मेघालय हाई कोर्ट (Meghalaya High Court) ने हाल ही में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम POCSO के तहत अपराध के एक आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मामले को रद्द करते हुए कहा कि 16 साल की लड़की को यौन संबंध के बारे में निर्णय लेने में सक्षम माना जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच के मुताबिक, अदालत आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ POCSO अधिनियम 2012 की धारा 3 और 4 के तहत चल रहे आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता विभिन्न घरों में काम कर रहा था, जहां उसकी नाबालिग लड़की से पहचान हुई और उन्हें प्यार हो गया।
18 जनवरी, 2021 को जब लड़की अपनी चचेरी बहन के साथ खरीदारी करने गई थी, तो उसकी मुलाकात याचिकाकर्ता से हुई और फिर दोनों उसके घर गए जहां उसने उसे अपने माता-पिता से मिलवाया। इसके बाद वे याचिकाकर्ता के चाचा के घर गए, जहां उन्होंने रात बिताने का फैसला किया और वहां रहने के दौरान उन्होंने संभोग किया।
मां ने दर्ज कराई थी शिकायत
अगली सुबह, नाबालिग लड़की की मां ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 और POCSO अधिनियम 2012 की धारा 3 और 4 के तहत FIR दर्ज कराई। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने मामले को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट के समक्ष वर्तमान याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता का तर्क
याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि इसमें यौन उत्पीड़न का कोई तत्व शामिल नहीं है, क्योंकि उत्तरजीवी ने स्वयं CrPC की धारा 164 के तहत अपने बयान में और अदालत के समक्ष अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि वह याचिकाकर्ता की प्रेमिका है। उसने संभोग की, लेकिन यह उसकी सहमति से था और इसमें कोई जबरदस्ती नहीं था।
हाई कोर्ट
जस्टिस डब्लू डिएंगदोह का विचार था कि उस आयु वर्ग के नाबालिग के शारीरिक और मानसिक विकास को देखते हुए यह विचार करना तर्कसंगत है कि ऐसा व्यक्ति संभोग के कार्य के संबंध में निर्णय लेने में सक्षम है। अदालत ने कहा, “यह न्यायालय उस आयु वर्ग (लगभग 16 साल की आयु के नाबालिग का संदर्भ) के एक किशोर के शारीरिक और मानसिक विकास को देखते हुए, यह तर्कसंगत मानेगा कि ऐसा व्यक्ति अपनी भलाई के संबंध में सचेत निर्णय लेने में सक्षम है।”
याचिकाकर्ता की दलीलों के साथ-साथ ऐसे मामलों में न्यायालय के पिछले दृष्टिकोण की सावधानीपूर्वक जांच करने के बाद, न्यायालय का विचार था कि लड़की लगभग 16 वर्ष की नाबालिग थी, लेकिन उसका बयान याचिकाकर्ता के मामले के पक्ष में था। यह अभी भी प्रासंगिक हो सकता है।
इस संबंध में अदालत ने SP, सभी महिला पुलिस स्टेशन (2021) द्वारा विजयलक्ष्मी और अन्य बनाम राज्य प्रतिनिधि मामले में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया और कहा कि व्यक्तियों के शारीरिक और मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए उत्तरजीवी के आयु-समूह के अनुसार, यह मान लेना तर्कसंगत है कि ऐसा व्यक्ति संभोग के संबंध में सचेत निर्णय लेने में सक्षम है। याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा, “प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें कोई आपराधिक मामला शामिल नहीं है।”
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