दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यदि कोई पत्नी बिना किसी वैध कारण के अपने पति के परिवार के सदस्यों से अलग रहने पर जोर देती है, तो इसे क्रूरता का कार्य माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा है कि अगर पत्नी लगातार अलग रहने की जिद करती है तो वह पति के लिए यातनापूर्ण है और उसके प्रति क्रूरता का काम है। अदालत ने यह अहम टिप्पणी करते हुए पति-पत्नी के बीच झगड़े को लेकर उनके तलाक का आधार करार दिया।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट पति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पत्नी द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करने वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। फैमिली कोर्ट ने पाया था कि यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं था कि पत्नी ने बिना किसी उचित कारण के पति का साथ छोड़ दिया था। साथ ही वह अपनी ओर से एनिमस डेसेरेन्डी (स्थायी रूप से साथ रहने को समाप्त करने का इरादा) साबित करने में विफल रही।
कपल ने नवंबर 2000 में शादी की थी। इस विवाह से उनके दो बच्चे पैदा हुए। पत्नी ने 2003 में वैवाहिक घर छोड़ दिया। हालांकि, वह बाद में वापस आ गई लेकिन जुलाई 2007 में फिर से चली गई। पति ने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कई आधारों पर तलाक की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि पत्नी एक “झगड़ालू महिला” है, जो ससुराल में बड़ों का सम्मान नहीं करती थी और इस बात पर जोर देती थी कि वह अपने माता-पिता से अलग रहे।
हाई कोर्ट का आदेश
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कपल को तलाक देते हुए कहा कि पश्चिम के विपरीत भारत में यह सामान्य बात नहीं है कि बेटा पत्नी के साथ रहने के लिए परिवार से अलग हो जाए। अदालत ने कहा कि आमतौर पर बिना किसी उचित मजबूत कारण के उसे (पत्नी को) कभी भी इस बात पर जोर नहीं देना चाहिए कि उसका पति परिवार से अलग हो जाए और उसके साथ अलग रहे। पीठ ने कहा कि घर पर ऐसा कटु माहौल किसी विवाहित कपल के लिए सौहार्दपूर्ण वैवाहिक संबंध बनाने के लिए अनुकूल माहौल नहीं हो सकता है। अदालत ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13(1)(i-a) और (i-b) के तहत क्रूरता और परित्याग के आधार पर एक जोड़े की शादी को भंग करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
लाइव लॉ के मुताबिक, मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने कहा कि केवल यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पति के परिवार के अन्य सदस्यों से अलग रहने की पत्नी की जिद “मनमौजी थी और इसका कोई उचित कारण नहीं था। आदेश में आगे कहा गया है कि इस तरह की लगातार जिद को केवल क्रूरता का कार्य कहा जा सकता है। अदालत ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों से इतने लंबे समय तक वंचित रहना और अदालत में पत्नी का यह बयान कि उसका पति के साथ रहने का कोई इरादा नहीं है, और तलाक देने पर आपत्ति न करना, इस बात को पुष्ट करता है कि इस तरह वंचना के परिणामस्वरूप पति के साथ मानसिक क्रूरता हुई है।
अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी के आचरण से यह भी पता चलता है कि उसका वैवाहिक संबंध फिर से शुरू करने का कोई इरादा नहीं था। अदालत ने अपने फैसले के आखिरी में कहा कि आम तौर पर कोई भी पति अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से अलग होना बर्दाश्त नहीं करेगा और ना ही चाहेगा। पत्नी द्वारा अपीलकर्ता को परिवार से अलग होने के लिए मजबूर करने का लगातार प्रयास पति के लिए यातनापूर्ण होगा और क्रूरता का कार्य होगा। इसके साथ कोर्ट ने कपल की शादी रद्द कर दी।
READ ORDER | Wife Insisting To Live Separately From In-Laws, Prolonged Deprivation Of Conjugal Rights Is Mental Cruelty: Delhi HC Dissolves Marriage
▪️HC: "Wife has no intention to resume matrimonial relationship"
▪️Parties living separately since 2007https://t.co/MbJZc8t0Za— Voice For Men India (@voiceformenind) August 24, 2023
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