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Home हिंदी कानून क्या कहता है

जब बच्चा तर्कसंगत निर्णय लेने के लिए सक्षम हो तो, चाइल्ड कस्टडी मामलों में माता-पिता की मांग महत्वपूर्ण नहीं होती है: केरल HC

Team VFMI by Team VFMI
February 20, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Indian Army Can Grant Family Pension To Ex-Serviceman's Second Wife Even If First Marriage Not Legally Dissolved: Kerala High Court

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केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में चाइल्ड कस्टडी के एक मामले में सुनवाई के दौरान अपने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि माता-पिता की मांगों को तब बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है, जब बच्चा तर्कसंगत निर्णय लेने के लिए पर्याप्त रूप से बड़ा या सक्षम हो गया हो। जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और पीजी अजित कुमार की खंडपीठ ने एक पिता द्वारा अपने 16 वर्षीय बेटे की कस्टडी की मांग वाली याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की।

क्या है पूरा मामला?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता पिता और लड़के की मां 2020 तक पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे थे। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि बिना पर्याप्त कारण के प्रतिवादी मां ने बच्चे के साथ अपना साथ छोड़ दिया। वहीं, लड़के की मां ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता किसी अन्य महिला के साथ विवाहेतर संबंध रखता है, यही वजह है कि उनका सहवास जारी नहीं रह सका। फैमिली कोर्ट ने लड़के की कस्टडी उसकी मां को दे दी और पिता को मुलाकात का अधिकार दिया। पिता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

हाई कोर्ट का आदेश

जब हाई कोर्ट ने लड़के से बातचीत की तो उसने अपनी मां के साथ रहने की इच्छा जताई। खंडपीठ ने कहा कि बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बच्चे के निर्णय पर विचार किया जाना चाहिए कि वह किसके साथ रहना चाहता है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। चूंकि वह बड़ा हो गया है और अपने व्यक्तिगत मामलों में तर्कसंगत निर्णय लेने में सक्षम है, माता-पिता की मांगों को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है।

अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि फैमिली कोर्ट ने कहा कि लड़के की रात भर की कस्टडी पिता को नहीं दी जा सकती, क्योंकि लड़का व्हीलचेयर का इस्तेमाल करता था और उसकी मां उसे स्कूल से दोपहर में लेने जाती थी ताकि वह अपने दैनिक कार्यों में मदद कर सके। विभिन्न मिसालों का जिक्र करने के बाद कोर्ट ने कहा कि चूंकि लड़का बड़ा हो गया है और अपने व्यक्तिगत मामलों में तर्कसंगत निर्णय लेने में सक्षम है, इसलिए माता-पिता की मांगों को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है।

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि बच्चे की भलाई के लिए माता-पिता दोनों के साथ कुछ संबंध होना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि बेशक, जब बच्चा मां के साथ रह रहा है, तो पिता को बच्चे के साथ बातचीत करने की इजाजत होनी चाहिए। यह आवश्यक है कि बच्चा माता-पिता दोनों के साथ भावनात्मक बंधन और गर्मजोशी बनाए रखे जो उसकी उचित परवरिश में मदद करता है। बच्चे की शारीरिक स्थिति और उसके दिन-प्रतिदिन के मामलों के लिए आवश्यक विशेष जरूरतों और सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए, हम मानते हैं कि याचिकाकर्ता को बच्चे की रात भर की कस्टडी देना अनुकूल और बच्चे के हित में नहीं है।

मां को दे दी कस्टडी

इसलिए, अदालत ने लड़के की कस्टडी उसकी मां को दे दी। लेकिन हर दूसरे और चौथे शनिवार को सुबह 10:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक याचिकाकर्ता से मिलने का अधिकार देकर फैमिली कोर्ट के आदेश को संशोधित कर दिया।

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