इलेक्ट्रिक गैजेट्स और साइंस की दुनिया में हर रोज नए प्रयोग हो रहे हैं। आर्टिफिशियल वेजाइना और मशीन से बच्चे पैदा करने जैसे अविश्वसनीय प्रयोग के बाद अब शारीरिक संबंध बनाने के लिए पार्टनर की जरूरत खत्म करने की दिशा में काम चल रहा है। जी हां, दरअसल कोरिया में सेक्स डॉल के इस्तेमाल को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। यहां सेक्स डॉल के आयात पर लगाए गए बैन को कस्टम सर्विस ने पिछले दिनों हटा दिया था। अब महिला समूहों द्वारा इस फैसले का विरोध किया जा रहा है और इसे फिर से बैन करने की मांग उठा रही है। महिलाओं का मानना है कि सेक्स डॉल का इस्तेमाल असल में ह्युमन डिग्निटी पर हमला है। कोरियाई सुप्रीम कोर्ट ने इसपर लगे बैन को हटाने का आदेश दिया था।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, कोरियाई कस्टम सर्विस द्वारा सेक्स डॉल के आयात पर लगे बैन का कंपनियां विरोध कर रही थीं। इसके बाद पिछले साल 26 दिसंबर को कस्टम सर्विस ने इस बैन को हटा दिया। सेक्स डॉल बनाने वाली कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दी थी और बाद में अपने फैसले में कोर्ट ने प्रोड्यूसर को इसके आयात का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने बैन हटाने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने माना कि सेक्स डॉल्स संवैधानिक व्यवस्था को बाधित नहीं करती हैं।
कोरिया में लीगल है सेक्स डॉल
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोरिया में सेक्स डॉल के इस्तेमाल को लेकर कोई रूल्स नहीं हैं। यहां इसका इस्तेमाल लीगल माना जाता है। हालांकि कस्टम सर्विस ने इसके आयात पर कस्टम एक्ट के आर्टिकल 234 के तहत बैन लगाया था। हालांकि, जानकार बताते हैं कि कस्टम सर्विस द्वारा लगाए गए बैन से ऐसा भी नहीं है कि देश में इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा था। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोरिया में स्थानीय स्तर पर भी कंपनियां हैं, जो सेक्स डॉल का मैन्युफैक्चरिंग करती है।
महिलाओं ने जताया विरोध
सेक्स डॉल का विरोध कर रहीं महिलाओं का तर्क है कि यह ह्युमन डिग्निटी यानी मानव गरिमा पर हमला है। खासतौर पर इससे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचती है। महिला समूहों का कहना है कि कस्टस सर्विस के बैन हटाने से लोग महिलाओं को सेक्स टूल्स समझना शुरू कर देंगे। एक्सपर्ट का मानना है कि सेक्स डॉल में वो पूरे फीचर्स होते हैं जो कि एक महिला के शरीर जैसा दिखता है। स्किन से लेकर वींस तक, सेक्स डॉल में महिला शरीर के सभी छोटे-से-छोटे अंग शामिल होते हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि सेक्स डॉल प्रोस्टिट्यूशन और पॉर्नोग्राफी को बढ़ावा मिलता है, जो यौन शोषण के सबसे फैक्टर हैं।
समर्थकों का तर्क
दूसरी तरफ सेक्स डॉल के समर्थकों का कहना है कि सरकार को इसका कोई अधिकार नहीं है कि वो किसी की निजी जिंदगी में ताक-झांक करें। समर्थक मानते हैं कि सेक्स डॉल और सेक्स टॉय में ऐसा कोई अंतर नहीं होता। सेक्स डॉल के समर्थक एक वकील का कहना है कि सरकार को बैन नहीं लगाने चाहिए, क्योंकि कोई भी शख्स अपने प्राइवेट समय में क्या करता है, यह जानने का उसका अधिकार नहीं है। वकील ने कहा कि सेक्स डॉल बस एक डॉल यानी गुड़िया है…यह एक तरह का सेक्स टॉय है जो किसी के लिए बहुत ही वैलुएबल हो सकता है।
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