• होम
  • हमारे बारे में
  • विज्ञापन के लिए करें संपर्क
  • कैसे करें संपर्क?
Voice For Men
Advertisement
  • होम
  • ताजा खबरें
  • कानून क्या कहता है
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • योगदान करें! (80G योग्य)
  • Voice for Men English
No Result
View All Result
  • होम
  • ताजा खबरें
  • कानून क्या कहता है
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • योगदान करें! (80G योग्य)
  • Voice for Men English
No Result
View All Result
Voice For Men
No Result
View All Result
Home हिंदी कानून क्या कहता है

बच्चे के इलाज की जिम्मेदारी लेने से इनकार करना IPC की धारा 498-A के तहत क्रूरता नहीं है: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट

Team VFMI by Team VFMI
April 7, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Muslim father taking away minor male children above 7 years from mother's custody will not amount to kidnapping: Andhra Pradesh High Court

22
VIEWS
Share on FacebookShare on TwitterWhatsappTelegramLinkedin

यह फैसला देते हुए कि बच्चे की उपेक्षा करना और उसके इलाज की जिम्मेदारी लेने से इनकार करना धारा 498-A या भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 506 के तहत आपराधिक धमकी के दायरे में नहीं आता है, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने हाल ही में एक फैसले को रद्द कर दिया। मामले में एक महिला ने अपने पति एवं ससुराल वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया था।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ के मुताबिक, नवंबर 2011 में शिकायतकर्ता पत्नी और याचिकाकर्ता पति की शादी हुई थी। बाद में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति और ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित किया। उसका आरोप था कि उसके माता-पिता से पैसे ऐंठने के मकसद से उसे प्रताड़ित किया गया। सितंबर 2015 में पत्नी को एक बेटा पैदा हुआ। उसके बाद उसे कथित रूप से उसके ससुराल भेज दिया गया। उस दौरान न तो उसके पति और न ही उसके ससुराल वालों में से किसी ने भी उसकी या बेटे की देखभाल करने की जहमत नहीं उठाई।

पत्नी के आरोपों के मुताबिक उसके बेटे के अंडकोष में कुछ दिक्कत थी और उसका ऑपरेशन करना पड़ा। इस दौरान याचिकाकर्ता पति या ससुराल वालों ने किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं की। ऐसी कथित परिस्थितियों में उसके द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ IPC की धारा 498-A, 506, 354 r/w 34 के तहत अपराध के लिए शिकायत दर्ज की गई थी। जांच के आधार पर, अतिरिक्त जूनियर सिविल जज नरसरावपेट ने IPC की धारा 498-A, 509, 506, 354 r/w 34 के तहत अपराधों के लिए मामले का संज्ञान लिया था।

पति का तर्क

इसके बाद याचिकाकर्ताओं (पति और ससुराल वालों) ने मामले को रद्द करने के लिए आपराधिक याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि इस शिकायत पर विचार नहीं किया जा सकता था, क्योंकि यह CrPC की धारा 468 के तहत निर्धारित समय सीमा से परे दायर की गई थी। उन्होंने आगे कहा कि संज्ञान का आदेश, मजिस्ट्रेट की संतुष्टि प्रकट करने वाले किन्हीं कारणों से रहित होने के अलावा, मजिस्ट्रेट द्वारा स्पष्ट रूप से विचार न करने के कारण भी त्रुटिपूर्ण है।

वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक बार IPC की धारा 354 को चार्जशीट से बाहर कर दिया जाता है, तो अन्य सभी अपराधों में तीन साल से अधिक की सजा नहीं होती है और इन प्रावधानों के तहत शिकायत दर्ज करने की सीमा अपराध की तारीख से तीन साल होगी। उन्होंने तर्क दिया कि इस मामले में, सभी आरोप नवंबर, 2015 से पहले के अपराधों से संबंधित हैं, जबकि शिकायत मई 2019 में दर्ज की गई थी, जो स्पष्ट रूप से तीन साल की अवधि से परे है।

पत्नी का तर्क

वहीं, शिकायतकर्ता-पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि नवंबर 2015 में अपने माता-पिता के घर लौटने के बाद भी उत्पीड़न जारी रहा। उसने दावा किया कि उसे और उसके बच्चे दोनों को उपेक्षित किया गया और उनके खराब स्वास्थ्य के बावजूद अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए मजबूर किया गया।

इस उत्पीड़न के उदाहरण के रूप में वकील ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी उसके बच्चे के मुंडन समारोह में भाग नहीं लिया। इसके अलावा, उसने कहा कि इसके बाद भी उत्पीड़न जारी रहा क्योंकि याचिकाकर्ता पति या ससुराल वालों द्वारा बच्चे का कोई इलाज नहीं कराया गया था और 2018 में जब उसकी सर्जरी की गई थी तो उस समय कोई भी मौके पर नहीं आया था।

हाई कोर्ट

दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस आर. रघुनंदन राव ने फैसला दिया कि ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 498-A, 354, 506 r/w 34 के तहत संज्ञान लिया था। हालांकि, अदालत ने कहा कि धारा 354 के तहत संज्ञान क्यों लिया गया था। इसका कोई रिकॉर्डेड कारण नहीं था। जबकि जांच अधिकारी ने उस प्रावधान को हटा दिया था, और न ही कोई स्पष्टीकरण था कि धारा 509 के तहत संज्ञान क्यों नहीं लिया गया था जब जांच अधिकारी इसे चार्जशीट में शामिल किया था। अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेने के लिए उनकी संतुष्टि को निर्धारित करते हुए एक संक्षिप्त नोट भी दर्ज नहीं किया था।

पीठ ने कहा कि विवेक के स्पष्ट उपयोग को देखते हुए इस न्यायालय को संज्ञान के उक्त आदेश को रद्द करना होगा। हालांकि, संज्ञान के आदेश को अलग करने से केवल मामले को मजिस्ट्रेट को रिमांड पर भेजा जाएगा और इस मामले में उठाए गए मुद्दे याचिकाकर्ता अनुत्तरित रहेंगे। इसके अलावा, अदालत ने स्पष्ट किया कि वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत उसके माता-पिता के घर लौटने के तीन साल से अधिक समय बाद दायर की गई थी, जो निर्धारित समय सीमा से परे है। इसके परिणामस्वरूप IPC की धारा 498-A, 509 या 506 के तहत परिवाद को समयबद्ध किया जाएगा।

अदालत ने तब इस सवाल पर विचार किया कि क्या पत्नी द्वारा कथित आगे की घटनाओं को उत्पीड़न के ऐसे कृत्यों के लिए माना जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप परिसीमा की अवधि बढ़ाई जाएगी। कोर्ट ने कहा कि बाद की अवधि के संबंधों में आरोप उपेक्षा और वास्तविक शिकायतकर्ता या उसके बच्चे से मिलने या मिलने से इनकार करने के आरोप हैं। यह देखना होगा कि क्या यह व्यवहार चार्जशीट में निहित किसी भी प्रावधान को आकर्षित करेगा।

IPC की धारा 506 और 509 का अवलोकन करने के बाद अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप, वास्तविक शिकायतकर्ता के बच्चे के इलाज की जिम्मेदारी लेने से इनकार करने और उपेक्षा करने के लिए इनमें से किसी भी प्रावधान के तहत नहीं आएंगे।” कोर्ट ने तब विचार किया कि क्या उपेक्षा की ऐसी कार्रवाई IPC की धारा 498-A के दायरे में आएगी। अदालत ने कहा कि यह उपेक्षा की कार्रवाई IPC की धारा 498-A के दायरे में नहीं आएगी।

अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में यह मानना होगा कि वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायत, Cr.P.C की धारा 468 के तहत निर्धारित अवधि से परे है। इसने आगे कमलेश कालरा बनाम शिल्पिका कालरा और अन्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले का उल्लेख किया और कहा कि यह माना गया है कि कपल के अलग होने के तीन साल से अधिक समय बाद दर्ज की गई शिकायत को परिसीमन से रोकना होगा। इसके साथ ही आपराधिक याचिका की अनुमति दे दी गई और प्रथम अतिरिक्त जूनियर सिविल जज नरसरावपेट की फाइल पर मामला खारिज कर दिया गया।

वौइस् फॉर मेंस के लिए दान करें!

पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।

इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।

योगदान करें! (80G योग्य)

हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.

सोशल मीडियां

Team VFMI

Team VFMI

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

योगदान करें! (80G योग्य)
  • Trending
  • Comments
  • Latest
mensdayout.com

पत्नी को 3,000 रुपए भरण-पोषण न देने पर पति को 11 महीने की सजा, बीमार शख्स की जेल में मौत

February 24, 2022
hindi.mensdayout.com

छोटी बहन ने लगाया था रेप का झूठा आरोप, 2 साल जेल में रहकर 24 वर्षीय युवक POCSO से बरी

January 1, 2022
hindi.mensdayout.com

Marital Rape Law: मैरिटल रेप कानून का शुरू हो चुका है दुरुपयोग

January 24, 2022
hindi.mensdayout.com

राजस्थान की अदालत ने पुलिस को दुल्हन के पिता पर ‘दहेज देने’ के आरोप में केस दर्ज करने का दिया आदेश

January 25, 2022
hindi.mensdayout.com

Swiggy ने महिला डिलीवरी पार्टनर्स को महीने में दो दिन पेड पीरियड लीव देने का किया ऐलान, क्या इससे भेदभाव घटेगा या बढ़ेगा?

1
voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

0
hindi.mensdayout.com

Maharashtra Shakti Bill: अब महाराष्ट्र में यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायत दर्ज करने वालों को होगी 3 साल तक की जेल और 1 लाख रुपये का जुर्माना

0
https://hindi.voiceformenindia.com/

पंजाब और हरियाणा HC ने 12 साल से पत्नी से अलग रह रहे पति की याचिका को किया खारिज, कहा- ‘तुच्छ आरोप तलाक का आधार नहीं हो सकते’, जानें क्या है पूरा मामला

0
voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पतियों पर हिंसा का आरोप लगाने वाली महिलाओं को मध्यस्थता के लिए भेजने के खिलाफ PIL दायर

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को स्वीकार करने वाली पत्नी बाद में तलाक के मामले में इसे क्रूरता नहीं कह सकती: दिल्ली HC

October 9, 2023
voiceformenindia.com

बहू द्वारा उत्पीड़न की शिकायत के बाद TISS की पूर्व डॉयरेक्टर, उनके पति और बेटे पर मामला दर्ज

October 9, 2023

सोशल मीडिया

नवीनतम समाचार

voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पतियों पर हिंसा का आरोप लगाने वाली महिलाओं को मध्यस्थता के लिए भेजने के खिलाफ PIL दायर

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को स्वीकार करने वाली पत्नी बाद में तलाक के मामले में इसे क्रूरता नहीं कह सकती: दिल्ली HC

October 9, 2023
voiceformenindia.com

बहू द्वारा उत्पीड़न की शिकायत के बाद TISS की पूर्व डॉयरेक्टर, उनके पति और बेटे पर मामला दर्ज

October 9, 2023
वौइस् फॉर मेंन

VFMI ने पुरुषों के अधिकार और लिंग पक्षपाती कानूनों के बारे में लेख प्रकाशित किए.

सोशल मीडिया

केटेगरी

  • कानून क्या कहता है
  • ताजा खबरें
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • हिंदी

ताजा खबरें

voiceformenindia.com

पंजाब एंड हरियाणा HC ने विवाहित पुरुष और तलाकशुदा महिला के साथ रहने पर जताई आपत्ति, व्यक्ति की पत्नी को 25,000 रुपये देने का दिया आदेश

October 9, 2023
voiceformenindia.com

पतियों पर हिंसा का आरोप लगाने वाली महिलाओं को मध्यस्थता के लिए भेजने के खिलाफ PIL दायर

October 9, 2023
  • होम
  • हमारे बारे में
  • विज्ञापन के लिए करें संपर्क
  • कैसे करें संपर्क?

© 2019 Voice For Men India

No Result
View All Result
  • होम
  • ताजा खबरें
  • कानून क्या कहता है
  • सोशल मीडिया चर्चा
  • पुरुषों के लिए आवाज
  • योगदान करें! (80G योग्य)
  • Voice for Men English

© 2019 Voice For Men India