पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी जो क्रूरता के आधार पर अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता था। लगभग 12 साल से एक दूसरे से अलग रह रहे हिसार के दंपती के मामले में सुनवाई के दौरान पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि ‘तुच्छ’ मुद्दों को क्रूरता नहीं माना जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर हिसार फैमिली कोर्ट (Hisar Family Court) के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने उसकी पत्नी से तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता पति ने मई 2005 में हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार अपनी पत्नी से शादी की थी और नवंबर 2007 में इनके एक लड़के का जन्म हुआ। हालांकि, कुछ आपसी मतभेद और अन्य मुद्दों के कारण दोनों नवंबर 2009 से अलग रह रहे हैं। हिसार की फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर शादी को भंग करने की उस व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट के आदेश से व्यथित शख्स ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
पति ने पत्नी पर लगाया क्रूरता का आरोप
याचिकाकर्ता का तर्क था कि देर रात घर का दरवाजा खोलने से मना कर पत्नी उसे प्रताड़ित करती थी। पति ने अपनी पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए अपनी याचिका में कहा कि उसकी पत्नी उसके और उसके परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उसके रिश्तेदारों, दोस्तों और सहकर्मियों की उपस्थिति में दुर्व्यवहार और अपमान करती थी। पति ने आरोप लगाया कि जब वह रात को ऑफिस से घर आता है तो उसकी पत्नी घर का दरवाजा नहीं खोलती। पति ने कहा कि इतना ही नहीं वह मुझ पर मेरे परिवार, रिश्तेदारों, ऑफिस की महिला सहकर्मियों के साथ अवैध संबंध के आरोप लगाकर दुर्व्यवहार और अपमान करती थी। यह आरोप लगाते हुए हिसार निवासी याचिकाकर्ता पति ने अपनी पत्नी से तलाक की मांग की थी।
पत्नी का तर्क
वहीं, दूसरी तरफ पत्नी ने अपना बचाव करते हुए पति पर आरोप लगाया है कि वह एक चरित्रहीन और शराबी शख्स है। पति के वकील ने तलाक के लिए अदालत में तर्क दिया कि दोनों पक्ष पिछले करीब 12 सालों से अलग रह रहे हैं और अब सुलह की कोई संभावना नहीं है, इसलिए यह अपरिवर्तनीय रूप से टूटी हुई शादी का मामला है और इस आधार पर तलाक दिया जा सकता है। पति की एक और दलील थी कि उसकी पत्नी झूठे आरोप लगाकर उसके चरित्र की हत्या करती थी।
हालांकि, पत्नी की दलील थी कि उसे नवंबर, 2009 में वैवाहिक घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और अगले दो महीनों के भीतर, पति ने विवाद के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए कोई प्रयास किए बिना तलाक की याचिका दायर कर दी। महिला का आरोप है कि पति ने कभी भी अपने बेटे की कस्टडी की मांग नहीं की जो पिछले 12 साल से पत्नी के साथ रह रहा है। महिला ने कहा कि पति के उपरोक्त आचरण से पता चलता है कि वह अपनी पत्नी पर झूठे आरोप लगाकर उससे छुटकारा पाने में रुचि रखता है।
हाई कोर्ट का फैसला
दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस रितु बाहरी (Justice Ritu Bahri) और जस्टिस करमजीत सिंह (Justice Karamjit Singh) की खंडपीठ ने 24 दिसंबर, 2013 के आदेश को चुनौती देने वाली पति की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके आरोप क्रूरता का आधार साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे तुच्छ आरोप तलाक का आधार नहीं हो सकते।
हाई कोर्ट ने कहा कि अगर दुर्व्यवहार काफी लंबे समय तक रहता है और संबंध इस हद तक खराब हो जाए कि पति या पत्नी के कृत्यों और व्यवहार के कारण, पीड़ित पक्ष को अब दूसरे पक्ष के साथ रहना बहुत मुश्किल लगता है, यह मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आ सकता है। अदालत ने कहा कि हमारा विचार है कि ऐसी किसी भी घटना की कोई तारीख या महीना बताए क्रूरता के सामान्य आरोप अपीलकर्ता को अपना मामला साबित करने में मदद नहीं करते हैं।
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