सु्प्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नगालैंड में निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण (Reservation for Women) की संवैधानिक व्यवस्था को लागू नहीं करने पर केंद्र और नगालैंड सरकार के प्रति अप्रसन्नता प्रकट करते हुए मंगलवार 25 जुलाई को कहा कि केंद्र सरकार संविधान को लागू करने को इच्छुक नहीं है। नगालैंड एक ऐसा राज्य है, जहां महिलाएं जीवन के हर पहलू में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं, यह उल्लेख करते हुए जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि केंद्र यह कहकर नगर निकायों में महिलाओं को आरक्षण देने से नहीं रोक सकता कि यह आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट नगालैंड में स्थानीय निकाय चुनाव कराने से पहले के अपने निर्देशों में देरी से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया था कि 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। शीर्ष अदालत ने पूर्व में केंद्र से यह स्पष्ट करने के लिए कहा था कि क्या नगरपालिका और नगर परिषद चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था का नगालैंड द्वारा उल्लंघन किया जा सकता है, जहां विधानसभा ने नगरपालिका अधिनियम को रद्द करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के चुनाव नहीं कराने का संकल्प लिया था।
कई नगा आदिवासी निकायों और नागरिक समाज संगठनों ने नगालैंड नगरपालिका अधिनियम 2001 के तहत ULB चुनाव कराने का यह कहते हुए विरोध किया था कि यह संविधान के अनुच्छेद 371-A द्वारा गारंटी प्रदत्त नगालैंड के विशेष अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि सत्ता में बैठे लोगों द्वारा महिलाओं की भागीदारी को बाधित किया जा रहा है।
केंद्र से पूछे सवाल
पीठ ने कहा कि कानून देश में सामाजिक परिवर्तन से पहले आता है, जिससे विवाह और संपत्ति के अधिकार सहित कई मामले प्रभावित होते हैं। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस कौल ने कहा, ”हमारे देश में कानून सामाजिक परिवर्तन से पहले आता है। कानून इसे प्रोत्साहन देता है। क्या आपको लगता है कि सभी हिंदू पुरुष एक पत्नी रखने के लिए आसानी से सहमत होंगे, क्या लोग बेटियों को संपत्ति में बराबर हिस्सा देंगे?”
जज ने कहा, ”संविधान सभी के लिए समानता का प्रावधान करता है… हमें संविधान भी लागू करना होता है। आपने (केंद्र) कहा कि आप इसे करेंगे, फिर पीछ हट गए। 14 साल (लंबित रहना) आजीवन कारावास की सजा के समान है।”
पीठ ने कहा, “इसे (आरक्षण) लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। आप क्या कर रहे हैं? राजनीतिक रूप से भी आप एक विचार के हैं। यह आपकी सरकार है। आप यह कहकर बच नहीं सकते कि राज्य में किसी अन्य दल की सरकार है।”
‘हम आपको अपना पल्ला झाड़ने नहीं दे सकते’
जस्टिस कौल ने आगे कहा, “हमें यह मत कहें कि केंद्र सरकार झिझक रही है। आपने वहां क्या भूमिका निभाई है जहां एक संवैधानिक प्रावधान लागू नहीं किया जा रहा है? हम आपको अपना पल्ला झाड़ने नहीं दे सकते। अन्य मामलों में, जहां आप राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं, आपके पास है कार्रवाई की… लेकिन यहां वही पार्टी (BJP) है जो केंद्र सरकार है। अब केंद्र सरकार क्या करने जा रही है? हम आपको अपना हाथ धोने नहीं देंगे।”
केंद्र का जवाब
पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) के एम नटराज से कहा, “केंद्र सरकार संविधान लागू करने को तैयार नहीं है। जरा सा इशारा होने पर आप राज्य सरकारों के खिलाफ कार्रवाई कर देते हैं। जहां संवैधानिक प्रावधान का पालन नहीं हो रहा हो, वहां आप राज्य सरकार को कुछ नहीं कहते। संवैधानिक व्यवस्था को क्रियान्वित होते देखने में आपने क्या सक्रिय भूमिका निभाई है?”
नगालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार है और भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्तारूढ़ सरकार में भागीदार है। सुनवाई की शुरुआत में, नगालैंड के महाधिवक्ता के एन बालगोपाल ने कहा कि राज्य सरकार अदालत की इच्छा के अनुरूप एक नया कानून लाने की इच्छुक है और उन्होंने राज्य सरकार से निर्देश लेने के लिए समय मांगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने राज्य सरकार को कई मौके दिए, लेकिन उसने कुछ नहीं किया। नटराज ने कहा कि संविधान के अनुरूप शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 प्रतिशत कोटा प्रदान किया जाना चाहिए। जब पीठ ने पूछा कि फिर इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा है, तो ASG ने कहा कि राज्य में स्थिति इसके लिए अनुकूल नहीं है। इसके बाद उन्होंने अदालत से समय मांगा।
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