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Home हिंदी कानून क्या कहता है

गुजरात HC ने राज्य सरकार से उन मामलों की पहचान करने को कहा, जहां रेप की सजा कमजोर सबूत पर आधारित है

Team VFMI by Team VFMI
July 24, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Gujarat High Court grants ₹1 lakh damages to man who spent 3 years in prison as jail authority could not open bail order attached to email

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गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने हाल ही में राज्य सरकार को उन मामलों, विशेष रूप से रेप के मामलों की पहचान करने के लिए समिति गठित करने का निर्देश दिया, जहां सबूतों के अनुचित मूल्यांकन या संदिग्ध सबूतों के कारण दोषियों को गलत सजा सुनाई गई है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा है। अदालत का यह कदम ऐसे मामलों अपीलों पर प्राथमिकता से सुनवाई करने के लिए है।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ के मुताबिक, हाई कोर्ट ने बलात्कार और डकैती के दोषी गोविंदभाई परमार द्वारा दायर आपराधिक अपील की अनुमति देते हुए उपरोक्त निर्देश दिया। आरोप है कि चार आरोपियों ने पीड़िता के पति को खाट पर बांधने के बाद उसे जबरन खुले मैदान में ले जाकर छह बार बलात्कार किया। आरोपियों ने मोबाइल फोन और बैटरी भी लूट ली। इसके बाद, चार अपीलकर्ताओं को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, अमरेली द्वारा विशेष अत्याचार मामले में भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 323, 392, 376 (2) (G) और 114 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (अत्याचार अधिनियम) की धारा 3(1)(11) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया। इसे चुनौती देते हुए आरोपियों ने हाईकोर्ट का रुख किया।

हाई कोर्ट

जस्टिस एएस सुपेहिया और जस्टिस एमआर मेंगडे की खंडपीठ ने आदेश दिया, “वर्तमान जैसे मामले जो हाईकोर्ट के समक्ष लंबित हैं, उनकी पहचान करने की आवश्यकता है, जिससे दोषियों की सजा जल्द से जल्द रद्द की जा सके, भले ही दोषियों की सजा निलंबित कर दी गई हो। हम राज्य सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करें।” खंडपीठ ने आगे कहा, “हालांकि, हम यह सुझाव नहीं दे रहे हैं कि राज्य यह स्वीकार कर सकता है कि सजा उचित नहीं है। हालांकि, राज्य यह सुझाव दे सकता है कि ऐसी अपीलों को प्राथमिकता के आधार पर सुना जाए।”

सबूतों और ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियों का आकलन करने के बाद अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड पर स्थापित सबूतों की सराहना करने में विफल रही है। वास्तव में यह ऐसा मामला है, जहां अभियोजन मिलीभगत साबित करने में अप्रभावी रहा है। अदालत ने कहा कि मेडिकल साक्ष्यों में भी उसके निजी अंगों पर किसी चोट की बात नहीं कही गई है।

अदालत ने कहा कि इस स्तर पर हम दोहरा सकते हैं कि मेडिकल सबूत किसी भी तरह से गंभीर यौन उत्पीड़न का संकेत नहीं देते हैं। मेडिकल साक्ष्य किसी भी तरह से यह नहीं सुझाते कि पीड़िता के साथ चार आरोपियों ने छह बार बलात्कार किया। जोरदार संभोग की इतनी गंभीरता से चोटें गंभीर हो सकती हैं और निश्चित रूप से पीड़ित को भारी आघात पहुंच सकता है। पीड़िता के आचरण से यह नहीं पता चलता कि वह इतने उच्च स्तर के यौन उत्पीड़न और यातना से गुजरी है।

हाई कोर्ट ने विवादित फैसले और आदेश खारिज करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपने वास्तविक परिप्रेक्ष्य में साक्ष्य की सराहना करने में खुद को गलत दिशा में निर्देशित किया। साक्ष्यों के उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर हम आरोपियों को उस अपराध के लिए दोषी ठहराने में ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों से सहमत नहीं हैं, जिसके लिए उन पर आरोप लगाए गए हैं। इसके सात ही अपीलकर्ताओं-दोषियों को दोषी ठहराने और बरी करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि बहुत कमजोर सबूत होने के बावजूद अपीलकर्ता पहले ही 13 साल से अधिक समय जेल में बिता चुका है। अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि अन्य दोषी वीराभाई परमार भी 12 साल और 9 महीने और 13 दिन की सजा काट चुका है।

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