कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने हाल ही में एक अभियुक्त के खिलाफ बलात्कार के कथित अपराध के लिए आपराधिक कार्यवाही इस आधार पर रद्द कर दी कि उसके और पीड़िता के बीच सहमति से शारीरिक संबंध थे और शारीरिक संबंध के बाद ही शादी का मुद्दा सामने आया।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता ने आरोप लगाया कि आरोपी-याचिकाकर्ता के साथ उसका संबंध था, जो उससे शादी करने का वादा करके काफी समय तक उसके साथ रहा। पुलिस ने आरोपी-याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 417, धारा 376 और धारा 506 के तहत FIR दर्ज की थी। जांच अधिकारी ने जांच पूरी होने पर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की। जांच अधिकारी ने 15 गवाहों पर भरोसा किया, जिनमें से आठ गवाह पड़ोसी और परिचित थे और बाकी दो डॉक्टर और पांच पुलिस अधिकारी थे।
जांच के दौरान, न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा CrPC की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान भी दर्ज किया गया। अभियुक्त-याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कोर्ट में तर्क दिया किया कि यदि शिकायत में लगाए गए आरोप और अभियोजन पक्ष द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेजों को सत्य माना जाता है तो यह कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि वर्तमान मामले में दोनों बालिग हैं और सहमति से संबंध बना रहे थे।
हाई कोर्ट
अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 164 के तहत अपने बयान में पीड़िता ने कहा कि शुरू में उसकी उस आरोपी के साथ दोस्ती थी जिसने उसे शारीरिक संबंध बनाने का प्रस्ताव दिया। हालांकि, उसने इस तरह के प्रस्ताव से इनकार कर दिया। जस्टिस तीर्थंकर घोष की सिंगल जज पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता और आया पक्ष के गवाहों के बयान के संबंध में जो शिकायतकर्ता के साथ अभियुक्त के संबंध के बारे में भी जानते थे, विशेष रूप से तथ्यों के वर्णन के संबंध में कि शिकायतकर्ता स्वयं होटल में थी और केवल शारीरिक संबंध के बाद विवाह के संबंध में मामला सामने आया, मेरा मानना है कि इसमें ऊपर तय किए गए सिद्धांत वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में लागू होते हैं। इसलिए मामले को आगे जारी रखना और उसमें दायर चार्जशीट सहित परिणामी कार्यवाही हस्तक्षेप की मांग करती है।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि कुछ दिनों बाद दोनों होटल में गए, जहां उसकी मुलाकात आरोपी के दोस्त और उसकी प्रेमिका से हुई। वहां अलग कमरे में आरोपी ने उससे शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप वह आरोपी से जुड़ गई और इस तरह के शारीरिक संबंध बने रहे। कुछ समय बाद जब शिकायतकर्ता ने उससे शादी करने का अनुरोध किया तो आरोपी ने शादी करने का वादा किया, लेकिन उससे बचने लगा।
अदालत ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019) 9 एससीसी 608 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धारा 375 के संबंध में महिला की “सहमति” में प्रस्तावित अधिनियम के प्रति सक्रिय और तर्कपूर्ण विचार-विमर्श शामिल होना चाहिए। यह स्थापित करने के लिए कि क्या “सहमति” शादी करने के वादे से उत्पन्न “तथ्य की गलत धारणा” से दूषित हुई। यहां दो प्रस्तावों को स्थापित किया जाना चाहिए। विवाह का वादा एक झूठा वादा रहा होगा, जो गलत इरादे से किया गया और किए जाने के समय इसका पालन करने का कोई इरादा नहीं था। झूठा वादा तत्काल प्रासंगिक होना चाहिए, या यौन क्रिया में शामिल होने के महिला के फैसले से सीधा संबंध होना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने आरोपी-याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही और दायर चार्जशीट रद्द कर दी।
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