हाल ही में कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा कि अदालत को पत्नी द्वारा दायर गुजारा भत्ता मांगने वाले आवेदनों के निपटान के लिए समय सीमा का पालन करना होगा ताकि भरण पोषण का दावा करने का अधिकार भ्रामक न हो। जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की पीठ फैमिली कोर्ट के एडिशनल प्रिंसिपल जज द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता/पत्नी को 15,000 रुपये प्रति महीने अंतरिम गुजारा भत्ता और 50,000 रुपये मुकदमेबाजी खर्च का आदेश दिया गया था।
क्या है पूरा मामला?
इस मामले में याचिकाकर्ता पत्नी है और प्रतिवादी उसका पति है। कथित अलगाव के लंबे समय बाद, प्रतिवादी/पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) और (ib) के तहत विवाह को रद्द करने की मांग करते हुए एक याचिका दर्ज की। याचिकाकर्ता ने मई 2020 तक दावा किया है कि वह काम कर रही थी और 35,000 कमा रही थी। कोविड-19 की शुरुआत के कारण उसे नौकरी से निकाल दिया गया था और खुद को बनाए रखने के लिए उसके पास कोई चारा नहीं था।
इसलिए, उसने एक्ट की धारा 24 का आह्वान करते हुए संबंधित न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर की, जिसमें प्रति माह 1,50,000 रुपये अंतरिम भरण-पोषण और 2,00,000 लाख रुपये एकमुश्त मुकदमा खर्च की मांग की गई थी। संबंधित न्यायालय ने अपने आदेश द्वारा 15,0000 /- अंतरिम भरण-पोषण और 50,000 रुपये एकमुश्त मुकदमेबाजी व्यय का भुगतान करने का निर्देश देते हुए एक आदेश पारित किया।
हाई कोर्ट का आदेश
हाई कोर्ट के समझ सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या याचिकाकर्ता/पत्नी संबंधित न्यायालय द्वारा अधिनिर्णित भरण-पोषण में वृद्धि/संशोधन की हकदार है? हाई कोर्ट ने कहा कि धारा 24 के प्रावधान निर्देश देते हैं कि रखरखाव की मांग करने वाली धारा 24 के तहत दायर एक आवेदन को यथासंभव 60 दिनों के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि जहां तक संभव हो शब्द की यह व्याख्या की जा रही है कि न्यायालय कुछ मामलों में छह महीने बाद भी, दो साल, तीन साल या यहां तक कि आवेदन दाखिल करने के चार साल बाद भी आदेश पारित कर सकता है। भरण-पोषण के लिए उन आवेदनों पर विचार करने में यह देरी उस प्रावधान की आत्मा को ही विफल कर देगी जो उस पत्नी को सहायता देने के लिए है जो असंख्य परिस्थितियों में वैवाहिक घर को छोड़ देती है या छोड़ देती है। केवल, क्योंकि प्रावधान 60 दिनों के भीतर आवेदन के निपटान का निर्देश देता है, इसे न्यायालयों द्वारा इस हद तक नहीं बढ़ाया जा सकता है कि पत्नी उम्र के भरण-पोषण की राशि को नहीं देख पाएगी।
हाई कोर्ट ने कहा कि संबंधित न्यायालय के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि पत्नी द्वारा मांगे जाने पर पति के पास भरण-पोषण की मांग करने वाले आवेदनों के निपटान के लिए समय-सीमा का पालन किया जाए, ताकि भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार भ्रामक न हो। उपरोक्त के मद्देनजर पीठ ने याचिका की अनुमति दे दी और याचिकाकर्ता/पत्नी के रखरखाव को 15,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये और मुकदमेबाजी के खर्च को 50,000 से बढ़ाकर 1,00,000 रुपये कर दिया।
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