मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की ग्वालियर पीठ ने हाल ही में शादी के बहाने एक महिला से बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR के साथ-साथ आपराधिक कार्यवाही को भी यह कहते हुए रद्द कर दिया कि एक विवेकपूर्ण यानी समझदार महिला के लिए एक साल से अधिक का समय यह समझने के लिए पर्याप्त है कि क्या आरोपी द्वारा किया गया शादी का वादा शुरू से ही झूठा है या वादे को तोड़ने की संभावना है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, जुलाई 2021 में पीड़िता ने आरोपी के खिलाफ FIR दर्ज कराई कि साल 2017 में वह उसके संपर्क में आई और साल 2020 में आरोपी ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा, जिसके परिणामस्वरूप वह जून 2020 में सेंवढ़ा आ गई और एक घर में रुकी जहां आरोपी ने शादी का झूठा झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। महिला द्वारा आगे यह भी आरोप लगाया गया कि जब पीड़िता ने आरोपी से उससे शादी करने के लिए कहा कि तो उसने उसे नजरअंदाज कर दिया।
इसके बाद वह अपने घर वापस आ गई। हालांकि वह उससे फोन पर बात करती रही। फिर, जुलाई 2021 में, वह सेंवढ़ा वापस आई और उसके बाद, याचिकाकर्ता पीड़िता को एक कार में ले गया और उसके साथ मारपीट की। इसके बाद उसने आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई और उस पर साल 2021 में IPC की धारा 376(2) (N), IPC की धारा 506 और धारा 34 के तहत मामला दर्ज किया गया।
FIR और उसके बाद की मामले की कार्यवाही को चुनौती देते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उसके वकील ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता द्वारा अनुचित लाभ लेने के लिए गलत इरादे से देर से FIR दर्ज की गई। आगे यह तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता एक परिपक्व महिला है जिसके तीन बच्चे हैं और वह आरोपी को एक साल से अधिक समय से जानती थी और उसने अपनी सहमति और स्वतंत्र इच्छा से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे।
दूसरी ओर, राज्य के वकील के साथ-साथ शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि यदि किसी लड़की ने लंबे समय तक आरोपी द्वारा किए गए वादे पर विश्वास किया है और शारीरिक संबंध जारी रखा है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसकी सहमति तथ्य की गलतफहमी से प्राप्त की गई थी।
हाई कोर्ट
जस्टिस दीपक कुमार अग्रवाल की पीठ ने कहा कि तीन बच्चों की मां (शिकायतकर्ता) का आरोपी के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध रहा और वह खुद उसके साथ कई बार गई। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी सहमति तथ्य की गलत धारणा से हासिल की गई थी और अधिक से अधिक इसे शादी करने के वादे का उल्लंघन कहा जा सकता है।
अदालत ने 56 वर्षीय आरोपी की केस रद्द करने की मांग वाली याचिका को अनुमति देते हुए कहा, “जब याचिकाकर्ता शादी के लिए उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं कर रहा था तो उसने FIR दर्ज होने तक उसके साथ संबंध क्यों जारी रखा। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि अधिक से अधिक, यह कहा जा सकता है कि यह शादी का वादा तोड़ने का मामला है। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया वादा डर या तथ्य की गलत धारणा के तहत किया गया था।”
कोर्ट ने कहा कि केवल एक महिला को धोखा देने के इरादे से किया गया शादी का झूठा वादा तथ्य की गलत धारणा के तहत ली गई महिला की सहमति को रद्द कर देगा, लेकिन केवल वादे का उल्लंघन झूठा वादा नहीं कहा जा सकता। अदालत ने मामले के तथ्यों का जिक्र करते हुए आगे कहा कि शिकायतकर्ता लंबे समय तक याचिकाकर्ता के साथ शारीरिक संबंध में रही और वह खुद याचिकाकर्ता के साथ सेंवढ़ा में एक घर में गई थी और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी सहमति तथ्य की ग़लतफ़हमी से प्राप्त की गई थी।
अदालत ने इन परिस्थितियों में पाया कि IPC की धारा 376(2)(N), 506 और 34 के तहत अपराध के लिए आरोपी पर मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ नहीं होगा और इसलिए अदालत ने एफआईआर रद्द कर दी और उसके साथ ही उसके खिलाफ आरोप-पत्र के रूप में आपराधिक कार्यवाही भी रद्द कर दी।
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