केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जब प्रथम दृष्टया किसी पुरुष और महिला के बीच लंबे समय तक साथ रहने का सबूत मिलता है, तो कथित तौर पर ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए DNA टेस्ट की याचिका को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पुरुष और महिला के बीच सहवास के सबूत होने के बावजूद DNA टेस्ट की अनुमति नहीं दी गई तो बच्चे के साथ-साथ मां पर भी सामाजिक कलंक लगेगा।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच के मुताबिक, पुरुष (याचिकाकर्ता) और महिला को प्यार हो गया और वे रिश्ते में आ गए। महिला ने दावा किया कि वे पति-पत्नी की तरह साथ रहते थे। बताया जाता है कि महिला के गर्भवती होने के बाद याचिकाकर्ता ने उसे वापस मुंबई स्थित उसके घर भेज दिया था। इसके अलावा, उस पर आरोप है कि उसने फोन पर वादा किया था कि वह उससे शादी करेगा। महिला ने आगे दावा किया कि याचिकाकर्ता ने उसे खर्च और इलाज के लिए पैसे भेजे। यहां तक कि उसने जोर देकर कहा कि वह अपनी डिलीवरी के लिए कोल्लम आए, जहां वह उस समय रुका था ताकि वह अस्पताल में उसकी देखभाल कर सके।
महिला ने अदालत को बताया कि हालांकि, जब वह बाद में कोल्लम आई, तो उसे पता चला कि याचिकाकर्ता ने किसी अन्य महिला से शादी कर ली है। जब उसने फोन पर उससे बात की, तो उसने उससे वादा किया कि वह उसकी और बच्चे की देखभाल करेगा। इस दौरान उसने उसे अपने रिश्ते के बारे में किसी और को न बताने की धमकी दी। महिला ने आगे दावा किया कि उनके मतभेदों के बावजूद, वे एक साथ रहना जारी रखा। याचिकाकर्ता ने महिला और उनकी बच्ची के सभी खर्चों का ख्याल रखा।
याचिकाकर्ता अपने पैसे से महिला के नाम पर एक फ्लैट खरीदने और अपनी बेटी की शिक्षा एवं शादी के लिए उसके नाम पर एक बीमा पॉलिसी लेने पर भी सहमत हुआ। हालांकि, वह अपनी बात रखने में विफल रहा और महिला ने अनुपालन की मांग की। इसके बाद, 2013 में याचिकाकर्ता द्वारा रखरखाव के लिए पैसे का भुगतान रोक दिया गया। महिला ने शुरू में केरल महिला आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज की और बाद में प्रतिवादी को DNA जांच कराने का आदेश दिया, लेकिन याचिकाकर्ता के असहयोग के कारण ऐसा नहीं हो पाया।
फैमिली कोर्ट
इसके बाद, जब महिला ने एर्नाकुलम में फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो याचिकाकर्ता ने वैवाहिक संबंध के साथ-साथ महिला के साथ सहवास से भी इनकार कर दिया। साथ ही उसने पितृत्व से भी इनकार कर दिया। इसके बाद फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता को DNA टेस्ट कराने का निर्देश दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता पुरुष हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि महिला एक स्वच्छंद जीवन जी रही थी और पैसे ऐंठने के लिए उसे अपमानित करने की कोशिश कर रही थी।
हाई कोर्ट
अदालत ने सबूतों और उदाहरणों पर गौर करने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता और महिला के बीच लंबे समय तक साथ रहने के सबूत हैं। जस्टिस मैरी जोसेफ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पुरुष की पत्नी होने का दावा करने वाली महिला ने प्रथम दृष्टया मामला बनाया है कि दोनों एक साथ रहते थे। दूसरी ओर, यह पाया गया कि पुरुष अपने दावे का समर्थन करने के लिए प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में पूरी तरह से विफल रहा कि महिला ने अनैतिक जीवन जीया।
कोर्ट ने कहा कि इसलिए, अदालत की राय है कि वह अपने बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए DNA टेस्ट की महिला की प्रार्थना को खारिज नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह के आदेश को अस्वीकार कर दिया जाता है तो इसका असर जनता के बीच नाबालिग बच्ची के साथ दुर्व्यवहार करने जैसा होगा। निस्संदेह इससे बच्चे के साथ-साथ मां पर भी क्रमशः ‘कमीने’ और ‘अनैतिक’ होने का सामाजिक कलंक लगेगा।
महिला द्वारा अपने और बच्चे के लिए मांगे गए भरण-पोषण के विवादित दावों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह सच है कि एक नाजायज बच्चा भी भरण-पोषण भत्ते के लिए पात्र है, लेकिन, उसके लिए पितृत्व स्थापित करना एक बहुत ही प्रासंगिक पहलू है ताकि अदालत प्रतिवादी से भुगतान का निर्देश दे सके, जिस पर उसका पिता होने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि इसलिए, बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए याचिकाकर्ता के DNA टेस्ट के आदेश को खारिज नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया और फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
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