सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 22 सितंबर को कहा कि वह कानून के मुद्दे पर हस्तक्षेप कर सकता है, लेकिन भारतीय सेना के मामले नहीं चला सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला कर्नल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालतें सेना को संचालित नहीं कर सकतीं। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें आरोप लगाया गया था कि जब सेना इकाइयों की कमान देने की बात आई तो महिला अधिकारियों के साथ भेदभाव किया गया।
क्या है पूरा मामला?
महिला कर्नल को सैनिकों की एक कंपनी का प्रभार सौंपा गया था, जिसकी कमान आमतौर पर दो रैंक ज्यूनियर मेजर के पास होती है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ तीन मामलों की संयुक्त सुनवाई कर रही थी, जिनमें दो याचिकाएं थलसेना की महिला अधिकारियों और एक याचिका नौसेना की महिला अधिकारियों की ओर से दायर की गयी थी। इन याचिकाओं में पदोन्नति सहित कई मुद्दे उठाए गए हैं।
पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने न्यायालय को अवगत कराया कि महिला कर्नल को एक कंपनी का प्रभार सौंप दिया गया है, जबकि इसका नेतृत्व आमतौर पर मेजर रैंक का अधिकारी करता है।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हम अब सेना के कामकाज को संचालित नहीं कर सकते। अदालत ने कहा, “हम विधि संबंधी मामलों में हस्तक्षेप करते हैं।” कोर्ट ने कहा, “निश्चित तौर पर हम सेना की कमांड संरचना को संचालित करना शुरू नहीं कर सकते हैं।” अधिकारी ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जहां एक महिला अधिकारी को स्थायी कमीशन दिया गया है और वह सेना में एक कर्नल है। अरोड़ा ने कहा कि यह उस महिला अधिकारी का ‘घोर अपमान’ है, जो अब कर्नल है।
इस पर पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, ‘आपने अब शिकायत सुन ली है।’ शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को तय करते हुए कहा कि कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें निश्चित रूप से अधिकारी स्वयं ही सुलझा सकते हैं। पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे दो पृष्ठों का एक नोट जारी करें, जिसमें उनकी शिकायतें बताई गई हों।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी अधिकारी उठाए गए मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने के लिए स्वतंत्र होंगे। हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि इन कार्यवाहियों के लंबित रहने से सेना और नौसेना अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर गौर करने और उनके निवारण से नहीं रोका जाएगा।
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.