कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग करने वाली एक महिला की ओर से दायर याचिका को अनुमति दे दी, क्योंकि पति याचिका या पत्नी की ओर से दिए गए सबूतों को चुनौती देने में विफल रहा। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की दो जजों की पीठ ने तलाक की याचिका खारिज करने के फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते कहा कि जब याचिका के साथ-साथ पत्नी द्वारा पेश किए गए सबूतों को कोई चुनौती नहीं दी गई है, तो इस अदालत का मानना है कि फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज करके गलती की है।
क्या है पूरा मामला?
रिपोर्ट के मुताबिक, कपल ने 2009 में मैसूरु में शादी की थी। कोर्ट में दायर याचिका में पत्नी ने दावा किया कि शादी के बाद वे केवल दो महीने तक साथ रहे। महिला ने दावा किया कि उन दो महीनों में उनके बीच कोई सामंजस्य नहीं था, क्योंकि पति शराब के नशे में उसके साथ दुर्व्यवहार करता था। याचिका हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13(1)(1-A) के तहत दायर की गई थी। पति अदालत के सामने पेश हुआ, लेकिन उसने आपत्ति का बयान दर्ज नहीं कराया। इसके बाद पत्नी ने कोर्ट में सबूत पेश किए। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पत्नी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाई कोर्ट
लीगल वेबसाइट के मुताबिक, मुद्दसानी वेंकट नरसैया (D), कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से बनाम मुद्दसानी सरोजना (2016) और विद्याधर बनाम माणिकराव और अन्य। (1999) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, “जैसा कि पहले ही कहा गया है कि कोई जिरह नहीं हुई है। पत्नी द्वारा दायर याचिका पर पति द्वारा कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई है। जब याचिका के साथ-साथ पत्नी द्वारा पेश किए गए सबूतों को कोई चुनौती नहीं है, तो इस अदालत का मानना है कि फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज करके गलती की है।”
यह देखते हुए कि फैमिली कोर्ट ने क्रूरता से संबंधित याचिकाकर्ता पत्नी द्वारा रखे गए सबूतों पर अपना ध्यान नहीं दिया है, पीठ ने कहा कि पति ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है और न ही पत्नी से जिरह की है। पत्नी की गवाही बरकरार है। यहां तक कि इस कोर्ट में आज जब मामले की सुनवाई हुई तो कोई भी अपील का विरोध करते हुए उपस्थित नहीं हुआ। रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री पर विचार करते हुए इस अदालत का मानना है कि पत्नी ने क्रूरता की अपनी दलील साबित कर दी है और वह विवाह विच्छेद की डिक्री की हकदार है।” इसके साथ ही कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए शादी को भंग कर दिया।
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