बॉम्बे हाई कोर्ट ( Bombay High Court) की जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस गौरी गोडसे की खंडपीठ ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों के जीवन और भाग्य पर पूर्ण अधिकार है, लेकिन पैरेंट्स में से कोई भी बच्चे को दूसरे माता-पिता का साथ पाने से वंचित नहीं कर सकता।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट 8 वर्षीय बच्चे के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो अपनी मां और मां के दूसरे पति के साथ उडुपी में पढ़ रहा था। 15 जून, 2023 को मां के वकील ने अदालत को सूचित किया कि पिता 23 और 24 जून को सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक बच्चे से मिल सकते हैं। हालांकि, 23 जून को कोर्ट को बताया गया कि पिता को अपने 8 साल के बेटे से मिलने की इजाजत नहीं है।
जवाब में खंडपीठ ने मां को 3 जुलाई, 2023 को बच्चे को अदालत के सामने पेश करने का निर्देश दिया। उस दिन, पत्नी अपने दूसरे पति और अपने बेटे के साथ अदालत में पेश हुई। पिता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि नवंबर 2023 में सिविल जज द्वारा एक कस्टडी आदेश पारित किया गया था, जिसमें बच्चे की कस्टडी मां को दी गई थी।
हालांकि, सिविल कोर्ट ने पिता को गणपति, दिवाली, दशहरा, होली, गुड़ी पड़वा जैसे त्योहारों के दौरान और हर महीने में दो बार बच्चे से मिलने की अनुमति दी। इसके अतिरिक्त, सहमति शर्तों के खंड 7 में कहा गया है कि बच्चे को पिता की अनुमति के बिना स्टेशन से बाहर नहीं ले जाया जाएगा।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां माता-पिता को अपने बच्चों के भाग्य और जीवन पर पूर्ण अधिकार होगा, पैरेंट्स में से कोई भी इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकता है जिससे बच्चे को दूसरे माता-पिता की संगति से वंचित किया जा सके। ऐसा आचरण माता-पिता बच्चे के हित और कल्याण के खिलाफ हैं। साथ ही बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए हानिकारक हैं। चैंबर में बच्चे के साथ बातचीत करने के बाद हाई कोर्ट ने दूसरे पति के आचरण पर नाराजगी व्यक्त की, जिसने बच्चे को यह विश्वास दिलाया था कि याचिकाकर्ता उनका पिता नहीं है, बल्कि दूसरा पति उसका पिता है।
पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि मां और दूसरा पति बच्चे को यह सुनिश्चित करने के लिए धमकी दे रहे थे कि वह अपने जैविक पिता से न मिल सके। अदालत ने कहा, “हमें हमारे स्टाफ द्वारा सूचित किया गया कि बच्चे के साथ हमारी बातचीत के बाद जब उसको याचिकाकर्ता के साथ हमारे चैंबर के बाहर बैठने के लिए कहा गया, तो प्रतिवादी नंबर 3 और उसका दूसरा पति न केवल बच्चे को यह सुनिश्चित करने के लिए धमका रहे थे कि वह याचिकाकर्ता से बात न करे। लेकिन जब बच्चे ने याचिकाकर्ता से मिलने का प्रयास किया तो उसे डांटा भी। संबंधित पक्षों की ओर से पेश वकीलों के प्रति उनका आचरण भी आक्रामक था। प्रतिवादी नंबर 3 और उसके दूसरे पति के ऐसे आचरण को देखते हुए, हमें पुलिस को बुलाने की आवश्यकता पड़ी। हमारा चैंबर यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिवादी नंबर 3 और उसका दूसरा पति कोई अप्रिय घटना न पैदा करें।”
खंडपीठ ने बच्चे को उसके पिता के साथ रहने की अनुमति देते हुए कहा कि अदालत नाबालिग बच्चे के सर्वोत्तम हित के लिए असाधारण क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल कर सकती है और प्रत्येक बच्चा माता-पिता दोनों के प्यार और स्नेह का हकदार है। अदालतने कहा, “इस संबंध में कानून बहुत स्पष्ट है कि अदालत नाबालिग बच्चे के सर्वोत्तम हित के लिए असाधारण क्षेत्राधिकार लागू कर सकती है। प्रत्येक बच्चा माता-पिता दोनों के प्यार और स्नेह का हकदार है। एक माता-पिता से अलग हुए बच्चे को प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक प्रभाव का सामना करना पड़ता है। जब भी किसी नाबालिग बच्चे की कस्टडी के संबंध में अदालत के समक्ष कोई सवाल उठता है, तो विचार के लिए एकमात्र और प्रमुख मानदंड केवल बच्चे का कल्याण और सर्वोत्तम हित होता है।”
अदालत ने अपने 3 जुलाई के आदेश में पिता को 6 जुलाई तक अपने बेटे के साथ रहने की इजाजत दी थी। हाई कोर्ट ने 6 जुलाई के अपने आदेश में दर्ज किया कि 8 वर्षीय बच्चा अपने पिता के साथ 2 दिन और रहना चाहता था और फिर वह स्कूल जाने के लिए उडुपी वापस जाना चाहता था।
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