सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक ऐसे उम्मीदवार की नियुक्ति का निर्देश दिया, जिसकी उम्मीदवारी इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि उस पर IPC की धारा 498A के तहत मुकदमा चलाया गया था।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रमोद सिंह किरार ने साल 2013 में कांस्टेबल के पद के लिए अप्लाई किया था और कांस्टेबल के रूप में नियुक्त होने के योग्य पाया गया था। पुलिस वेरिफिकेशन फॉर्म में ही उन्होंने घोषणा की कि उन पर पहले IPC की धारा 498A के तहत अपराध का मुकदमा चलाया गया था और बाद में उन्हें उक्त मामले में बरी कर दिया गया था। बाद में किरार की उम्मीदवारी इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि वह इस आपराधिक मामले में शामिल थे।
हाई कोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (डिवीजन बेंच) ने इस अस्वीकृति को यह कहते हुए बरकरार रखा कि यदि उम्मीदवार आपराधिक मामले में शामिल पाया जाता है, यहां तक कि बरी होने के मामले में और/या यहां तक कि ऐसे मामले में भी जहां कर्मचारी ने निष्कर्ष की सच्चाई से घोषणा की है आपराधिक मामले में एम्प्लॉयर को अभी भी पूर्ववृत्त पर विचार करने का अधिकार है, उसे उम्मीदवार नियुक्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि जिस अपराध के लिए शख्स पर मुकदमा चलाया गया था, अंततः उन्हें बरी कर दिया गया, वह वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ था, जो अंततः अदालत के बाहर समझौते में समाप्त हो गया। यह भी देखा गया कि इस मामले में किसी भी तथ्य को छुपाया नहीं गया। पीठ ने कहा कि परिस्थितियों के तहत और मामले के अजीबोगरीब तथ्यों में अपीलकर्ता को केवल उपरोक्त आधार पर नियुक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता था कि उस पर IPC की धारा 498A के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया गया था और वह भी साल 2001 में हुए कथित अपराध के लिए, जिसके लिए उन्हें साल 2006 में बरी भी किया गया था, समझौता (पति और पत्नी के बीच) हो सकता है। इसलिए अदालत ने 4 सप्ताह के भीतर कांस्टेबल के पद पर उनकी नियुक्ति का निर्देश दिया।
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