तलाक पति-पत्नी के बीच होता है, लेकिन इस वैवाहिक लड़ाई में बच्चों को अपने माता-पिता (ज्यादातर मामलों में सिर्फ पिता से) से अलग क्यों होना पड़ता है? भारतीय कानून अभी भी माताओं को ही बच्चों के सक्षम अभिभावक के रूप में मानते हैं। भले ही शिशुओं को पोषण संबंधी जरूरतों के लिए एक महिला पेरेंट्स की अधिक आवश्यकता होती है, लेकिन एक पिता को अपराधी क्यों बना दिया जाता है, जिसे अपने बच्चे को देखने की भी अनुमति नहीं है?
इस बीच, रथ यात्रा के शुभ अवसर पर ओडिशा के शिक्षित, स्थापित और अपने बच्चों के प्यार से वंचित पिताओं के एक ग्रुप ने भुवनेश्वर से पुरी में महाप्रभु श्रीजगन्नाथ के मंदिर तक पदयात्रा निकाली। अपने बच्चों से अलग पिता उम्मीद करते हैं कि महाप्रभु उन्हें अपने बच्चों से मिलने का आशीर्वाद देंगे, जो वैवाहिक कलह के कारण अमानवीय रुप से अलग हो गए हैं।
क्या है पूरा मामला?
टी-शर्ट पर अपने बच्चों की तस्वीरों के साथ, 30 अलग-अलग पिताओं के एक ग्रुप ने शुक्रवार को भुवनेश्वर से पुरी तक एक रैली में भाग लिया। इन पुरुषों ने जल्द ही अपने बच्चों से मिलने और भविष्य में अन्य पिताओं को इस तरह के कठोर और अन्यायपूर्ण व्यवहार का सामना न करने के लिए जागरूकता पैदा करने की आशा के साथ मार्च किया। वॉयस फॉर मेन इंडिया ने वॉक में भाग लेने वाले कुछ सदस्यों से बात की।
पीड़ित पिताओं का दर्द
ओडिशा के कटक के रहने वाले 36 वर्षीय रोहन अग्रवाल ने कहा कि भगवान जगन्नाथ मौसी के घर जाते हैं और बहुदा जात्रा (वापसी उत्सव) पर वापस आते हैं। लेकिन हमारे बच्चे हम लोगों के पास लौटकर नहीं आए हैं। इस प्रकार, हम पीड़ित पिता के रूप में भगवान से प्रार्थना करने, गुजरिश करने और सवाल करने के लिए #HopeWalkToPuri हैशटैक के साथ मार्च निकाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे हमारे पास क्यों नहीं हैं?
अग्रवाल ने कहा कि यह हमारे बच्चों की खातिर प्रार्थना की सैर है। हम आशा करते हैं कि कोई पिता के रूप में हमारी पुकार सुनेगा। अग्रवाल का बेटा अब लगभग पांच साल का हो गया है। उन्होंने कहा कि मैं उसे गले लगाना चाहता हूं और उसे दुनिया की सारी खुशियां देना चाहता हूं।
वहीं, ओडिशा के एक और पिता संजीव पांडा, (जो अपने बेटे से अलग हो गए हैं) ने हमें बताया कि एक पिता के साथ एक कैदी की तरह व्यवहार क्यों किया जाता है, जिसे अपने ही बच्चों के साथ सिर्फ 5-10 मिनट मिलने का समय दिया जाता है? एक पिता को भूल जाओ, लेकिन एक बच्चे के अधिकारों की उपेक्षा क्यों की जाती है। उन्हें पिता का प्यार और स्नेह से क्यों वंचित किया जाता है। क्या हमारी अदालतें हमारे बच्चों को उनके पिता सक्षम, इच्छुक और जीवित होने के बावजूद अर्ध-अनाथ नहीं बना रही हैं।
उन्होंने आगे कहा कि यह अविश्वसनीय है कि कानून बनाने वाले और न्यायपालिका यह नहीं जानते या समझते हैं कि माता-पिता में से किसी एक के प्यार और स्नेह से वंचित करना एक बच्चे के बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। यह कहना गलत नहीं होगा कि बच्चों के अधिकारों की अनदेखी की जा रही है और हम उन्हें माता-पिता के अलगाव सिंड्रोम के संपर्क में आने के लिए छोड़ रहे हैं।
संजीव पांडा ने कहा कि अगर हम वास्तव में उनका परवाह करते हैं और अपने बच्चों की रुचि को सबसे पहले रखना चाहते हैं, तो तलाक के सभी मामलों में शेयर्ड पेरेंट्स को एक अभ्यास के रूप में अपनाना चाहिए। वर्तमान में, जब भी कोई वैवाहिक विवाद होता है, तो बच्चों को पूरी तरह से अलग रह चुकी पत्नियों को सौंप दिया जाता है।
पांडा ने आगे कहा कि एक पिता को सबसे ज्यादा दर्द तब होता है जब उसका अपना बच्चा (जिसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता है) उसे अस्वीकार कर देता है। यह कस्टोडियल पेरेंट्स (मां) द्वारा पिता के खिलाफ किए गए ब्रेनवॉश का परिणाम है, जिसे आमतौर पर पेरेंटल एलियनेशन सिंड्रोम (पीएएस) के रूप में जाना जाता है।
इसके अलावा एक 37 वर्षीय जाकिर हुसैन ने कहा कि हमारे बच्चों को हमें परेशान करने के लिए मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है! अपने बच्चे से बिछड़ चुके कटक के जाकिर हुसैन ने जोर देकर कहा कि मैं मेहमान या ATM नहीं हूं… मैं पिता हूं…
#HopeWalkToPuri मार्च की कुछ तस्वीरें और वीडियो देखें…
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