पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने 08 अप्रैल, 2022 के अपने एक आदेश में कहा कि अगर पत्नी अपने पति के करियर और प्रतिष्ठा को नष्ट करने पर तुली हुई है और वह अपने पति के कार्यालय में कार्यरत सीनियर अधिकारियों को पति के खिलाफ शिकायत करती है तो यह मानसिक क्रूरता होगी। कोर्ट ने कहा कि पति इस आधार पर अपनी पत्नी से तलाक लेने का हकदार है।
जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने भारतीय वायु सेना (IAF) के एक जवान द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग की गई थी।
अदालत ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया था और उनके (पति-पत्नी) एक साथ आने या फिर से एक साथ रहने की कोई गुंजाइस नहीं है, क्योंकि पत्नी ने 2002 में अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था। इस मामले में पति ने रोहतक कोर्ट के उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने पति की तलाक की मांग को खारिज कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
कपल की शादी 1998 में हुई थी। पति वायुसेना में कार्यरत थे। 1999 में दोनों को एक बेटा हुआ। यह कपल 2002 तक साथ रहा। पति के अनुसार, पत्नी ने अप्रैल 2002 में उसे छोड़ दिया और तब से वह ससुराल नहीं लौटी, जबकि पति उसे हमेशा पत्नी और बेटे को प्यार करता रहा। उन्होंने 2006 में तलाक की याचिका दायर की थी, लेकिन वह पति के साथ रहने के लिए सहमत हो गई। फिर तलाक की याचिका वापस ले ली गई। पति के मुताबिक, तलाक की अर्जी वापस लेने के बावजूद, पत्नी ने भारतीय वायुसेना के अधिकारियों के समक्ष उनके खिलाफ की गई किसी भी शिकायत को वापस नहीं लिया।
इसके बाद पति ने 2013 में इसे मानसिक क्रूरता बताते हुए फैमिली कोर्ट रोहतक में तलाक की याचिका दायर की। लेकिन उसे जिला अदालत रोहतक ने खारिज कर दिया था। हालांकि, पत्नी ने आरोपों पर कड़ी आपत्ति जताई और दावा किया कि उसका पति उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करता है और हमेशा उसके चरित्र पर संदेह करता है। अपीलकर्ता पति ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था।
पति का आरोप
पति की तरफ से आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी अपने वैवाहिक कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रही है। साथ ही उसने अपीलकर्ता के साथ बुरा व्यवहार किया और उसके साथ दुर्व्यवहार किया, जिससे उसके साथ शारीरिक और मानसिक क्रूरता हुई। इसके अलावा, वर्ष 2010 में उसने अपीलकर्ता-पति और उसके माता-पिता के खिलाफ IPC की धाराओं 498-A, 406, 313, 323 और 506 के तहत FIR भी दर्ज करा दी थी।
पति आरोपों से बरी
जांच के दौरान अपीलकर्ता के माता-पिता निर्दोष पाए गए। हालांकि, अपीलकर्ता को आरोपों से बरी होने से पहले लगभग साढ़े चार साल तक मुकदमे का सामना करना पड़ा, क्योंकि प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे पाए गए थे।
फैमिली कोर्ट
पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की डिक्री की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट का रुख किया था। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी-पत्नी की इस दलील को ध्यान में रखते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी कि उसने कभी भी अपीलकर्ता को नहीं छोड़ा और न ही उसके साथ कोई क्रूरता की।
पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट
शुरुआत में हाई कोर्ट ने पाया कि शिकायत दर्ज करना और आपराधिक कार्यवाही शुरू करना निराधार और झूठा पाया गया है। न्यायालय ने इस प्रकार नोट किया कि पति और उसके परिवार को उत्पीड़न और यातना दी गई थी, क्योंकि पत्नी की एक भी शिकायत उस पर वैवाहिक क्रूरता का गठन करने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
पत्नी ने तबाह किया पति का करियर
अदालत ने यह कहते हुए कड़ी टिप्पणी की कि प्रतिवादी-पत्नी अपीलकर्ता-पति के करियर और प्रतिष्ठा को नष्ट करने पर तुली हुई थी, क्योंकि उसने उसके खिलाफ वायु सेना में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत की थी। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी-पत्नी का अपने पति और सास-ससुर के खिलाफ निराधार, अशोभनीय और मानहानिकारक आरोप लगाने की शिकायत दर्ज कराने में आचरण यह दर्शाता है कि उसने यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किए कि अपीलकर्ता और उसके माता-पिता को जेल में डाल दिया जाए और अपीलकर्ता को नौकरी से हटा दिया जाए। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रतिवादी-पत्नी के इस आचरण से अपीलकर्ता-पति के साथ मानसिक क्रूरता हुई है।
इसके बाद हाई कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता-पति और प्रतिवादी-पत्नी अप्रैल 2002 से अलग रह रहे थे, और सुलह के सभी प्रयास विफल हो गए थे। अदालत ने इस प्रकार मामले के असाधारण तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पति द्वारा दायर की गई तत्काल अपील को स्वीकार कर लिया। हाई कोर्ट ने जिला न्यायाधीश, रोहतक द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता-पति के पक्ष में तलाक की डिक्री प्रदान की गई। हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता-पति को प्रतिवादी-पत्नी के नाम पर स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 20 लाख रुपये जमा करने का भी निर्देश दिया।
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