बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सहमति की शर्तें शामिल पक्षों पर पारस्परिक दायित्व पैदा करती हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि तलाक की कार्यवाही में पत्नी के लिए “सहमति की शर्तों से लाभ स्वीकार करने के बाद उससे पीछे हटने” की अनुमति नहीं है। पिछले साल पति द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस अमित बोरकर की सिगल जज पीठ ने 11 सिंतबर को पत्नी को निर्देश दिया कि वह दो महीने के भीतर तलाक के लिए सहमति की शर्तों के तहत सौदे को अपने पास रखे और इससे पीछे न हटे।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, हाई कोर्ट पति की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि पत्नी सहमति की शर्तों का पालन करने से इनकार कर रही है। पति 17 अगस्त, 2022 के उस आदेश को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट का रूख किया, जिसमें निचली अदालत ने 30 सितंबर, 2020 के समझौते का सम्मान करने के लिए अपनी अलग रह रही पत्नी को निर्देश देने की उसकी याचिका खारिज कर दी थी।
कपल ने 2007 में शादी की थी। उनका एक नाबालिग बच्चा है। 2018 में पति ने पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए पुणे की एक अदालत में तलाक की अर्जी दायर की। तलाक की कार्यवाही एक मध्यस्थ के पास भेजी गई थी। 30 सितंबर, 2020 को युद्धरत कपल ने मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने पर सहमति व्यक्त की और दोनों पर दायित्व बनाते हुए सहमति की शर्तें दायर कीं।
पति का तर्क
पति के वकील अमोल जगताप को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने पाया कि उसने भरण-पोषण के लिए एकमुश्त निपटान के रूप में 12.5 लाख रुपये का भुगतान करके और उसे एक आवासीय फ्लैट ट्रांसफर करके सहमति की शर्तों का पालन किया था।
यदि वह सहमति की शर्तों (घरेलू हिंसा और क्रूरता के मामलों को वापस लेने और बच्चे को एक्सेस देने) को दो महीने में पूरा करने में विफल रहती है तो जज बोरकर ने निर्देश दिया कि फ्लैट और पूरी राशि की वापसी के लिए 2021 में दायर पति की याचिका को अनुमति दी जाएगी। जिसका अर्थ है कि उसे फ्लैट उन्हें उसे वापस करना होगा।
पत्नी का तर्क
पत्नी के वकील अंशुमन असारे ने तर्क दिया कि पति उसके नाम पर सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) अकाउंट ट्रांसफर करने के लिए बाध्य करने वाली धारा और रखरखाव धारा का भी पालन करने में विफल रहा। पत्नी का कहना था कि एक बार तलाक की डिक्री पारित हो जाने के बाद, एक दायित्व अधूरा रह सकता है और इसलिए उसने तीन शर्तों का पालन नहीं किया।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने शर्तों की जांच की और संतुष्ट था कि सभी कानून में लागू करने योग्य थे। अदालत ने कहा कि तलाक की डिक्री पारित होने के बाद PPF को स्पष्ट रूप से ट्रांसफर करने की आवश्यकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि उच्च शिक्षा के लिए साझा लागत का अनुपालन न करने का उनका डर गलत है, क्योंकि यह पत्नी के लिए हमेशा खुला रहता है कि वह जरूरत पड़ने पर इस खंड को लागू कर सके।
जस्टिस अमित बोरकर ने कहा कि कोर्ट इस बात से संतुष्ट है कि पति ने अन्यथा अनुपालन किया है। अदालत ने कहा कहा, “प्रतिवादी (पत्नी) ने सहमति की शर्तों से उत्पन्न होने वाले लाभ को स्वीकार कर लिया है। इसलिए, प्रतिवादी के लिए इसके लाभों को स्वीकार करने की सहमति की शर्तों से पीछे हटना स्वीकार्य नहीं है।”
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