गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) ने अपने एक हालिया आदेश में भौतिक दुनिया को त्यागने और तीन महीने पहले जैन नन बनने के बाद एक महिला को तलाक दे दिया है। फैमिली कोर्ट ने पहले तलाक की उसकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसे अब उसने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या है पूरा मामला?
इस कपल ने 23 फरवरी, 2017 को शादी की थी। हालांकि, पत्नी की दलील के अनुसार उसी साल 7 जून से उसने अपने पति के साथ वैवाहिक जीवन जारी रखना बंद कर दिया, क्योंकि पति ने उस पर “क्रूरता थोपना” शुरू कर दिया था। महिला ने इसके बाद दीक्षा ली (त्याग की एक जैन रस्म) और सुरेंद्रनगर जिला स्थित फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में उसकी अपील के लंबित रहने के दौरान नन बन गई, जहां क्रूरता के आधार पर उसके पति से तलाक की उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।
फैमिली कोर्ट
12 अक्टूबर, 2018 को पत्नी ने एक फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दी, लेकिन उसके पति ने प्रार्थना का विरोध किया और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की। सुरेंद्रनगर फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज ने उसके आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
दूसरी ओर, सुरेंद्रनगर जिले के वाधवान में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने उस महिला को (जो अपने वैवाहिक घर से बाहर जाना चाहती थी) अपने पिता के साथ रहने की अनुमति दे दी और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 97 (गलत तरीके से कैद किए गए व्यक्तियों की तलाश) के तहत उसके खिलाफ तलाशी वारंट जारी करने के लिए पति के आवेदन को खारिज कर दिया।
पत्नी ने ली दीक्षा
जब तलाक के लिए पत्नी की याचिका हाई कोर्ट में लंबित थी, तो उसने 28 नवंबर, 2022 को दीक्षा ली और मठवासी जीवन में प्रवेश करके भौतिक दुनिया को त्याग दिया। इसकी जानकारी उसके पिता ने एक हलफनामे में अदालत को दी थी।
गुजरात हाई कोर्ट
जस्टिस एजे देसाई और जस्टिस राजेंद्र सरीन की खंडपीठ ने 30 जनवरी के अपने फैसले में कहा कि वह तलाक की हकदार होंगी, क्योंकि उन्होंने “धार्मिक व्यवस्था में प्रवेश करके दुनिया को त्याग दिया है।” इसके साथ ही हाई कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत तलाक की डिक्री द्वारा विवाह को भंग कर दिया।
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