दिल्ली के साकेत फैमिली कोर्ट (Saket Family Court in Delhi) ने 2 सितंबर को एक मां को उसके नाबालिग बेटे द्वारा मासिक गुजारा भत्ता की मांग को लेकर दायर याचिका के संबंध में नोटिस जारी किया। मां राष्ट्रीय राजधानी में स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में नर्स हैं। जबकि नाबालिग याचिकाकर्ता अपने पिता के साथ रहता है, जो एक जूनियर वकील हैं।
क्या है पूरा मामला?
न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, फैमिली कोर्ट के जज प्रीतम सिंह ने नाबालिग की उस याचिका पर उसकी मां को नोटिस जारी किया है, जिसमें भरण-पोषण के तौर पर प्रति माह 60,000 रुपये की मांग गई है। मामले को आगे की सुनवाई के लिए 9 दिसंबर, 2023 को सूचीबद्ध किया गया है। नाबालिग के पिता ने वकील आबिद अहमद और मोबिना खान के माध्यम से अपने बेटे के लिए याचिका दायर की है।
बताया गया कि याचिकाकर्ता 14 साल का है और एक निजी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता है। उनका जन्म दिसंबर 2008 में हुआ था। आरोप है कि मां न केवल नाबालिग बच्चे की उपेक्षा करने की दोषी है। बल्कि जब बच्चा केवल 40 दिन का था, तब उसे खुली सड़क पर फेंककर उसे छोड़ देने की भी दोषी है।
याचिका में कहा गया है कि पिछले डेढ़ दशक से अधिक समय से न तो प्रतिवादी ने बच्चे की देखभाल की है और न ही बच्चे के कल्याण के लिए सुलह के कोई प्रयास किए हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि उनके पिता प्रति माह 11,000 रुपये की स्कूल फीस और खाने, कपड़े, पढ़ाई के सामान आदि पर 40,000 रुपये का भुगतान कर रहे हैं। वह एक लाख रुपये का बीमा प्रीमियम भी भरता है।
याचिका में आगे कहा गया कि प्रतिवादी द्वारा दहेज से संबंधित झूठा और तुच्छ मामला दायर करने के कारण याचिकाकर्ता के पिता मानसिक रूप से परेशान थे और काम करने में असमर्थ थे। वह सारा समय छोटे बच्चे और बूढ़े माता-पिता की देखभाल में बिताते थे। इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता अपनी आजीविका नहीं चला सकते। याचिकाकर्ता के पिता पर उसके बूढ़े माता-पिता का भी दायित्व है।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के पिता पिछले 14 सालों से अकेले ही नाबालिग बच्चे के पालन-पोषण की देखभाल कर रहे हैं। जबकि प्रतिवादी की मां द्वारा कोई मदद नहीं की जा रही है। यह भी कहा गया है कि पिता एक जूनियर वकील हैं। जबकि मां एम्स में सीनियर नर्स हैं और प्रति माह दो लाख रुपये कमाती हैं। याचिकाकर्ता की मां ने पहले ही दहेज से संबंधित एक मामला दायर किया है, जो दिल्ली की तीस हजारी अदालत में लंबित है।
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