एक महत्वपूर्ण फैसले में केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने स्पष्ट किया है कि शादी के समय दुल्हन को उसकी भलाई के लिए दिए गए उपहारों को दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act 1961) के दायरे में दहेज के रूप में नहीं माना जाएगा। पीड़ित पति द्वारा दायर एक याचिका को अनुमति देते हुए जस्टिस एम.आर. अनीथा (Justice M.R. Anitha) ने कहा कि शादी के समय दुल्हन को बिना किसी मांग के दिए गए उपहार और जो इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार बनाई गई सूची में दर्ज किए गए हैं, वो धारा 3(1) के दायरे में नहीं आएंगे, जो दहेज देने या लेने पर रोक लगाती है।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता 31 वर्षीय पति के अनुसार, उसने सितंबर 2020 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार 25 वर्षीय दीप्ति से शादी की थी। शादी के बाद वह दोनों याचिकाकर्ता के यहां पति-पत्नी के रूप में रहने लगे थे। लेकिन कुछ समय बाद में उनके रिश्ते में खटास आ गई। इसके बाद पत्नी दीप्ति ने दहेज नोडल अधिकारी के समक्ष एक याचिका दायर कर पति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी।
पति का तर्क
याचिकाकर्ता पति का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील केपी प्रदीप (K.P Pradeep), हरीश एम.आर (Hareesh M.R), रश्मी नायर टी (Rasmi Nair T), टी.टी बीजू (T.T Biju), टी. थसमी (T. Thasmi) और एमजे अनूपा (M.J Anoopa) ने तर्क दिया कि प्रतिवादी पत्नी के परिवार ने अपने सभी गहने इस दंपत्ति के नाम पर एक बैंक लॉकर में रख दिए थे और इस लॉकर की चाबी दीप्ति के पास ही थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जिला दहेज निषेध अधिकारी (District Dowry Prohibition Officer) के पास याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह आरोप लगाया गया है कि जो गहने उसे उसकी भलाई के लिए उपहार में दिए गए थे। उनको बैंक लॉकर में रखा गया था और अभी तक वापस नहीं किए गए हैं। प्रतिवादियों (पत्नी और उसका परिवार) की ओर से वकील के.वी.अनिल कुमार (K.V. Anil Kumar) और लोक अभियोजक संगीथराज एन.आर. (Sangeetharaj N.R ) पेश हुए।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
केरल हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि इसका मतलब यह है कि उसकी भलाई के लिए उसे उपहार में दिए गए गहने प्रतिवादियों के नियंत्रण में एक बैंक के लॉकर में रखे गए थे। इसलिए यह माना गया कि शादी के समय दुल्हन को बिना किसी मांग के दिए गए उपहार को दहेज के रूप में नहीं माना जाएगा।
जस्टिस एमआर अनीता ने पाया कि दहेज निषेध अधिकारी के पास नियमों के नियम 6 (xv) के तहत निर्देश पारित करने का अधिकार क्षेत्र होगा, यदि यह पाया जाता है कि पत्नी को वापस किए जाने वाले गहने दहेज का गठन करते हैं।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह के निष्कर्ष के अभाव में, दहेज निषेध अधिकारी को नियम 6 (xv) के तहत निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं होगा। इसलिए पारित किया गया आदेश कानून की नजर में उचित नहीं है और उसे रद्द किया जाता है।
हाई कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि दहेज लेना और देना दोनों समान रूप से एक अपराध है। बता दें कि यदि कोई व्यक्ति शादी के वक्त दहेज देता है या लेता है या उकसाता है, तो वह दंडनीय के दायरे में आता है।
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