Karnataka Gruha Lakshmi Scheme: चुनावी वादों के रूप में महिलाओं के लिए मुफ्त की रेवड़ियां (Freebees for women) बांटना सभी राजनीतिक दलों के लिए तुष्टीकरण का नया हथियार बना गया है। सबसे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) ने महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए यह ‘सबकुछ फ्री’ वाला चलन शुरू किया। वहीं बाद में अन्य राजनीतिक पार्टियां भी अपने-अपने घोषणापत्र में इस फ्री वाले स्कीम को डालकर बढ़ावा देने लगीं।
कांग्रेस ने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को हराकर प्रचंड जीत दर्ज की है। इस ऐतिहासिक जीत में कहीं न कहीं उन फ्री वादों का अहम योगदान है जिसे कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में शामिल की थी। कांग्रेस ने इस चुनाव में पांच प्रमुख गारंटी की घोषणा की थी:-
– ‘शक्ति योजना’ के तहत सभी महिलाओं को राज्य भर में मुफ्त बस यात्रा
– ‘गृह लक्ष्मी’ योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया को हर महीने 2,000 रुपये का अनुदान
– ‘युवा निधि’ के तहत बेरोजगार ग्रेजुएट को 3,000 रुपये बेरोजगारी भत्ता
– डिप्लोमाधारी बेरोजगारों को 1,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता
– ‘अन्न भाग्य’ के तहत हर घर को हर महीने 10 किलो चावल और ‘गृह ज्योति’ के तहत 200 यूनिट मुफ्त बिजली
2,000 रुपये को लेकर सास-बहू में शुरु हुआ झगड़ा
कर्नाटक सरकार का ‘गृह लक्ष्मी’ योजना अब सास-बहू में झगड़े की वजह से बन गया है। इस योजना के तहत 2,000 रुपये के मासिक घर की मुखिया को दिए जाने हैं। इस प्रस्तावित योजना को लेकर कई घरों में सास और बहू के बीच संघर्ष छिड़ गया है। द टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) की रिपोर्ट के मुताबिक, दरअसल सास और बहू इस बात पर बहस कर रहे हैं कि आखिर किसे 2,000 रुपये मिलना चाहिए। घर की मुखिया सास को 2,000 रुपये मिलेंगे यह जानकर बहुएं झगड़ा कर रही हैं। कई बहुएं सास से अलग रहने के लिए झगड़ रही हैं, ताकि अलग होकर वह अपने परिवार की मुखिया हो जाएंगी और उन्हें 2,000 रुपये महीने का लाभ मिलेगा। वहीं, कई बहुएं इस बात पर अड़ी हैं कि सास को जो रुपये मिलें, उनमें उन्हें भी आधी रकम दी जाए।
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की राय
TOI की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ महिला कार्यकर्ताओं ने महसूस किया कि परिवार की महिला मुखिया कौन है, इस पर सहमति नहीं होने पर सास और बहू के बीच अनुदान बांच दिया जाना चाहिए। कार्यकर्ता कविता डी ने कहा कि इस मुद्दे पर पक्ष लेना बहुत मुश्किल है। सरकार को सास और बहू दोनों को पैसा देना चाहिए।
मंत्री की राय
वहीं, महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बलकर ने कहा कि यह फैसला परिवार को लेना है। लेकिन बाद में स्पष्ट किया कि पैसा आदर्श रूप से सास को जाना चाहिए, क्योंकि उन्हें महिला प्रधान माना जाता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह चाहें तो बहू के साथ पैसे साझा कर सकती हैं। मंत्री ने कहा कि योजना के कार्यान्वयन में नियमों और शर्तों के बारे में बात करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि विभाग ने अभी तक तौर-तरीकों पर चर्चा नहीं की है। उन्होंने कहा कि कैबिनेट बैठक के बाद कुछ स्पष्टता सामने आएगी।
वॉइस फॉर मेन इंडिया का तर्क
– वोट के बदले मतदाताओं को किसी भी प्रकार की मुफ्त की पेशकश करने वाले राजनीतिक दल कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर रिश्वत देने के अलावा और कुछ नहीं हैं।
– यह अतिरिक्त राज्य लागत केवल राजकोष के बोझ को बढ़ाती हैं।
– भारत महिलाओं को सशक्त बनाने के अपने मिशन से भटक रहा है। महिला कल्याण के नाम पर दी जाने वाली योजनाएं महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के बजाय विशेषाधिकारों पर अधिक निर्भर बना रही हैं।
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.