उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ओर से निर्धारित टाइमलाइन को छुपाने के कारण एक वैवाहिक विवाद में पत्नी पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि महिला ने अनुकूल आदेश प्राप्त करने के लिए अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया। इसके साथ ही मामले को निस्तारित करने के लिए फैमिली कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक, याचिकाकर्ता-पत्नी ने रिट याचिका दायर की थी, जिसमें फैमिली कोर्ट, झारसुगुड़ा के आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने उसके पति और उसके बीच समझौता के सत्र आयोजित करने के लिए उसकी ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार फैमिली कोर्ट, जयपुर से ट्रांसफर किए जाने पर मामले को जज, झारसुगुड़ा की फाइल पर दर्ज किया गया था।
याचिकाकर्ता ने यह आरोप लगाया गया था कि फैमिली कोट, झारसुगुड़ा को मामला प्राप्त होने के बाद याचिकाकर्ता ने सुलह के लिए गंभीर प्रयास किए। लेकिन फैमिली कोर्ट के जज ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
दूसरी तरफ, विरोधी पक्ष (पति) ने तर्क दिया कि हालांकि याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में ट्रांसफर आवेदन का उल्लेख किया था, उसने सिविल कार्यवाही के निस्तारण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदान की गई टाइमलाइन को आसानी से छुपा दिया। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रिट याचिका के साथ संलग्न नहीं किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट
ट्रांसफर आवेदन का निस्तारण करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोनों पक्ष मेडिकल प्रोफेशनल होने के नाते, ट्रांसफरी कोर्ट पार्टियों को वर्चुअल मोड के माध्यम से या कम से कम अपने संबंधित वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति देगा, जब तक कि परीक्षण शुरू नहीं हो जाता है और उनकी उपस्थिति आवश्यक नहीं हो जाती है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सुलह के लिए विपरीत पक्ष की व्यक्तिगत उपस्थिति की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था जिसे खारिज कर दिया गया था। साथ ही मामले को वर्चुअल सुलह के लिए पोस्ट कर दिया गया था। इसके बाद लगातार दो तारीखों पर कोई भी पक्ष सुलह के लिए वर्चुअल माध्यम से पेश नहीं हुआ।
याचिकाकर्ता के लिए कहा गया था कि वह पहली डेट को उपस्थित नहीं हो सकी, क्योंकि उसे लिंक उपलब्ध नहीं कराया गया था। लेकिन कोर्ट ने इस तरह की दलील को खारिज कर दिया क्योंकि फैमिली कोर्ट के सामने उसके द्वारा ऐसी कोई आपत्ति नहीं जताई गई थी।
ऑर्डर शीट पर विचार करने के बाद, कोर्ट ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने पहले भी पार्टियों के बीच सुलह कराने का प्रयास किया था। लेकिन सुलहकर्ता ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति के कारण समझौता नहीं हो सका।
हाई कोर्ट का आदेश
अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता ने साफ हाथों से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया नहीं है। हालांकि, रिट याचिका में यह कहा गया था कि सिविल कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने फैमिली कोर्ट, झारसुगुड़ा में ट्रांसफर किया है। हालांकि, वर्चुअल मोड के माध्यम से पार्टियों की उपस्थिति या मामले के निपटान के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित टाइमलाइन के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया था।
लाइव लॉ के मुताबिक यह देखते हुए कि महिला ने अनुकूल आदेश प्राप्त करने के लिए अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया, जस्टिस कृष्ण राम महापात्रा की सिगंल जज खंडपीठ ने कहा कि यह अदालत पीड़ा के साथ यह कह रही है कि याचिकाकर्ता ने इस अदालत के समक्ष रिट याचिका में भौतिक तथ्यों को छुपाया है, विशेष रूप से माननीय सुपीम कोर्ट द्वारा निर्धारित टाइमलाइन। अंतरिम आवेदन को आगे बढ़ाते समय भी न्यायालय के ध्यान में यह नहीं लाया गया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर आवेदन का निस्तारण करते हुए यह पाया है कि स्थानांतरी न्यायालय को वैवाहिक कार्यवाही को छह महीने के भीतर निस्तारित करने का प्रयास करना चाहिए।
अदालत ने आगे कहा कि उपरोक्त के मद्देनजर, यह कभी नहीं कहा जा सकता है कि फैमिली कोर्ट के विद्वान जज ने सुलह के लिए कोई प्रयास नहीं किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने स्वयं सुलह के लिए सहयोग नहीं किया। अजीब तरह से याचिकाकर्ता घड़ियाली आंसू बहा रही है और सुलह के लिए कोई प्रयास नहीं करने के लिए फैमिली कोर्ट को दोषी ठहराने की कोशिश कर रही है। कोर्ट ने इस तथ्य पर गहरी नाराजगी व्यक्त की कि याचिकाकर्ता ने मामले के निस्तारण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित टाइमलाइन को छुपाने का प्रयास किया। इस प्रकार, रिट याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे विपरीत पक्ष (पति) को भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
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