कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही पुलिस को एक महिला के नियोक्ता (Employer) से संपर्क करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जब तक वह अपने पति को अपनी बेटी की कस्टडी वापस करने के न्यायिक आदेश का पालन नहीं करती तब तक उसका वेतन और लाभ रोक दिया जाए। हाईकोर्ट ने पुलिस को इसलिए महिला के नियोक्ता से संपर्क करने का निर्देश दिया, क्योंकि वह न्यायिक आदेश के बावजूद अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी अपने पति को सौंपने में विफल रही थी। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने नियोक्ता से उस महिला का वेतन रोकने के लिए कहा।
क्या है पूरा मामला?
पीठ पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। वह पिछले साल मार्च 2022 में पारित फैमिली कोर्ट के आदेश पर अमल न करने से दुखी था, जिसमें गार्जियन एंड वार्ड एक्ट, 1890 की धारा 25 के तहत उसकी याचिका की अनुमति दी गई और मां को अपनी 7 साल की बच्ची को उसे सौंपने का निर्देश दिया गया। इससे पहले, अदालत ने पत्नी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर को उसे अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था।
महिला का तर्क
महिला ने तर्क दिया कि बेटी अवैध कस्टडी में नहीं थी। उसने समझाया कि वह याचिकाकर्ता से तब अलग हो गई थी जब उनकी बेटी 3 साल की थी, और अब 5 साल बाद याचिकाकर्ता कस्टडी की मांग कर रहा है। उसने जोर देकर कहा कि कार्यवाही केवल उसे और उसके पिता को परेशान करने के लिए शुरू की जा रही है। इसके अलावा, उसने कहा कि याचिकाकर्ता उसे रखरखाव की आवश्यक राशि प्रदान करने में विफल रहा था। उसने अदालत को यह भी बताया कि फैमिली कोर्ट के फैसले के क्रियान्वयन के लिए कार्यवाही पहले ही शुरू की जा चुकी है। इसलिए, उसने तर्क दिया कि मामले में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
हाई कोर्ट
अदालत ने कहा कि महिला को बच्चे की कस्टडी जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह उसके निर्णयों का उल्लंघन था जो अंतिम रूप से प्राप्त हो चुके हैं और पार्टियों के लिए बाध्यकारी थे। जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने कहा कि बेटी की कस्टडी सौंपे जाने तक उसे देय लाभ रोके जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी पत्नी द्वारा पिता को नहीं सौंपना, अदालतों द्वारा कस्टडी देने के आदेश को अंतिम रूप देने के बाद भी कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता।
पीठ ने बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि संबंधित थाना प्रभारी 24 घंटे के भीतर बेटी को पिता को सौंप दें। कोर्ट ने पत्नी के खिलाफ स्वतः संज्ञान से आपराधिक और नागरिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने का भी निर्देश दिया। पीठ ने कहा, “पत्नी को बच्चे की कस्टडी जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह अदालत के निर्णयों के उल्लंघन में है, जो अंतिम रूप ले चुका है और पक्षकारों के लिए बाध्यकारी है।”
अदालत ने आगे कहा, “माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्वोक्त कानून की व्याख्या के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि चाइल्ड कस्टडी मामलों में जब बच्चा माता-पिता में से किसी एक की कस्टडी में होता है तो बंदी प्रत्यक्षीकरण का रिट बनाए रखा जा सकता है।” जिसके बाद कोर्ट ने उपरोक्त निर्देश पारित किए। अदालत ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया कि जब तक वह आदेश का पालन नहीं करती, तब तक उसे देय सभी लाभों को वापस लेने के लिए पत्नी के नियोक्ता से संपर्क करें।
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