छेड़छाड़, वेश्या और हाउस वाइफ जैसे शब्द जल्द ही कानूनी शब्दावली से बाहर हो सकते हैं। इसकी जगह सड़क पर यौन उत्पीड़न, यौनकर्मी और होममेकर जैसे शब्द ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अगस्त को एक हैंडबुक लॉन्च किया, जिसमें अनुचित लैंगिक शब्दों की शब्दावली है और इनकी जगह वैकल्पिक शब्द सुझाए गए हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार सुबह घोषणा की कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णयों और अदालती भाषा में लैंगिक रूढ़िवादिता से भरे शब्दों के उपयोग को पहचानने और हटाने के लिए “लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने पर एक हैंडबुक” तैयार की है।
CJI ने की घोषणा
जैसे ही CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बहस सुनने के लिए बैठी, चीफ जस्टिस ने हैंडबुक के विमोचन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह जजों और कानूनी समुदाय को कानूनी चर्चा में महिलाओं के बारे में रूढ़िवादी सोच को पहचानने, समझने और बदलने में सहायता करने के लिए है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में, शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’ (लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने संबंधी पुस्तिका) का उद्देश्य जजों और कानूनी समुदाय के सदस्यों को महिलाओं के बारे में हानिकारक रूढ़िवादी सोच को पहचानने, समझने और उसका प्रतिकार करने के लिए सशक्त बनाना है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि हैंडबुक में लैंगिग रूप से अनुचित शब्दों की एक शब्दावली दी गई है और दलीलों, आदेशों और निर्णयों सहित कानूनी दस्तावेजों में उपयोग के लिए उनके वैकल्पिक शब्द और प्रस्तावित वाक्यांश दिए गए हैं। संकलन महिलाओं के बारे में आम रूढ़िवादी सोच की पहचान करता है और इन रूढ़िवादी अशुद्धियों को प्रदर्शित करता है और दर्शाता है कि वे कानून के अनुप्रयोग को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
इसमें कहा गया है कि 30 पन्नों वाली हैंडबुक महत्वपूर्ण मुद्दों, विशेषकर यौन हिंसा से जुड़े मुद्दों पर प्रचलित कानूनी सिद्धांत को भी समाहित करती है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि अपनी संपूर्णता में, हैंडबुक का उद्देश्य न्यायाधीशों को अपने स्वयं के तर्क, लेखन का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने के लिए ज्ञान और उपकरणों से लैस करना है और यह सुनिश्चित करना है कि न्याय निष्पक्ष और न्यायसंगत रूप से पेश किया जाए। यह न्यायोचित लैंगिकता आधारित कानूनी व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इन शब्द नहीं कर पाएंगे इस्तेमाल
हैंडबुक में कहा गया है कि ‘मायाविनी’, ‘वेश्या’ या ‘बदचलन औरत’ जैसे शब्दों का उपयोग करने के बजाय ‘महिला’ शब्द का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें ‘देह व्यापार’ और ‘वेश्या’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई गई है और कहा गया है कि इसके स्थान पर ‘यौन कर्मी’ शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा।
इसमें आगे कहा गया है कि ‘सहवासिनी या रखैल’ जैसे शब्दों का उपयोग करने के बजाय, ‘वह महिला जिसके साथ किसी पुरुष ने शादी के बाहर प्रेम संबंध या यौन संबंध बनाए हैं’ अभिव्यक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए।
इसमें कहा गया है कि ‘छेड़छाड़’ शब्द को अब ‘सड़क पर यौन उत्पीड़न’ कहा जाएगा। साथ ही, इसमें कहा गया है कि ‘समलैंगिक’ शब्द के बजाय, व्यक्ति के यौन रुझान का सटीक वर्णन करने वाले शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
इसके अलावा ‘गृहिणी’ (हाउस वाइफ) शब्द की जगह और विधिक विमर्श में ‘गृह स्वामिनी’ (होममेकर) का इस्तेमाल किया जाएगा। बयान में कहा गया है कि ‘नाजायज’ शब्द के बजाय ‘गैर-वैवाहिक संबंधों से पैदा हुआ बच्चा या, ऐसा बच्चा जिसके माता-पिता विवाहित नहीं थे’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
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