सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जब कपल की शादी बचाने की कोई गुंजाइश नहीं बची हो तो पति-पत्नी को साथ रखना दोनों पक्षों के लिए क्रूरता है। कोर्ट ने कहा कि किसी मामले के दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों में निरंतर कड़वाहट, मृत भावनाएं और लंबे अलगाव को एक मामले के रूप में माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने शादी को रद्द के लिए अपने आर्टिकल 142 के अधिकार का उपयोग किया। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अपरिवर्तनीय टूटने के बावजूद विवाह जारी रखना दोनों पक्षों के लिए क्रूर है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, पति ने नवंबर, 2012 में फैमिली कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अलग रह रही पत्नी को वैवाहिक जिम्मेदारी का पालन करने का आदेश देने की मांग की थी। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने पति की इस याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। बाद में पति ने भी क्रूरता के आधार पर फैमिली कोर्ट में अर्जी दाखिल कर तलाक को मंजूरी देने की मांग की। फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। हालांकि, हाईकोर्ट ने भी उसकी याचिका को रद्द कर दिया। इसके बाद उन्होंने शादी को भंग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब विवाह अपूरणीय रूप से टूट (टूटने के कगार) जाता है तो तलाक ही एकमात्र समाधान होता है। पीठ ने पति की ओर से दाखिल अपील पर विचार करते हुए कहा कि यह विवाह के अपूरणीय टूटने का एक उत्कृष्ट मामला है। शीर्ष अदालत ने तलाक को लेकर हाल ही में पारित अपने दो फैसले का हवाला दिया। इसमें एक फैसले में कहा गया था कि शादियां जो एक तरह से टूट चुकी है, को क्रूरता के आधार पर खत्म किया जा सकता है। दूसरे फैसले में कहा गया था कि शादी के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक को मंजूरी देने के लिए आर्टिकल-142 का इस्तेमाल किया जा सकता है।
शीर्ष कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भले ही बच्चों के खातिर, यदि पति-पत्नी दोनों अपने मतभेदों को दूर कर सकें और एकसाथ रहने का फैसला कर सकें, तो इससे अधिक संतुष्टि हमें किसी और चीज से नहीं मिलेगी। अदालत ने कहा कि दोनों पक्ष अपने कठोर रवैये के कारण समझौते का पालन करने में विफल रहे हैं और हमें बड़े अफसोस के साथ यह कहने को मजबूर होना पड़ा है कि अब दोनों एकसाथ नहीं रह सकते।
शीर्ष अदालत ने कहा कि 12 साल अलग रहने के बाद उन सभी भावनाओं को खत्म करने के लिए काफी लंबी अवधि है जो शायद दोनों के मन में कभी एक-दूसरे के लिए रही होगी। पीठ ने कहा कि इसलिए हम हाईकोर्ट के समान आशावादी दृष्टिकोण नहीं अपना सकते हैं, जो अभी भी मानता है कि दोनों के बीच वैवाहिक बंधन खत्म नहीं हुआ है या दोनों अभी भी अपने रिश्ते को नया जीवन दे सकते हैं। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता पति अपनी बेटी की स्कूली शिक्षा का खर्च वहन करने के लिए जिम्मेदार है, ऐसे में उसे 20 लाख रुपये जमा कराने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कपल की शादी को रद्द कर दिया।
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