के साथ जाने की अनुमति दे दी। पुनर्वास केंद्र के प्रतिनिधियों ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अब से वे कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी भी व्यक्ति को इस तरह से हिरासत में नहीं लेंगे।
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