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Home हिंदी कानून क्या कहता है

जीवनसाथी को लंबे समय तक यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देना मानसिक क्रूरता के बराबर है: इलाहाबाद HC

Team VFMI by Team VFMI
May 26, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Domestic Violence Act: Allahabad High Court

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इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में क्रूरता के आधार पर एक कपल के बीच विवाह को भंग कर दिया। तलाक से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने की अनुमति दे दी। इस दौरान अदालत ने कहा कि पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देना अपने आप में मानसिक क्रूरता के बराबर है।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कपल की शादी साल 1979 में हुई थी। पति ने इस आधार पर पत्नी से तलाक की मांग की थी कि उसकी पत्नी लंबे समय से बिना किसी कारण उसको उसके साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं दे रही है। पति ने पहले हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 के तहत एक तलाक याचिका फैमिली कोर्ट में दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी थी। पति ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का रूख किया था।

पति का तर्क

पति के मुताबिक, शादी के कुछ समय बाद उसकी पत्नी का व्यवहार और आचरण बदल गया। पति के मुताबिक, उसने पत्नी की तरह उसके साथ रहने से इनकार कर दिया। काफी समझाने के बावजूद उसने उससे यौन संबंध नहीं बनाया। कुछ समय बाद वो उससे अलग अपने माता-पिता के घर में रहने लगी। पति ने आगे कहा कि अपनी शादी के छह महीने बाद उसने पत्नी को वैवाहिक घर वापस आने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन उसने वापस आने से इनकार कर दिया।

इसके बाद जुलाई 1994 में गांव में एक पंचायत बैठी। पंचायत ने इस शर्त के साथ आपसी सहमति से तलाक की मंजूरी दे दी कि पति को अपनी पत्नी को 22,000 रुपए का स्थायी गुजारा भत्ता देना होगा। इसके बाद पत्नी ने कथित तौर पर दूसरी शादी कर ली। फिर पति ने मानसिक क्रूरता के आधार तलाक की मांग की। हालांकि, सुनवाई के दौरान वो अदालत में पेश नहीं हुई। फैमिली कोर्ट ने एकतरफा तलाक याचिका खारिज करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

हाई कोर्ट

जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस राजेंद्र कुमार की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें सुनी और सबूतों को देखा। इसके बाद अदालत ने कहा कि पति ने ऐसा कोई भी सबूत नहीं पेश किया है, जिससे साबित हो सके कि महिला ने दूसरी शादी कर ली है। लेकिन ये भी स्पष्ट है कि दोनों काफी समय से अलग रह रहे हैं। और पति की ओर से पेश किए गए सबूतों को खारिज करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था।

अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने फैसले में गलती की थी। इसके साथ ही कोर्ट ने पति को तलाक की अनुमति देते हुए कहा कि जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ जीवन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। पति-पत्नी को शादी में हमेशा बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ नहीं मिलता है। इसके साथ ही कोर्ट ने कपल की शादी को भंग कर दिया।

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