• होम
  • हमारे बारे में
  • विज्ञापन के लिए करें संपर्क
  • कैसे करें संपर्क?
Voice For Men
Advertisement
  • होम
  • ताजा खबरें
  • कानून क्या कहता है
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • योगदान करें! (80G योग्य)
  • Voice for Men English
No Result
View All Result
  • होम
  • ताजा खबरें
  • कानून क्या कहता है
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • योगदान करें! (80G योग्य)
  • Voice for Men English
No Result
View All Result
Voice For Men
No Result
View All Result
Home हिंदी कानून क्या कहता है

महिला द्वारा ‘क्रोध’ में दायर रेप के फर्जी आरोपों में शख्स के बरी होने के बाद पाठक ने दिल्ली HC को लिखा खुला पत्र

Team VFMI by Team VFMI
May 17, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Husband Making Friends At Work Not Cruelty, Merely Drinking Alcohol Daily Doesn't Make Him Alcoholic When No Untoward Incident: Delhi High Court

121
VIEWS
Share on FacebookShare on TwitterWhatsappTelegramLinkedin

4 दिसंबर 2020 के एक आदेश में महिला शिकायतकर्ता द्वारा “क्रोध” में FIR दर्ज करने की बात स्वीकार करने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक कथित आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दायर फर्जी रेप (False Rape) के मामले को रद्द कर दिया था। अपने आदेश में जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने महिला की माफी स्वीकार करते हुए कहा था कि चूंकि अभियोजिका ने एक गलत बयान दिया है जिसकी परिणति वर्तमान FIR हुई है, इसलिए वह कानून के तहत मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी है। हालांकि, महिला ने बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि वह एक विवाहित महिला है जिसके दो बच्चे हैं और यदि वर्तमान मामले को सुनवाई के लिए भेजा जाता है तो उसका वैवाहिक जीवन नष्ट हो जाएगा।

इस पर हाई कोर्ट ने कहा था कि यह अदालत मामले की गंभीरता के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के प्रति सचेत है। हालांकि, पक्षों के बीच हुए समझौते को ध्यान में रखते हुए यह अदालत वर्तमान FIR को रद्द करने के लिए इच्छुक है, क्योंकि याचिकाकर्ता पर आगे मुकदमा चलाने में कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। आप इस ब्लॉग के अंत में कोर्ट का पूरा आदेश पढ़ सकते हैं।

इस विशेष आदेश ने आम लोगों के मन में कई सवाल खड़े किए थे कि क्या हमें बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में झूठे आरोप लगाने वाली महिला को माफ कर देना चाहिए? सोशल मीडिया यूजर्स ने इस फैसले में माननीय हाई कोर्ट द्वारा तय किए गए तर्क पर भी चिंता जताई है, जहां अन्य महिलाएं झूठे मामले दर्ज करने, मामले को निपटाने और फिर माफी का हलफनामा जमा करने के लिए मिसाल के तौर पर इसका इस्तेमाल कर सकती हैं।

आप नीचे ट्वीट में सभी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं और राय पढ़ सकते हैं:-

हमारे पोर्टल के साथ-साथ अन्य प्रमुख लीगल वेबसाइटों द्वारा आर्टिकल और आदेश प्रकाशित किए जाने के बाद हमारे एक पाठक ने इस पर अपनी राय व्यक्त करते हुए 10 दिसंबर, 2020 को माननीय हाई कोर्ट के जज को एक खुला पत्र लिखा था, जिसे आप नीचे पढ़ सकते हैं…..

हाई कोर्ट के जज को खुला पत्र  

सेवा में,

जस्टिस श्री सुरेश कुमार कैत
माननीय दिल्ली हाई कोर्ट

विषय:- 04.12.2020 के निर्णय द्वारा भारतीय न्यायिक सिस्टम के उड़ाए गए मजाक के संबंध में…

महोदय,

मुझे उपर्युक्त वाद में दिनांक 04.12.2020 के आपके निर्णय को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो मेरे विचार से भारतीय न्यायपालिका का उपहास उड़ाता है। उपरोक्त फैसला भारतीय न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को कम करता है। यह संविधान का उल्लंघन करता है। साथ ही भारतीय नागरिकों के विश्वास को हिलाता है। यह आदेश कानून के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण के लिए भी बहुत बड़ा नुकसान है।

ऊपर दिए गए फैसले में आपकी अध्यक्षता वाली अदालत ने याचिकाकर्ता और अभियोक्ता के बीच समझौते और इरादतन झूठी गवाही के लिए अभियोजिका द्वारा माफी मांगने के आधार पर IPC की धारा 376 (जिसे आमतौर पर बलात्कार के रूप में जाना जाता है) के तहत दर्ज FIR संख्या 381/2020 को रद्द कर दिया।

उपरोक्त फैसले में नीचे दिए गए मुद्दों में से किसी का भी उल्लेख नहीं है और इसलिए मैं मानता हूं कि ऐसा कोई विचार अदालत के दिमाग में नहीं आया:-

A. क्या भारतीय न्यायपालिका ने सत्य की खोज का ढोंग भी छोड़ दिया है?

निर्णय स्पष्ट रूप से झूठ बोलने वाली अभियोक्ता और अभियुक्त के बीच समझौते की बात करता है। लेकिन इस बारे में सब मौन हैं कि आखिर यह किस प्रकार का समझौता था। क्या इसमें अभियोजिका के लिए कोई मौद्रिक (या अन्यथा) लाभ शामिल था? क्या अभियोजिका द्वारा पहले कभी ऐसी कोई झूठी शिकायत की गई है? क्या आरोपी को एक या उससे अधिक दिन जेल या पुलिस हिरासत में बिताने पड़े?

एक झूठी शिकायत दर्ज करने, झगड़े को जघन्य बलात्कार के मामले में बदलने में अभियोजिका को किसने सलाह दी और सहायता की? फाइलिंग और 3 महीने की लंबी जांच के दौरान पुलिस की क्या भूमिका रही, क्या उन्हें इससे कोई आर्थिक लाभ मिला? फैसले में इस तरह के किसी भी डिटेल्स की चूक का मतलब केवल दिमाग के आवेदन की कमी या ऐसे झूठे आरोपों/मामलों की नियमित/सर्वव्यापी प्रकृति हो सकती है। दोनों ही परिस्थितियों में समाज के लिए एक बहुत ही गंभीर तस्वीर पेश करती है।

B. क्या भारतीय न्यायपालिका को अपनी प्रतिष्ठा की थोड़ी सी भी चिंता नहीं है, जहां झूठी गवाही पेश करना लोगों के जीवन का एक हिस्सा बन गई है!

यह सर्वविदित है कि भारतीय न्यायपालिका अपने सबसे खराब विश्वसनीयता संकट से गुजर रही है। हालांकि, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आम आदमी, यह CAA-NRC, जम्मू-कश्मीर के बंदियों की बंदी प्रत्यक्षीकरण, अर्नब गोस्वामी की जमानत आदि जैसे बहुप्रचारित मामलों के कारण नहीं है, बल्कि उपर्युक्त निर्णयों के कारण है, जो आम आदमी की अदालतों के साथ बातचीत को सीधे प्रभावित करते हैं।

एक समय था जब नागरिक जज के सामने सम्मान में खड़े होते थे, लेकिन अब मजबूरी में खड़े होते हैं। एक जमाना था जब अदालत में झूठ बोलने से गवाह कांपते थे। एक समय था जब झूठी गवाही को एक अपराध माना जाता था जिसने न्यायिक प्राधिकरण की जड़ों को हिला दिया था। अब न्यायिक प्राधिकरण अवमानना की शक्तियों के गलत उपयोग कर रहे हैं। एक समय था जब न्यायपालिका समाज में नैतिकता का मार्ग प्रशस्त करती थी, अब हमारी न्यायपालिका द्वारा अनैतिकता को बढ़ावा दिया जाता है!

सभी जजों को याद रखना चाहिए कि यदि वे स्वयं उस संस्थान का सम्मान नहीं करते हैं जिसके लिए वे काम करते हैं, तो कोई और नहीं करेगा। यदि वे झूठी गवाही के ऐसे घोर कृत्यों पर कठोर नहीं होते हैं, तो आम नागरिक का न्यायपालिका पर से भरोसा कब उठ जाएगा अदालतों को पता ही नहीं चलेगा।

C. क्या भारतीय न्यायपालिका को लगता है कि केवल महिलाएं ही मनुष्य की रक्षा के लायक हैं?

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अदालतें बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का झूठा आरोप लगाने वाले व्यक्ति द्वारा झेले गए भारी आघात और प्रतिष्ठा को नुकसान की सराहना नहीं करती हैं। मैं आपसे पूछता हूं कि बलात्कार को एक जघन्य अपराध क्यों माना जाता है? क्या यह उस शारीरिक आघात के कारण है जिससे बलात्कार व्यक्ति अपराध के दौरान गुजरता है या यह लंबे समय तक चलने वाले डर, शर्म और भावनात्मक आघात के कारण है?

आपको क्या लगता है कि एक आदमी जिस पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया जाता है वह किस स्थिति से गुजरता है? मैंने उन पुरुषों से बात की है जो इससे गुजरे हैं और वे अकथनीय दुःस्वप्न, कई दिनों तक सोने में असमर्थता, शर्म और भय की व्यापक भावना, सिरदर्द, अल्सर, अस्थमा और बड़े पैमाने पर तनाव से संबंधित शारीरिक बीमारियों के बारे में बात करते हैं। मेरे जानने वालों में से सिस्टम द्वारा दिखाई गई असंवेदनशीलता के कारण कई लोग आत्महत्या कर चुके हैं।

बरी होने के बाद भी, उनका जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहता है और कम से कम माननीय न्यायालय “आरोपी” का नाम छिपा सकता था। उसके नाम/पहचान के किसी भी उल्लेख को हटा सकता था। लेकिन अदालत ने इसे जारी रखने का विकल्प चुना। अदालत चाहता तो आदेश दे सकता था कि अभियोक्ता का नाम, असली अपराधी, गुमनाम रखते हुए उसका नाम छापो!

यहां तक कि एक सांकेतिक जुर्माना या सप्ताह भर की जेल भी कम से कम न्याय की कुछ भावना और समाज को एक संदेश प्रदान करती है कि एक आदमी की प्रतिष्ठा पंचिंग बैग नहीं है, बल्कि एक गिलास है जो केवल माफी से मरम्मत नहीं की जाती है!

D. क्या भारतीय न्यायपालिका महिला तुष्टिकरण में इतनी अंधी हो गई है कि वह अपने कार्यों के परिणामों को नहीं देख सकती है?

हम “बलात्कार संस्कृति” के संदर्भ सुनते रहते हैं, लेकिन अब हम जो देख रहे हैं वह “रेप इंडस्ट्री” है, जिसमें दर्ज किए गए 52 फीसदी बलात्कार के मामले झूठे हैं। (दिल्ली महिला आयोग द्वारा जारी डेटा के मुताबिक। हालांकि वास्तविक संख्या लगभग 78% होनी चाहिए, जैसा कि द हिंदू की रिपोर्ट में दावा किया गया है) उपरोक्त जैसे निर्णयों द्वारा सक्रिय रूप से महिलाओं को फर्जी केस दर्ज कराने की सुविधा और बढ़ावा दिया गया।

अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि अगर सड़क पर किसी लड़की के साथ दुर्घटना हो जाए, पड़ोसी के साथ किसी बात को लेकर विवाद हो जाए, कपल के रोमांटिक रिश्ते में खटास आ जाए, ऑफिस में बॉस द्वारा प्रमोशन से इनकार कर दी जाए आदि सभी ऐसे मामलों में लड़कियां तुरंत बलात्कार का आरोप लगाकर किसी भी बेगुनाह शख्स को जेल में डलवा सकती हैं। ऐसी परिस्थित में जांच पूरा होने तक लड़कों के पास समर्पण के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।

गुजारा भत्ता/पॉश/बलात्कार कानूनों के कारण जो महिलाओं को काम नहीं करने के लिए प्रोत्साहित करता है, भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां कार्य-बल में महिलाओं की भागीदारी वास्तव में कम हुई है। आज कॉर्पोरेट जगत के मेरे मित्र महिला कर्मचारियों को काम पर रखने से डर रहे हैं। युवक शादी से दूर भाग रहे हैं और युवा लड़कियां बिना मेहनत के फल पाने की उम्मीद कर रही हैं!

यह सार्वजनिक नीति के सभी सिद्धांतों के खिलाफ है कि “अभियोजन पक्ष” का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिससे उसे असंदिग्ध और अज्ञानी जनता पर ऐसे झूठे आरोपों को खुशी-खुशी दोहराने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

CJI रंजन गोगोई (तत्कालीन) पर सुप्रीम कोर्ट के एक कर्मचारी द्वारा सार्वजनिक रूप से “छेड़छाड़” का आरोप लगाया गया था। जाहिर तौर पर आरोप झूठा था। हालांकि, कर्मचारी को उन्हें फिर से बहाल करके पुरस्कृत किया गया था। मेरे दिमाग में इसने जेंडर आधारित आतंकवाद के एक नए रूप को उजागर किया है जो हमारे “सम्मानित” न्यायिक अधिकारियों के बच्चों और मार्टिन नीमोलर के शब्दों में कोई नहीं होगा आपके लिए बोलना बाकी है।

विडंबना यह है कि अंत में, अदालत का आचरण कम से कम कहने के लिए चौंकाने वाला और निंदनीय रहा है। भारतीय न्यायपालिका की “आम आदमी की सेवा करने योग्य” होने की क्षमता में विश्वास के अंतिम निशान को हटा रहा है!

लेखक के बारे में जानें

“मैं एक आम आदमी हूं, जिसने गुमनाम रहने का विकल्प चुना है। हालांकि, मुझे वास्तव में आशा है कि मेरी प्रतिक्रिया को सच्ची भावना से लिया जाएगा, जो न केवल झूठे आरोपी पुरुषों की मदद कर सकता है। बल्कि बलात्कार के कई वास्तविक पीड़ितों की भी मदद कर सकता है।

( यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं)

Feedback | Open Letter To Delhi High Court For Quashing Rape Charges Filed By Woman ‘Out Of Anger’

वौइस् फॉर मेंस के लिए दान करें!

पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।

इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।

योगदान करें! (80G योग्य)

हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.

सोशल मीडियां

Team VFMI

Team VFMI

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

योगदान करें! (80G योग्य)
  • Trending
  • Comments
  • Latest
mensdayout.com

पत्नी को 3,000 रुपए भरण-पोषण न देने पर पति को 11 महीने की सजा, बीमार शख्स की जेल में मौत

February 24, 2022
hindi.mensdayout.com

छोटी बहन ने लगाया था रेप का झूठा आरोप, 2 साल जेल में रहकर 24 वर्षीय युवक POCSO से बरी

January 1, 2022
hindi.mensdayout.com

Marital Rape Law: मैरिटल रेप कानून का शुरू हो चुका है दुरुपयोग

January 24, 2022
hindi.mensdayout.com

राजस्थान की अदालत ने पुलिस को दुल्हन के पिता पर ‘दहेज देने’ के आरोप में केस दर्ज करने का दिया आदेश

January 25, 2022
hindi.mensdayout.com

Swiggy ने महिला डिलीवरी पार्टनर्स को महीने में दो दिन पेड पीरियड लीव देने का किया ऐलान, क्या इससे भेदभाव घटेगा या बढ़ेगा?

1
voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

0
hindi.mensdayout.com

Maharashtra Shakti Bill: अब महाराष्ट्र में यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायत दर्ज करने वालों को होगी 3 साल तक की जेल और 1 लाख रुपये का जुर्माना

0
https://hindi.voiceformenindia.com/

पंजाब और हरियाणा HC ने 12 साल से पत्नी से अलग रह रहे पति की याचिका को किया खारिज, कहा- ‘तुच्छ आरोप तलाक का आधार नहीं हो सकते’, जानें क्या है पूरा मामला

0
voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पतियों पर हिंसा का आरोप लगाने वाली महिलाओं को मध्यस्थता के लिए भेजने के खिलाफ PIL दायर

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को स्वीकार करने वाली पत्नी बाद में तलाक के मामले में इसे क्रूरता नहीं कह सकती: दिल्ली HC

October 9, 2023
voiceformenindia.com

बहू द्वारा उत्पीड़न की शिकायत के बाद TISS की पूर्व डॉयरेक्टर, उनके पति और बेटे पर मामला दर्ज

October 9, 2023

सोशल मीडिया

नवीनतम समाचार

voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पतियों पर हिंसा का आरोप लगाने वाली महिलाओं को मध्यस्थता के लिए भेजने के खिलाफ PIL दायर

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को स्वीकार करने वाली पत्नी बाद में तलाक के मामले में इसे क्रूरता नहीं कह सकती: दिल्ली HC

October 9, 2023
voiceformenindia.com

बहू द्वारा उत्पीड़न की शिकायत के बाद TISS की पूर्व डॉयरेक्टर, उनके पति और बेटे पर मामला दर्ज

October 9, 2023
वौइस् फॉर मेंन

VFMI ने पुरुषों के अधिकार और लिंग पक्षपाती कानूनों के बारे में लेख प्रकाशित किए.

सोशल मीडिया

केटेगरी

  • कानून क्या कहता है
  • ताजा खबरें
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • हिंदी

ताजा खबरें

voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पतियों पर हिंसा का आरोप लगाने वाली महिलाओं को मध्यस्थता के लिए भेजने के खिलाफ PIL दायर

October 9, 2023
  • होम
  • हमारे बारे में
  • विज्ञापन के लिए करें संपर्क
  • कैसे करें संपर्क?

© 2019 Voice For Men India

No Result
View All Result
  • होम
  • ताजा खबरें
  • कानून क्या कहता है
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • योगदान करें! (80G योग्य)
  • Voice for Men English

© 2019 Voice For Men India