इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान एक विवाहित महिला और उसके लिव-इन पार्टनर को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए कहा, ‘लिव-इन रिलेशनशिप इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर स्वीकार्य है।’ विवाहित महिला और उसके लिव-इन पार्टनर ने इस आधार पर पुलिस सुरक्षा की मांग की थी कि उसका पति उनके शांतिपूर्ण जीवन को खतरे में डालने की कोशिश कर रहा है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, 37 साल की एक विवाहित महिला और उसके लिव-इन पार्टनर ने हाईकोर्ट को बताया कि उसकी उससे शादी नहीं हुई है। पति के उदासीन व्यवहार की वजह से महिला खुद से उसके साथ लिव-इन रिलेशनशिप में आई है। महिला ने कहा कि उसका पति उनके शांतिपूर्ण जीवन को खतरे में डालने की कोशिश कर रहा है और इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा दी जाए। दूसरी ओर राज्य की ओर से पेश सरकारी वकील ने कहा कि कोर्ट को इस तरह के रिश्तों की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हाईकोर्ट ने पहले ही अनीता और अन्य बनाम यूपी मामले में इस तरह के कृत्यों को अस्वीकर किया है। साथ ही विवाहित महिला और उसके लिव इन पार्टनर की सुरक्षा देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी।
हाई कोर्ट
जस्टिस रेनू अग्रवाल की बेंच ने स्पष्ट किया कि अदालत लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं, बल्कि अवैध संबंधों के खिलाफ है। अदालत ने कहा कि कोर्ट अवैधता की अनुमति नहीं दे सकता क्योंकि कल याचिकाकर्ता ये कहेंगे कि हमने उनके अवैध संबंधों को पवित्र करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर स्वीकार्य नहीं है। पुलिस को उन्हें सुरक्षा देने का निर्देश अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अवैध संबंधों को सहमति देने जैसा है।
इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनीता मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। और कहा कि इस तरह के रिश्ते को समाज के ताने-बाने की कीमत पर स्वीकार्य नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
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