दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि एक पत्नी द्वारा पति के परिवार के सदस्यों के खिलाफ बलात्कार और दहेज उत्पीड़न के फर्जी आरोप लगाना अत्यधिक क्रूरता है, जिसके लिए कोई माफी नहीं हो सकती है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ ऐसी झूठी शिकायतें मानसिक क्रूरता है। साथ ही अदालत ने कहा कि पति इस आधार पर तलाक का दावा कर सकता है।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच के मुताबिक, अदालत एक महिला द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मानसिक क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देने के 11 नवंबर, 2021 के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। कपल ने 24 नवंबर, 2012 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की थी। लेकिन कई सनसनीखेज आरोप लगाते हुए पत्नी 19 फरवरी, 2014 को वैवाहिक घर छोड़ गई।
बाद में पुलिस को दी शिकायत में उसने आरोप लगाया कि पति ने उसे कभी भी अपनी कानूनी रूप से विवाहित फाइल का दर्जा नहीं दिया। 17 फरवरी 2014 को उसके जीजा ने उसके साथ बलात्कार किया। उसने आगे कहा कि पति और उसका परिवार उसे विकलांग होने और पर्याप्त दहेज न लाने के लिए ताने मारते थे।
हाई कोर्ट
अदालत ने पाया कि पति और उसके भाई के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A (महिला के प्रति क्रूरता) और 376 (बलात्कार) के तहत मामला दर्ज किया गया था। लेकिन उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पत्नी ने एक माफी पत्र लिखा था जिसमें उसने कहा था कि कोई उत्पीड़न नहीं हुआ था जैसा कि उसने दावा किया था।
अदालत ने आगे कहा कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि शादी संपन्न नहीं हुई थी, जैसा कि आरोप लगाया गया है। बल्कि, हाई कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि अपीलकर्ता (पत्नी) अपने पति के साथ रहने के लिए अनिच्छुक थी। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि एक पति या पत्नी को दूसरे के साथ से वंचित करना क्रूरता का चरम कृत्य है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी वैवाहिक रिश्ते का आधार सहवास और वैवाहिक संबंध है।
अदालत ने आगे कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि प्रतिवादी के परिवार के सदस्यों के खिलाफ न केवल दहेज उत्पीड़न बल्कि रेप जैसे गंभीर आरोप लगाना, जो झूठा पाया गया है, अत्यधिक क्रूरता का कार्य है जिसके लिए कोई माफी नहीं हो सकती। पीठ ने कहा कि अगर ऐसा है पाया गया कि ऐसे आरोप अनुचित और बिना आधार के थे, पति यह आरोप लगा सकता है कि उसके साथ मानसिक क्रूरता की गई है। कोर्ट ने कहा कि इस आधार पर तलाक का दावा कर सकता है।
कोर्ट ने बताई क्रूरता की परिभाषा
कोर्ट ने कहा कि किसी जोड़े को एक-दूसरे के साथ से वंचित किया जाना यह साबित करता है कि शादी कायम नहीं रह सकती है। वैवाहिक रिश्ते से इस तरह वंचित करना अत्यधिक क्रूरता का कार्य है। क्रूरता के मुद्दे पर गहराई से विचार करते हुए अदालत ने माना कि क्रूरता क्या होगी, इसे वर्गीकृत करने या निर्णायक रूप से परिभाषित करने का कोई सीधा तरीका नहीं है। न्यायालय ने रेखांकित किया कि आचरण की प्रकृति के बजाय उसका प्रभाव क्रूरता की शिकायत का आकलन करने में सबसे महत्वपूर्ण है। अदालत ने आगे कहा कि कपल लगभग 9 सालों से अलग रह रहे थे। कोर्ट ने कहा कि यह अत्यंत मानसिक क्रूरता का उदाहरण है, जिसमें वैवाहिक रिश्ते को तत्काल तोड़ने की मांग की गई है। इसलिए, अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और पत्नी की अपील खारिज कर दी।
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