आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने हाल ही में कहा कि यदि एक मुस्लिम पिता 7 साल से अधिक उम्र के अपने नाबालिग बेटे को मां की कस्टडी से जबरन लेकर चला जाता है, तो यह अपहरण की कैटेगरी में नहीं आएगा, क्योंकि वह मुस्लिम कानून के तहत कानूनी अभिभावक है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने 2022 में मुस्लिम पिता के खिलाफ कथित तौर पर अपने 8 और 10 साल के बेटों को उनकी मां की कस्टडी से अगवा करने के लिए दायर FIR खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत पिता अपने बेटे के नाबालिग होने के दौरान कानूनी अभिभावक होता है, और मां सिर्फ सात साल की उम्र तक ऐसे बच्चे की कस्टडी का दावा कर सकती है।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच के मुताबिक, अदालत भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपहरण के अपराध के लिए पिता के खिलाफ 2022 में दर्ज की गई FIR को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पति पर आरोप लगाया गया था कि उसने चार अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर अपने 10 और 8 साल की आयु के दो बेटों का अपहरण कर लिया था, जो अपनी मां की कस्टडी में रह रहे थे। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि भले ही सभी आरोपों को सच मान लिया जाए, फिर भी अपहरण का अपराध नहीं बनाया जाएगा, क्योंकि याचिकाकर्ता सुन्नी मुसलमान हैं, जो सुन्नी मुस्लिम कानून द्वारा शासित हैं।
उसने कहा कि 7 साल से अधिक आयु के लड़के को लेने वाला पिता अपहरण की कैटेगरी में नहीं आएगा, क्योंकि वह मुस्लिम कानून के तहत ऐसे बच्चों का कानूनी अभिभावक है। उसके तरफ से यह भी तर्क दिया गया कि मुस्लिम कानून के सुन्नी स्कूल के तहत मां अपने लड़के की कस्टडी की तब तक हकदार है जब तक कि बच्चा 7 साल की उम्र पूरी नहीं कर लेता। वकील ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता नंबर एक, जो बच्चों का पिता है और याचिकाकर्ता नंबर 2 जो बच्चों का मां है, लगभग 8 साल और 10 साल की उम्र के बच्चों को उनके नाना-नानी से छीन लिया है।
वकील ने अपने तर्क में आगे दावा किया कि इसलिए IPC की धारा 363 के तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करने के लिए उनके पिता द्वारा बच्चों को ले जाना किसी भी तरह से अपहरण के दायरे में नहीं आएगा। हालांकि दूसरी ओर, प्रतिवादी पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि बच्चे मां की कस्टडी में हैं। इस प्रकार, भले ही पिता नाबालिग बच्चों को उनकी मां की कस्टडी से ले लेता है तो वह आईपीसी की धारा 363 के तहत अपहरण के लिए उत्तरदायी है।
हाई कोर्ट
सिंगल जज जस्टिस के श्रीनिवास रेड्डी ने पिता के खिलाफ अपहरण के मामले को खारिज करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में दोनों बेटे 7 साल से ऊपर के थे। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद स्पष्ट किया कि मुस्लिम कानून के तहत बच्चे के जेंडर के आधार पर मां को केवल निश्चित उम्र तक ही अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी का अधिकार है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत मां प्राकृतिक अभिभावक नहीं है।
अदालत ने कहा कि यह स्वीकृत तथ्य है कि वह प्राकृतिक अभिभावक नहीं है। दूसरी ओर, पिता अकेला प्राकृतिक अभिभावक है। यदि पिता की मृत्यु हो जाती है तो सुन्नी कानून के अनुसार उसका निष्पादक कानूनी अभिभावक होता है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह पिता है जो अपने पुरुष बच्चों के नाबालिग होने के दौरान उनके कानूनी अभिभावक हैं और मां ऐसे बच्चे की 7 साल की उम्र तक बच्चे की कस्टडी का दावा कर सकती है।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के बच्चे वर्तमान में अपने नाना-नानी के साथ रह रहे हैं, जबकि शिकायतकर्ता खुद हैदराबाद में काम करती है। ऐसे में अगर पिता (जो बच्चों का कानूनी अभिभावक है) नाना-नानी से बच्चों को दूर लेकर जाता है, तो यह किसी भी तरह से अपहरण के दायरे में नहीं आएगा। अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता पिता के खिलाफ IPC की धारा 363 के तहत अपराध नहीं बनता है, क्योंकि वह पिता है और बच्चों का कानूनी अभिभावक है।
अपहरण के मामले को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को आपराधिक मुकदमे की कठोरता से गुजरना पूरी तरह से अनुचित होगा, जिससे कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, क्योंकि आरोपों को सच मानने के आधार पर कोई अपराध नहीं बनता। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने पिता के खिलाफ दर्ज की गई उस FIR को रद्द कर दिया, जिस पर कथित तौर पर अपने 8 और 10 साल के बेटों को उनकी मां की कस्टडी से अगवा करने का आरोप लगा था।
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