इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि यदि बलात्कार पीड़िता मुकदमे की कार्यवाही के दौरान अपने बयान से मुकर जाती है तो उसे दिए गए मुआवजे की वसूली की जाए। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यूपी सरकार से कहा है कि इस मामले में संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करें। कोर्ट ने अपने वरिष्ठ रजिस्ट्रार को आवश्यक अनुपालन के लिए मुख्य सचिव को आदेश की एक कॉपी भेजने का भी निर्देश दिया। अदालत ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख अगस्त के दूसरे सप्ताह में तय की है और उत्तर प्रदेश सरकार को प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने उन्नाव जिले में दुष्कर्म के एक आरोपी को जमानत देते हुए उपरोक्त आदेश पारित किया। सुनवाई के दौरान अदालत को सूचित किया गया कि पीड़िता ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया और यह कहते हुए अपने बयान से मुकर गई कि वह उस व्यक्ति को पहचान नहीं सकती। इतना ही नहीं उसके भाई ने भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया।
हाई कोर्ट का आदेश
जस्टिस बीआर सिंह की पीठ ने कहा कि मेरी राय में यदि पीड़ित अपने बयान से मुकर गई है और अभियोजन पक्ष के मामले का बिल्कुल समर्थन नहीं करता है, तो पीड़ित को भुगतान की गई राशि की वसूली करना उचित है। अदालत ने कहा कि पीड़ित वह व्यक्ति है जो अदालत के सामने आता है और मुकदमे के दौरान अगर वह बलात्कार के आरोप से इनकार करती है और शत्रुतापूर्ण हो जाती है, तो राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली मुआवजे की राशि को रखने का कोई औचित्य नहीं है।
साथ ही जस्टिस सिंह ने कहा कि राज्य के खजाने पर इस तरह बोझ नहीं डाला जा सकता है। इससे कानूनों के दुरुपयोग की पूरी संभावना है। हाई कोर्ट ने आगे कहा कि इसलिए पीड़ित या परिवार के सदस्य को दी गई मुआवजे की राशि संबंधित अधिकारियों द्वारा वसूल की जा सकती है, जिन्होंने मुआवजे का भुगतान किया है। शख्स को जमानत देते हुए अदालत ने बलात्कार और POCSO एक्ट के मामलों में फर्जी आरोप लगाकर सरकार से मुआवजा लेने की प्रथा पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
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