कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने अपने एक हालिया फैसले में एक महिला द्वारा अपने पूर्व पति और ससुराल वालों के खिलाफ धारा 498-A (दहेज प्रताड़ना) के तहत दर्ज मामले को खारिज करते हुए कहा कि सर्वव्यापी और सामान्य आरोपों के आधार पर दायर चार्जशीट बिना किसी तथ्य या सार के है। जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल पीठ ने डॉ शाहुल हमीद वालवूर और अन्य द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और IPC की धारा 498 A सहपठित धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज अभियोजन को रद्द कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष के अनुसार, कपल ने 2009 में इस्लामी रीति-रिवाजों और परंपरा के अनुसार शादी की थी। उसके बाद वे अन्य आरोपियों के साथ वैवाहिक घर में रहने लगे। विवाह के बाद रेहान नाम के एक बच्चे का जन्म भारत में हुआ था। महिला द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि आरोपी नंबर 1 (पति) और प्रतिवादी नंबर 2 (शिकायतकर्ता) बच्चे के साथ दिसंबर-2011 में अमेरिका चले गए।
इसके बाद वे साल 2016 में भारत लौट आए। महिला का आरोप था कि भारत में रहते हुए पति ने अमेरिका में उसकी उच्च शिक्षा के लिए दहेज लाने के लिए उसे परेशान किया। फरवरी 2017 में प्रतिवादी नंबर 2 बच्चे के साथ अमेरिका चली गई, लेकिन बाद में उसे जबरन भारत वापस भेज दिया गया। मई 2018 में, वह आरोपी नंबर 2 से 4 के घर गई, लेकिन उसे घर में घुसने नहीं दिया गया।
हाई कोर्ट
लीगल वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि यह भी निर्विवाद है कि प्रतिवादी नंबर दो का आरोपी नंबर एक के साथ विवाह अमेरिका में आईओवा कोर्ट ने भंग कर दिया था और प्रतिवादी नंबर 2 के बैंक अकाउंट में स्थायी गुजारा भत्ता जमा कर दिया गया है, जिसका स्पष्ट रूप से अर्थ है कि प्रतिवादी संख्या 2 के साथ अभियुक्त संख्या 1 के विवाह को भंग कर दिया गया है।
कोर्ट ने कहा कि यह तर्क कि प्रतिवादी संख्या 2 को नोटिस जारी किए बिना धोखाधड़ी से आदेश प्राप्त किया गया था, इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि अन्यथा, सर्वव्यापक और सामान्य आरोपों को छोड़कर कोई विशेष आरोप नहीं है कि कैसे और किस तरह से प्रत्येक आरोपी ने प्रतिवादी नंबर 2 के साथ क्रूरता की थी या उसके साथ मारपीट की थी। इसलिए, चार्जशीट के सर्वव्यापी और सामान्य आरोप के आधार पर दायर किया गया है, जो बिना किसी सार के हैं।
पीठ ने राय दी कि पक्षों के बीच विवाद वैवाहिक कलह से उत्पन्न होता है। हालांकि, एक आपराधिक बनावट को देखते हुए याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों पर समझौता करने के लिए दबाव डाला जाता है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 2 फरवरी 2018 में भारत लौट आया, लेकिन FIR मई 2018 में ही बिना कोई स्पष्टीकरण दिए दर्ज की गई। इसलिए, यह संकेत है कि प्रतिशोध और बदले की भावना से आरोपी नंबर 2 से 4 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका की अनुमति दे दी।
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