मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) की एक खंडपीठ ने चेन्नई में रह रही एक मां द्वारा अदालत के आदेश के अनुसार दो नाबालिग बच्चों की कस्टडी उनके पिता को सौंपने से इनकार करने के तरीके पर हैरानी और नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट के आदेशों के बाद पिता (जो एक अमेरिकी नागरिक भी है) ने 9 मार्च को चेन्नई में महिला के पिता के घर पर एक दर्जन पुलिस कर्मियों की उपस्थिति में अपने बच्चों से मिलने की कोशिश की, लेकिन अदालत के आदेशों का उल्लंघन करते हुए उसे घर में घुसने से रोक दिया गया। इसके बाद पति ने फिर कोर्ट का रूख किया, जिसके बाद अदालत ने महिला को फटकार लगाई है।
क्या है पूरा मामला?
‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, किरण चाव और उषा किरण ऐनी दोनों अमेरिकी नागरिकों की शादी 1999 में हुई थी और उनके दो बच्चे भी हैं। बाद में, आपसी झड़पों के बाद उषा 2020 में अपने बच्चों को वापस भारत लेकर चली आई। अपने पति के बार-बार अनुरोध और कानूनी नोटिस के बावजूद वह वापस अमेरिका नहीं लौटी। इसके बाद पति ने अदालत का रुख किया। कोर्ट ने पिता को बच्चों से मिलने का आदेश दिया था, लेकिन पत्नी ने अदालत की अवमानना करते हुए पति को बच्चों से मिलने की इजाजत नहीं दी।
पति ने कोर्ट में की शिकायत
जस्टिस एस वैद्यनाथन और जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की पीठ के समक्ष जब अदालत की अवमानना याचिका आई, तो वकील जी राजगोपालन ने कहा कि उनके मुवक्किल किरण चाव को उनके बच्चों से मिलने से रोका गया है। मां उषा किरण ऐनी कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रही है। उन्होंने कहा कि महिला अवज्ञाकारी रुख अपना रही है और आदेशों का पालन नहीं कर रही है।
चेन्नई में किलपौक के DCP ने किरण चावा को अपने दो बच्चों से मिलने में सहायता करने के लिए किए गए प्रयासों और प्रतिवादी, उसके पिता और भाई की प्रतिकूल प्रतिक्रिया का डिटेल्स देते हुए एक स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में पेश की।
रिपोर्ट में कहा गया है कि काफी बहस के बाद करीब चार घंटे के बाद एक सहायक आयुक्त के नेतृत्व वाली पुलिस टीम को उसके घर के अंदर जाने की अनुमति दी गई, लेकिन प्रतिवादी महिला के पिता और भाई ने बहुत अशिष्ट व्यवहार किया। उन्होंने याचिकाकर्ता और पुलिस टीम को गाली देना शुरू कर दिया।
इसने आगे कहा गया कि महिला बाद में शाम को तीन वकीलों के साथ घर पर आ गई और याचिकाकर्ता और पुलिस से बहस करने लगी। पुलिस ने अदालत को बताया कि जब याचिकाकर्ता ने उससे बच्चों को दिखाने और सहयोग करने का अनुरोध किया, तो उसने उसे घर के अंदर जाने से मना कर दिया। इतना ही नहीं उसने बच्चों को घर की पहली मंजिल पर अंधेरे में बंद कर दिया।
जब याचिकाकर्ता ने बच्चों को देखने के लिए सीढ़ियां चढ़ने की कोशिश की, तो महिला ने उन्हें रोक लिया और पुलिस को “गुंडे” कहा। साथ ही उनके खिलाफ मामला दर्ज करने की धमकी दी। 11 और 13 मार्च को भी पुलिस ने याचिकाकर्ता को अपने बच्चों को देखने और अदालत के आदेश को लागू करने में मदद की, लेकिन प्रयास व्यर्थ गए क्योंकि महिला ने एक उद्दंड और जुझारू रुख अख्तियार कर लिया था। पुलिस भी खंडपीठ के आदेश के अनुसार, महिला और उसके बच्चों को 13 मार्च को अदालत में पेश नहीं कर सकी, क्योंकि पत्नी हंगामा करने लगी।
कोर्ट का आदेश
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका और प्रतिवादी महिला को बच्चों की कस्टडी पिता को सौंपने का निर्देश देने वाली अवमानना याचिकाओं पर दिए गए आदेशों की ओर इशारा करते हुए पीठ ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि जिस तरह से वह बच्चों के हितों की परवाह किए बिना आदेशों की अवहेलना कर रही है वह खतरनाक है। बच्चों का पासपोर्ट पहले ही समाप्त हो चुका है।
इस बीच, महिला का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वरिष्ठ वकील वी प्रकाश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका पोस्ट कर दी है और पुलिस को तब तक कोई कठोर कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है। इसके बाद बेंच ने महिला को फटकार लगाते हुए मामले को शुक्रवार तक के लिए टाल दिया।
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