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Home हिंदी कानून क्या कहता है

जब पत्नी पति के एडल्ट्री को साबित करने के लिए सबूत जुटाने में मदद मांगती है, तो फैमिली कोर्ट को कदम उठाना चाहिए, क्योंकि ये निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है: HC

Team VFMI by Team VFMI
May 11, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Husband Making Friends At Work Not Cruelty, Merely Drinking Alcohol Daily Doesn't Make Him Alcoholic When No Untoward Incident: Delhi High Court

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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान माना कि एक पत्नी फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक याचिका में पति के खिलाफ एडल्ट्री के आरोप को साबित करने के लिए सबूत या दस्तावेजों को जुटाने की तलाश कर सकती है और यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 ( section 14 of Family Courts Act) के अनुरूप होगा। दरअसल, धारा 14 में कहा गया है कि फैमिली कोर्ट किसी भी ऐसी रिपोर्ट, बयान, दस्तावेजों, सूचना या किसी अन्य मामले को सबूत के रूप में प्राप्त कर सकती है, जो उसे लगता है कि यह अदालत को विवाद से निपटने के लिए सहायता कर सकता है, भले ही वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत अन्यथा प्रासंगिक या स्वीकार्य होगा या नहीं।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ के मुताबिक, कपल की शादी 1998 में हुई थी और एक बच्ची का जन्म 2000 में हुआ था। हालांकि, पिछले साल पत्नी ने फैमिली कोर्ट के सामने एक याचिका दायर की थी, जिसमें पति के खिलाफ एडल्ट्री और क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की गई थी। उसने आगे आरोप लगाया कि पति का इस एडल्ट्री रिश्ते से एक नाजायज बच्चा भी है। उसका कहना था कि जब तक कि फैमिली कोर्ट द्वारा निर्देशित जानकारी को रिकॉर्ड पर नहीं लाया जाता है, तब तक वह अपने पति के खिलाफ आरोप साबित करने में सक्षम नहीं हो सकती है।

हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित दो आदेशों को चुनौती देते हुए पति की तरफ से दायर याचिका को खारिज करते उपरोक्त टिप्पणी की। फैमिली कोर्ट ने पत्नी के उन आवेदनों को अनुमति दी थी, जिसमें उस होटल के CCTV पुटेज को सुरक्षित रखने की मांग की गई थी, जहां उसका पति कथित रूप से एक महिला के साथ एडल्ट्री में लिप्त था और होटल के कमरे के रिकॉर्ड को समन किया गया था।

हाईकोर्ट के समक्ष पति के वकील ने एडल्ट्री और क्रूरता के आरोपों का विरोध करते हुए कहा कि वह केवल अपनी एक दोस्त से मिला था, जो अपनी बेटी के साथ उस समय संयोग से उसी होटल में रूकी थी। उसकी तरफ से यह भी तर्क दिया गया कि फैमिली कोर्ट ने फिशिंग जांच और पूछताछ का निर्देश नहीं दिया था ताकि पत्नी के लिए सबूत एकत्र किया जा सके। पति ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा मांगी गई जानकारी का प्रकटीकरण उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा और इससे उस महिला और उसके नाबालिग बच्चे की भी निजता का उल्लंघन होगा।

हाई कोर्ट

जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि जब एक पत्नी ऐसे सबूतों को जुटाने के लिए अदालत की मदद लेती है, जो उसके पति की ओर से एडल्ट्री को साबित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेंगे, तो अदालत को कदम उठाना चाहिए। यह फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 के अनुरूप होगा, जो अदालत को एक ऐसे सबूत पर विचार करने के लिए एक मार्ग देता है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य या प्रासंगिक नहीं हो सकता है।

पति को राहत देने से इनकार करते हुए जस्टिस पल्ली ने कहा कि पत्नी ने न केवल विभिन्न तस्वीरों को रिकॉर्ड पर रखा है, जिसमें पति को महिला मित्र के साथ ‘करीब निकटता’ में दिखाया गया है, बल्कि कमरे और तारीखों का डिटेल्स भी प्रदान किया है, जिस-जिस दिन उसके अनुसार उसका पति उस महिला के साथ रहा था। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी याचिकाकर्ता की पूर्व पत्नी है, जिसके पास स्पष्ट रूप से अपने पति के एडल्ट्री के कृत्यों में लिप्त होने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।

अदालत ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 14 का सहारा लेकर, वह केवल उन सबूतों को जुटाने की कोशिश कर रही है, जो वह यथोचित मानती है कि वह एडल्ट्री के उसके आरोप को साबित करेंगे, जिसका इसकी प्रकृति के कारण केवल परिस्थितियों से ही अनुमान लगाया जा सकता है। इसके अलावा, यह माना गया कि पत्नी पति के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला बनाने में सक्षम रही है और यह कि वह जो जानकारी मांग रही है, वह एडल्ट्री के आरोप को साबित करने के लिए प्रासंगिक होगी।

यह देखते हुए कि अदालत को पत्नी और पति के परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा, हाई कोर्ट ने कहा कि मैं प्रतिवादी की याचिका को स्वीकार करने के लिए इच्छुक हूं। याचिकाकर्ता का दावा पूरी तरह से निजता के अधिकार पर आधारित है, जैसा कि के.एस. पुटुस्वामी (सुप्रा) और जोसेफ शाइन (सुप्रा) में माना गया है, जो एक पूर्ण अधिकार नहीं है। दूसरी ओर, प्रतिवादी की अपील न केवल नैतिकता पर आधारित है, बल्कि हिंदू मैरिज एक्ट और फैमिली कोर्ट्स एक्ट के तहत दिए गए विशिष्ट अधिकारों पर भी आधारित है।

हाई कोर्ट ने कहा कि इसलिए, मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि प्रतिवादी का अधिकार प्रबल होना चाहिए और इसलिए, उपरोक्त आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा पारित किए गए आदेश केवल रिकॉर्ड को पेश करने से संबंधित हैं और इस सवाल पर विचार नहीं करते हैं कि क्या रिकॉर्ड अपने आप में पति के खिलाफ एडल्ट्री के आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त होगा? यह देखते हुए कि सबूतों की पर्याप्तता का निर्धारण करने का चरण अभी तक आना बाकी है।

अदालत ने आखिरी में कहा कि लगाए गए आदेशों के माध्यम से फैमिली कोर्ट ने ऐसे रिकॉर्ड मांगे हैं जो केवल प्रतिवादी के पति से संबंधित हैं, न कि उसकी दोस्त या उसकी बेटी से संबंधित हैं। इसलिए, किसी भी तरीके से उनके अधिकार का उल्लंघन किए जाने का कोई सवाल नहीं है।

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