कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 417 (धोखाधड़ी की सजा) के तहत उस शख्स को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया, जिस पर अपनी पिछली शादी के खत्म होने के बाद उससे शादी करने के वादे पर महिला को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए उसकाने का आरोप लगाया गया था। जस्टिस सिद्धार्थ रॉय चौधरी की सिंगल जज पीठ ने कहा कि महिला स्थिति से अवगत थी और फिर भी उसने आरोपी के साथ रहने का फैसला किया, इसलिए तलाक के बाद शादी का वादा अपने आप में धोखा नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
न्यूज 18 के मुताबिक, गौरव बीर बासनेत (Gaurav Bir Basnet) ने अलीपुर की ट्रायल कोर्ट के सजा के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी। निचली अदालत ने उन्हें धोखाधड़ी के अपराध में दोषी करार देते हुए एक लाख रुपये जुर्माना भरने की सजा सुनाई थी। अपीलकर्ता शीदीशुदा व्यक्ति है और उसकी एक बेटी है। इसमें से 8,00,000 रुपये मुआवजे के रूप में पीड़ित को भुगतान किया जाना था, और 2,00,000 रुपये राज्य के खजाने में जमा किए जाने थे।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, महिला आरोपी अपीलकर्ता के साथ उसके अपार्टमेंट में रहने के लिए तैयार हो गई थी। आरोपी ने महिला के माता-पिता से बात की और उन्हें अपनी पहली पत्नी से तलाक लेने का आश्वासन दिया। बाद में फरवरी 2015 में अपीलकर्ता ने तलाक लेने में असमर्थता व्यक्त की, क्योंकि इससे उसकी बेटी के साथ-साथ समाज में उसके परिवार की प्रतिष्ठा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके बाद पीड़िता ने अपीलकर्ता के खिलाफ IPC की धारा 417 और धारा 376 के तहत FIR दर्ज कराई।
महिला ने कहा कि बिल्डिंग में सभी ने सोचा कि वे 11 महीने से शादीशुदा हैं। वे साथ में ट्रिप पर भी जाते थे। 14 फरवरी 2015 को कपल मुंबई के लिए रवाना हुआ। वापस आने के बाद उन्होंने तलाक लेने के फैसले से इनकार कर दिया, क्योंकि इससे उनकी बेटी के साथ-साथ समाज में उनके परिवार की प्रतिष्ठा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। निचली अदालत के आदेश से व्यथित होकर आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील दायर की।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद पाया कि महिला को पता था कि अपीलकर्ता शादीशुदा है और उसकी एक बेटी भी है। हालांकि, वह आपसी सहमति से अपनी पत्नी से अलग रह रहा है। लेकिन इसके बाद भी वह उस आदमी के साथ रहने के लिए तैयार हो गई। वह उसके फ्लैट में चली गई, क्योंकि अपीलकर्ता ने अपनी पहली शादी के तलाक कार्रवाई के बाद उससे शादी करने का वादा किया था।
अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्ति द्वारा किया गया विवाह का वादा साधारण वादा नहीं था। यह उसकी शादी के विघटन पर आकस्मिक था, जो निर्वाह था। पीड़िता स्थिति से वाकिफ थी और उसने आरोपी के साथ रहने का फैसला किया। अभियुक्त व्यक्ति के पास विवाह को भंग करने की क्षमता नहीं थी, या तो उसकी पत्नी को सहमत होना होगा या उसे तलाक के लिए डिक्री के लिए मामला बनाना होगा।
कोर्ट ने कहा कि इसलिए इस तरह के रिश्ते की शुरुआत से ही अनिश्चितता का तत्व मौजूद था। पीड़ित ने जानबूझकर अनिश्चितता के ऐसे जोखिम को स्वीकार किया। ‘बदला हुआ आदमी’ तलाक नहीं ले सकता। इसलिए तलाक के बाद शादी का वादा अपने आप में धोखा नहीं है।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को साबित करने में सक्षम नहीं था और ट्रायल कोर्ट ने सजा के आदेश को रिकॉर्ड करने में त्रुटि की। इसके साथ ही पीठ ने अपील की अनुमति दी और IPC की धारा 417 के तहत कथित अपराध के लिए दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को कथित अपराध से बरी कर दिया।
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