सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों में पक्षों के बीच आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है, अगर उन्होंने वैवाहिक विवादों को वास्तव में सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया लिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट वैवाहिक विवादों में शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर सकते हैं, यदि अदालत इस बात से संतुष्ट है कि पक्षों ने वास्तव में उनके बीच विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। दोनों ने बाद में आपसी सहमति से तलाक ले लिया था। 2011 में महिला द्वारा दायर आपराधिक मामले में क्रूरता, शरारत, अपमान और आपराधिक धमकी के साथ-साथ दहेज उत्पीड़न के आरोप शामिल थे। हालांकि चार्जशीट में दहेज एक्ट के आरोपों को हटा दिया गया था।
हालांकि बाद में पति-पत्नी के बीच समझौता हो गया। इसके बाद, उन्होंने आपसी सहमति से तलाक की डिक्री प्राप्त की और महिला अपने पूर्व पति के खिलाफ दायर मामले को छोड़ने के लिए तैयार हो गई। हालांकि, कर्नाटक हाई कोर्ट ने व्यक्ति द्वारा उसके और उसकी पूर्व पत्नी के बीच समझौते के बावजूद मामले को खत्म करने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया। इसके चलते उस व्यक्ति (अपीलकर्ता) ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता और उसकी पूर्व पत्नी पहले ही मामले को खत्म करने के लिए एक समझौते पर आ गए हैं और पत्नी ने पुनर्विवाह भी किया है। पीठ ने कहा कि इसलिए, अपीलकर्ता के खिलाफ अभियोजन जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में आपराधिक कार्यवाही जारी रखना, अपीलकर्ता को परेशान करने के बराबर होगा, जो देश के विभिन्न हिस्सों में सेवा करने के लिए सीमा सुरक्षा बल का अधिकारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता सीमा सुरक्षा बल में एक अधिकारी है और उसे देश के विभिन्न हिस्सों में सेवा करनी है। इस तरह उसे प्रताड़ित किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने जितेंद्र रघुवंशी और अन्य बनाम बबीता रघुवंशी और अन्य, (2013) 4 एससीसी 58 और बी.एस. जोशी और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, (2003) 4 SCC 675, मामलों पर भरोसा जताया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों से संबंधित अपराधों के मामलों में अगर कोर्ट संतुष्ट है कि पक्षों ने वास्तव में विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है, तो न्याय के उद्देश्य को हासिल करने के उद्देश्य से भारत के संविधान के आर्टिकल 142 या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए अपील को स्वीकार कर लिया।
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