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Home हिंदी कानून क्या कहता है

दिल्ली हाई कोर्ट ने Indian Kanoon पोर्टल को रेप के मामले में बरी हुए शख्स का नाम छुपाने का दिया निर्देश

Team VFMI by Team VFMI
June 8, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

PIL in Delhi High Court seeks mandatory FIRs against husbands accused of violence against wives instead of forcing mediation

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दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में ऑनलाइन पोर्टल ‘इंडियन कानून (Indian Kanoon)’ को एक मामले के फैसले में उस व्यक्ति का नाम छिपा देने का निर्देश दिया, जिसे बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया गया है। अदालत ने 29 वर्षीय इस व्यक्ति की अर्जी पर यह अंतरिम आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के 2018 के फैसले में उसका नाम छिपा देने की गुजारिश की थी।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि ट्रायल कोर्ट के फैसले के अनुसार, अभियोजिका की गवाही को भरोसेमंद नहीं माना गया था और अभियोजन पक्ष के अन्य गवाहों की गवाही के साथ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर पुष्टि नहीं की गई थी, जिसके कारण उसे बरी कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर फैसले की मौजूदगी के कारण उन्हें “बेहद” नुकसान उठाना पड़ा है। उसने कहा कि इस मामले में बरी हो जाने के बाद भी उसे इंटरनेट पर फैसले के उपलब्ध होने से काफी कुछ झेलना पड़ा है तथा वेब पर महज तलाश करने भर से उसका नाम आ जाता है। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत दिवान ने कहा कि निचली अदालत के फैसले में नाम नजर आने की वजह से उनके मुवक्किल की निजी एवं पारिवारिक जिंदगी प्रभावित हो रही है।

हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत का फैसला खंगालने पर पता चलता है कि याचिकाकर्ता के विरूद्ध संदेह से परे मामला नहीं बनता है तथा निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नहीं है। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने 29 मई को जारी एक आदेश में कहा, “ऐसी स्थिति में, चूंकि फैसला इंडियन कानून वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध है तथा ‘गूगल सर्च’ समेत किसी भी ‘वेब सर्च’ पर वह सुलभ हो जाता है तो अगली सुनवाई की तारीख तक यह निर्देश दिया जाता है कि इंडियन कानून पोर्टल पर याचिकाकर्ता का नाम छिपा दिया जाए। असल में, यदि उक्त फैसला वेब पर या गुगल पर ढूढने से नजर आता है तो नाम नहीं नजर नहीं आए।” हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि भारतीय कानूनों के सर्च इंजन “इंडियन कानून” फैसले में एक सप्ताह में याचिकाकर्ता का नाम छिपा दे।

कोर्ट ने 5 अक्टूबर को मामले को सूचीबद्ध करते हुए कहा कि चूंकि निर्णय इंडियन कानून वेबसाइट पर खुले तौर पर उपलब्ध है और गूगल सर्च सहित किसी भी वेब सर्ज में उपलब्ध है, इसलिए सुनवाई की अगली तारीख तक यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता का नाम इंडियन कानून पोर्टल पर छिपा दिया जाए। वास्तव में, यदि उक्त निर्णय किसी सर्च या Google सर्च में दिखाई देता है तो नाम भी दिखाई नहीं देगा।

अदालत ने वेब पोर्टल को यह भी निर्देश दिया कि वह किसी व्यक्ति की निजी जानकारी इंटरनेट से हटाने के अधिकार के साथ-साथ हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निर्णयों और आदेशों सहित इसी तरह के मामलों में नामों को छिपाने के संबंध में अपनी नीति बताते हुए एक हलफनामा दर्ज करे। जस्टिस सिंह ने भारत सरकार सहित प्रतिवादियों को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया।

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