दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक असामान्य प्रार्थना वाला मामला करार देते हुए एक महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें रोहिणी में एक DNA प्रोफाइलिंग एजेंसी के समक्ष अपने पति और ससुर को अपने डीएनए सैंपल जमा करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला ने अपने दो बच्चों के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जब उसके ससुर ने कथित तौर पर यह दावा करके उनकी पहचान पर संदेह जताया था कि वे मेहता नहीं बल्कि अरोड़ा हैं।
हाई कोर्ट का आदेश
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने अपने फैसले में कहा कि याचिका में प्रार्थना बेहद अस्पष्ट है। हालांकि, अदालत ने कहा कि डीएनए टेस्ट की मांग की जा रही है। अदालत ने कहा, “यह स्थापित कानूनी स्थिति है कि डीएनए टेस्ट का आदेश बहुत कम मात्रा में दिया जाना चाहिए और इस रिट याचिका में लगाए गए आरोपों के आधार पर निर्देशित नहीं किया जा सकता है।”
अदालत ने भबानी प्रसाद जेना बनाम संयोजक सचिव उड़ीसा राज्य महिला आयोग पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया था कि डीएनए टेस्टिंग का उपयोग करके पितृत्व परीक्षण को अनिवार्य करना अदालत के लिए कब उचित है।
कोर्ट ने कहा कि DNA टेस्ट के संबंध में अदालत को अपने विवेक का उपयोग पार्टियों के हितों को संतुलित करने के बाद ही करना चाहिए। जस्टिस सिंह ने शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि एक व्यक्ति के निजता के अधिकार के बीच एक संघर्ष, जिसे सच्चाई तक पहुंचने के लिए टेस्ट और अदालत के कर्तव्य के लिए मजबूर किया जा रहा है।
यह देखते हुए कि वर्तमान मामले में डीएनए टेस्ट के अनुरोध को स्वीकार करने की कोई आवश्यकता नहीं है, पीठ ने कहा कि वह इस तथ्य पर भी विचार कर रही है कि महिला और उसके पति के बीच कोई वैवाहिक विवाद लंबित नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि इसके अलावा, जब याचिकाकर्ता का पति याचिकाकर्ता और बच्चों की पहचान को चुनौती नहीं दे रहा है, तो ऐसी प्रार्थना पूरी तरह से अनुचित है। यह निर्धारित करना कि क्या याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 2 (पति) प्रतिवादी संख्या 3 (ससुर) से संबंधित हैं या नहीं।
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता या उनके पति कानून के अनुसार सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं और जरूरत पड़ने पर परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा लगाए जा रहे किसी भी आरोप के संबंध में उचित राहत मांग सकते हैं। अदालत ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि अगर ऐसी कोई कार्यवाही दायर की जाती है, तो वह कानून के अनुसार आगे बढ़ेगी।
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