बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ (Aurangabad bench of the Bombay High Court) ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत एक महिला ज्यूडिशियल ऑफिसर के खिलाफ अपने भाई की पत्नी को शारीरिक और मानसिक क्रूरता के आरोप में दर्ज FIR को खारिज कर दी। जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस आरएम जोशी की औरंगाबाद बेंच की खंडपीठ ने कहा कि IPC की धारा 498A के इस मामले का इस्तेमाल निजी द्वेष के कारण बदले की कार्रवाई के रूप में किया जा रहा है। खंडपीठ ने कहा कि न्यायिक राहत के बाद भी किसी व्यक्ति की ‘खराब’ प्रतिष्ठा को बहाल नहीं किया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
ज्यूडिशियल ऑफिसर को उसके भाई और माता-पिता के साथ जून 2019 में दर्ज FIR में आरोपी बनाया गया। उन पर IPC की धारा 498A के तहत अपनी भाभी को मानसिक और शारीरिक नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया। इसलिए उसने FIR रद्द करने के आवेदन के साथ CrPC की 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। FIR के मुताबिक, शिकायतकर्ता और उसके पति के बीच अनबन चल रही है। ऐसा आरोप है कि आवेदक ने अपने भाई के लिए चिकन बिरयानी बनाने के लिए कहा, लेकिन शिकायतकर्ता से कहा कि वह अपना खाना खुद बनाए।
इसके अलावा, उसने शिकायतकर्ता से कहा कि वह अपने माता-पिता के खिलाफ आवाज न उठाए। FIR के अनुसार, अपने भाई को शिकायतकर्ता से तलाक लेने के लिए प्रोत्साहित किया। एफआईआर में आगे कहा गया कि ज्यूडिशियल ऑफिसर के रूप में आवेदक को पक्षपात करने और अपने भाई का समर्थन करने के बजाय शिकायतकर्ता और उसके पति के बीच विवाद में निष्पक्ष रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए।
कोर्ट का आदेश
हाई कोर्ट ने कहा कि भले ही आरोपों को अंकित मूल्य पर स्वीकार कर लिया जाए, लेकिन वे जांच को सही ठहराने वाले किसी अपराध का गठन नहीं करते। FIR रद्द करने के लिए कोर्ट ने वर्तमान मामला हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने CrPC की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं। अदालत ने कहा कि निराधार आपराधिक आरोप और लंबे समय तक चले आपराधिक मुकदमे के मानसिक नाटक, अपमान और आर्थिक नुकसान जैसे गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
लाइव लॉ के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा कि विचाराधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें पति के परिवार के सदस्यों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत कार्यवाही में पति के साथ व्यक्तिगत बदला लेने के साधन के रूप में फंसाया गया। अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए, आवेदक के अधिकार की रक्षा करने के लिए और इस प्रकार न्याय के सिरों को सुरक्षित करने के लिए आवेदक के रूप में निराधार कार्यवाही रद्द करने की आवश्यकता है।
अदालत ने दोहराया कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सम्मान का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 (2) का अभिन्न अंग है। कोर्ट ने अपने फैसले में शेक्सपियर के नाटक ओथेलो का हवाला देते हुए कहा कि आदमी और औरत में अच्छा नाम, प्रिय मेरे प्रभु, उनकी आत्माओं का तत्काल गहना है। जो मेरा पर्स चुराता है वह कचरा चुराता है। कुछ है, कुछ नहीं; वह मेरा है, उसका है, और वह हजारों का दास है। लेकिन वह जो मुझसे मेरा अच्छा नाम छीनता है, वह मुझे लूटता है, जो उसे समृद्ध नहीं करता है और वास्तव में मुझे गरीब बनाता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि लापरवाह आरोप भी कैरियर की प्रगति और भविष्य की खोज पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रतिष्ठा को कलंकित करता है, बदनामी लाता है और दोस्तों, परिवार और सहकर्मियों के बीच व्यक्ति की छवि को कम करता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चरित्र की हानि या चोटिल प्रतिष्ठा को न्यायिक राहत से भी बहाल नहीं किया जा सकता। इन टिप्पणियों के साथ पीठ ने ज्यूडिशियल ऑफिसर के खिलाफ दर्ज FIR और उसके बाद की कार्यवाही को रद्द कर दिया।
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