भारत की जनसंख्या 1.4 बिलियन (2021 तक) है जहां लगभग 50% जनसंख्या पुरुषों की है। फिर भी, परिवार कल्याण समस्याओं के लिए कोई संतुलित प्लेटफार्म या पुरुषों के समान प्रतिनिधित्व के लिए एक अलग आयोग होने के बजाय, हमारे पास केवल महिलाओं के लिए एक समर्पित आयोग (राष्ट्रीय महिला आयोग/राज्य महिला आयोग) है।
बुधवार को छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग (Chhattisgarh State Commission For Women) की अध्यक्ष डॉ किरण माई नायक (Dr Kiran Mayee Nayak) ने एक ट्वीट किया, “आयोग (छत्तीसगढ़ महिला आयोग) की समझाइश पर पति-पत्नी हुए साथ रहने तैयार। आयोग की समझाइश पर सरकारी भृत्य अपने वेतन से पत्नी को 75 प्रतिशत वेतन प्रतिमाह देने तैयार हुआ।”
हालांकि ट्वीट में कपल के बीच विवाद का डिटेल नहीं दिया गया था। माना जा रहा है कि कपल के बीच घरेलू समस्याओं का मामला हो सकता है, जहां महिला ने महिला आयोग से संपर्क किया होगा।
हालांकि, हम स्पष्ट नहीं हैं कि ‘घरेलू विवाद’ को कैसे सुलझाया गया है। लेकिन महिला आयोग ने दावा किया है कि पति द्वारा पत्नी को 75% मासिक सैलरी देने के लिए सहमत होने के बाद कपल के बीच समझौते हो गया है।
क्या महिला आयोग फैमिली कोर्ट के दायरे से बाहर ऐसा आदेश या समझौतों को लागू कर सकता है? इससे पुरुषों को क्या संदेश दिया जा रहा है? जब सभी कानून महिलाओं के पक्ष में हों और महिलाओं को समर्पित एक सेल मध्यस्थता करता है, तो क्या हम पति के लिए निष्पक्ष न्याय की उम्मीद कर सकते हैं?
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