एक अमेरिकी अदालत द्वारा एक भारतीय कपल को जारी किए गए एकतरफा तलाक के आदेश को शून्य घोषित करते हुए कहा कि भारत में शादी होने के बाद से अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने उस महिला को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है, जो विश्व बैंक में कार्यरत अपने पति द्वारा कथित प्रताड़ना के कारण अमेरिका से भारत भाग आई थी।
क्या है पूरा मामला?
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कपल की शादी 21 जून, 2004 को तंजावुर में हुई थी। दूल्हे और उसके माता-पिता ने कथित तौर पर शादी में हंगामा किया था, क्योंकि उसके माता-पिता उसे 300 सोने के आभूषणों के बदले 110 सोने के आभूषण दिए थे। एक कार जिस पर सहमति बनी थी, वह भी नहीं दी गई। दोनों 3 जुलाई, 2004 को अमेरिका के लिए रवाना हुए, जहां कथित तौर पर उस व्यक्ति और उसके रिश्तेदारों द्वारा उसके साथ बुरा व्यवहार किया गया। यातना सहन करने में असमर्थ महिला 10 अप्रैल, 2005 को भारत लौट आई। मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै खंडपीठ और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों के दौर के बाद उसने वर्तमान दीवानी मुकदमा दायर किया।
कोर्ट का आदेश
जस्टिस जी चंद्रशेखरन ने हाल ही में महिला माहेश्वरी द्वारा दायर एक याचिका पर आदेश पारित किया, जो पेशे से डॉक्टर हैं। जज ने तलाक के आदेश और डिक्री को वैध नहीं माना, क्योंकि वर्जीनिया के सर्किट कोर्ट के पास उस कपल को तलाक देने का अधिकार नहीं है, जिनकी शादी भारत में हुई थी।
फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा, “… पहली वादी (पत्नी) के खिलाफ और पहले प्रतिवादी (पति) के पक्ष में अलेक्जेंड्रिया, वर्जीनिया शहर के लिए सर्किट कोर्ट द्वारा दी गई तलाक की अंतिम डिक्री उसके लिए बाध्यकारी नहीं है और इसे लागू नहीं किया जा सकता है।”
अदालत ने पति रमेश रमैया को निर्देश दिया कि वह उसे और उसके परिवार को ‘मानसिक तनाव, पीड़ा और झुंझलाहट’ देने के लिए हर्जाने के रूप में 25 लाख रुपये का भुगतान करे। महेश्वरी ने रमेश द्वारा 2 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग करते हुए दीवानी मुकदमा दायर किया था।
जस्टिस चंद्रशेखरन ने महेश्वरी की आभूषण और अन्य कीमती सामान वापस करने की याचिका को खारिज कर दिया, क्योंकि वह यह साबित करने में विफल रही कि कीमती सामान उसके पति के पास था। उनके खिलाफ आपराधिक मामला अभी भी लंबित है।
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