मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की ग्वालियर बेंच ने 07 अप्रैल, 2022 को एक पत्नी द्वारा अपने ससुराल वालों के खिलाफ IPC की धारा 498-A के तहत दर्ज FIR को रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह कहते हुए FIR को खारिज कर दिया कि ससुराल वालों पर दबाव बनाने, उन्हें प्रताड़ित करने और बदला लेने के इरादे से पत्नी ने 498-A के तहत केस दर्ज करवाई थी।
क्या है पूरा मामला?
पार्टियों के बीच दिसंबर 2016 में शादी हुई थी। कपल के बीच विवाद के बाद पत्नी द्वारा स्वेच्छा से वैवाहिक घर छोड़ने के बाद पति ने अगस्त 2018 में तलाक के लिए अर्जी दायर की थी।
पत्नी के आरोप के बाद दर्ज हुई FIR
अगस्त 2019 में शिकायतकर्ता पत्नी ने अपने भाई के साथ स्थानीय पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत की कि उसके पिता ने पर्याप्त दहेज दिया था और उसकी शादी के लिए 15 लाख रुपये भी खर्च किए थे। इसके अलावा, दुल्हन के परिवार ने “टीका (Tika” समारोह के समय 15 लाख रुपये नकद दिए।
महिला ने आरोप लगाया कि उसकी शादी के कुछ दिनों के बाद, उसके ससुराल वालों ने दहेज की मांग करना शुरू कर दिया और मारपीट भी किया। बाद में जनवरी 2018 में उसे उसके ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। हालांकि, उसके पिता ने उसके पति और ससुराल वालों को कई बार फोन किया और सुलह सेंटर में शिकायत करने पर भी कोई नतीजा नहीं निकला।
पत्नी ने आगे आरोप लगाया कि उसका पति, देवर, ससुर और भाभी/नंदन एक फ्लैट खरीदने के लिए 15 लाख रुपये की मांग कर रहे थे। इस मांग को पूरा नहीं करने पर उसे ससुराल में नहीं रखेंगे और उसकी हत्या कर देंगे। इन्हीं आरोपों के आधार पर उक्त FIR दर्ज की गई है।
पति के परिवार का बचाव (याचिकाकर्ता)
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि पूरे आरोप पूरी तरह से झूठे थे। FIR स्वयं याचिकाकर्ताओं को परेशान करने और दबाव बनाने के स्पष्ट उद्देश्य से दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता पत्नी एक झगड़ालू महिला है और अपने ससुराल वालों से झगड़ा करती थी क्योंकि उसे उनके साथ शांति से रहने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। साथ ही वह अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती थी।
शादी की तारीख से ही शिकायतकर्ता का अपने ससुराल वालों के प्रति रवैया और व्यवहार अच्छा नहीं है। इस संबंध में SP और DM अशोक नगर से शिकायत की गई है। शिकायतकर्ता के बुरे आचरण और व्यवहार के कारण, उसके पति ने बाद में 13/08/2018 को चीफ जस्टिस, फैमिली कोर्ट अलीगढ़ (यूपी) के समक्ष विवाह विघटन के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत एक याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता नंबर 3, जो शिकायतकर्ता के ससुर हैं, ने भी 27-07-2019 को AJCM, अलीगढ़ की अदालत में शिकायतकर्ता और उसके परिवार के खिलाफ IPC की धारा 406, 504 के तहत शिकायत दर्ज कराई है।
इस प्रकार, प्रतिवाद के रूप में शिकायतकर्ता पत्नी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ वर्तमान दहेज उत्पीड़न के तहत FIR दर्ज कराई है। आगे यह भी प्रस्तुत किया जाता है कि याचिकाकर्ता संख्या 4 का विवाह, जो शिकायतकर्ता की भाभी है, भोपाल में अलग रह रही है- जिसका विवाह शिकायतकर्ता की शादी की तारीख से पहले किया गया था।
प्रति विपरीत, प्रतिवादी पत्नी और राज्य ने प्रस्तुत किया कि आवेदकों और प्रतिवादी के समक्ष अन्य लंबित कार्यवाही उसके लिए आवेदकों द्वारा किए गए कथित अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करने में बाधा नहीं थी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि धारा 498-A IPC के तहत एक निरंतर अपराध है और वर्तमान मामले में कार्रवाई का कारण प्रतिवादी की शादी के बाद उत्पन्न हुआ क्योंकि उसके ससुराल वाले उसे भारी दहेज की मांग कर परेशान कर रहे थे। अतः उन्होंने आवेदन को खारिज करने की प्रार्थना की।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट
जस्टिस आर.के. श्रीवास्तव CrPC की धारा 482 के तहत एक आवेदन पर विचार कर रहे थे, जिसमें आवेदकों द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई FIR को रद्द करने के लिए अदालत के निर्देश की मांग की गई थी। उनके खिलाफ धारा 498A, धारा 506 और धारा 34 IPC के तहत केस दर्ज हुआ था। अपने तर्कों को मजबूत करने के लिए, आवेदकों ने हाल ही में तय किए गए कहकशां कौसर उर्फ सोनम और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर भरोसा किया।
पार्टियों के प्रस्तुतीकरण, रिकॉर्ड पर दस्तावेजों और प्रासंगिक मामलों में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की जांच करने पर विचार करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि वर्तमान आवेदन की अनुमति दी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि FIR के साथ-साथ रिकॉर्ड में उपलब्ध दस्तावेजों और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णयों के आलोक में ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य और सर्वव्यापक हैं।
मामले में पूर्व में शिकायतकर्ता के पति द्वारा 13/03/2018 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत एक याचिका दायर की गई थी और 27/09/2019 को शिकायतकर्ता के ससुर द्वारा भी शिकायत दर्ज की गई। जहां बाद में शिकायतकर्ता और उसके पति के बीच विचारों में अंतर के कारण सुलह की कार्यवाही सफल नहीं हो सकी।
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा 01/08/2019 को दर्ज की गई वर्तमान FIR केवल प्रतिशोध को नष्ट करने के लिए है। साथ ही याचिकाकर्ताओं पर दबाव बनाने, उन्हें परेशान करने के साथ-साथ बदला लेने के इरादे से भी केस दर्ज करवाया गया था।
कोर्ट ने आगे कहा कि मामले के पूरे तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के साथ-साथ इस तथ्य के साथ कि प्रतिवादी नंबर 2 (पत्नी) ने स्वेच्छा से बिना किसी तुकबंदी के अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया है। शिकायतकर्ता की ओर से दायर करने से पहले अलग रहना एक गलती है। दर्ज की गई FIR और दहेज की मांग या उत्पीड़न के विशिष्ट आरोप के अभाव में आक्षेपित FIR रद्द किए जाने योग्य है।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ हाई कोर्ट ने आवेदकों के खिलाफ अन्य बाद की कार्यवाही के साथ-साथ उसके खिलाफ शुरू की गई FIR को रद्द कर दिया और तदनुसार, आवेदन की अनुमति दे दी गई।
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