मुंबई के एक सेशन कोर्ट (Mumbai sessions court) ने घरेलू हिंसा के मामले में एक 52 वर्षीय व्यक्ति की अपनी पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने की चुनौती वाली याचिका को रद्द कर दिया। महिला एक कारोबारी है और वह अपने पति से ज्यादा कमाती है। यह देखते हुए कि एक पत्नी, पति की जिम्मेदारी है और वह जो कुछ भी कमाता है उसे बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है, कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी।
क्या है पूरा मामला?
कपल के दो वयस्क बेटे हैं और पति-पत्नी 2015 से अलग रह रहे थे। पत्नी और बेटे घाटकोपर में किराए के फ्लैट में रहने लगे थे। वह व्यक्ति एक ट्रांजिट कैंप में रह रहा है और उसने विक्रोली मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उसे अंतरिम भरण पोषण के रूप में 8,000 रुपये और वैकल्पिक आवास के लिए किराए के रूप में 8,000 भुगतान करने का निर्देश दिया था।
पति का तर्क
शख्स ने अपनी अपील में कहा था कि उसकी पत्नी बिजनेसवुमन है और काफी कमाती है। उन्होंने तर्क दिया कि भरण-पोषण का प्रावधान कमजोर महिलाओं के लिए है, जो पूरी तरह से पति की आय पर निर्भर हैं। पति ने आगे कहा कि वह (पत्नी) एक पॉश सोसायटी में रहती है और 26,000 रुपये किराए के रूप में दे रही है। जबकि वह एक आम शौचालय के साथ एक ट्रांजिट कैंप में रहता है। शख्स ने कहा कि यह उनकी तुलना में उनकी अच्छी वित्तीय क्षमता को दर्शाता है। पति ने बताया कि सतारा में उनके पास कृषि भूमि और एक घर है।
कोर्ट का आदेश
एडिशनल सेशंस जज सीवी पाटिल ने कहा कि 2015 के बाद से उन्होंने (पति) उसके लिए (पत्नी) भरण-पोषण की व्यवस्था नहीं की है और उसे सिर्फ एक कमाने वाली महिला होने के आधार पर हाथ खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि वह एक कमाई करने वाली महिला है, उसके भरण-पोषण के अधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता है। अदालत ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि भले ही पत्नी कमा रही हो, वह भरण-पोषण की हकदार है। कोर्ट ने आगे कहा कि आवेदक कारोबार भी चलाता है और उसके पास अन्य संपत्तियां हैं और इसलिए उसे राशि का भुगतान करना होगा।
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