दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत पत्नी के प्रति क्रूरता के अपराध के लिए वैवाहिक मामलों में आरोपी के रूप में नाबालिगों सहित अपने पति के सभी रिश्तेदारों को फंसाने की महिलाओं में प्रवृत्ति बढ़ रही है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस वी कामेश्वर राव और अनूप कुमार मेंदिरत्ता की खंडपीठ ने कहा कि ऐसी कई शिकायतें अंततः पार्टियों द्वारा अदालत के बाहर सुलझा ली जाती हैं। अदालत ने इसके साथ ही एक ऐसे व्यक्ति को राहत दी, जिसकी दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के रूप में नियुक्ति को स्थगित कर दिया गया था, क्योंकि उसका नाम धारा 498A के तहत अपराध के लिए दायर की गई पहली सूचना रिपोर्ट (FIR) में दर्ज किया गया था।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता ने कर्मचारी चयन आयोग द्वारा जारी भर्ती नोटिस दिनांक 22 अप्रैल, 2017 के जवाब में सब-इंस्पेक्टर के पद के लिए आवेदन किया था। उसने मई 2017 और सितंबर 2018 के बीच आयोजित सभी आवश्यक परीक्षाओं को सफलतापूर्वक पास भी कर लिया। लेकिन दिल्ली के पुलिस कमिश्नर ने उसकी नियुक्ति को स्थगित रखने का फैसला किया, क्योंकि उनका नाम उसकी भाभी द्वारा उनके भाई और पूरे परिवार के खिलाफ दर्ज FIR में शामिल था।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह संबंधी विवादों के संदर्भ में FIR दर्ज होने की स्थिति में महिलाओं में नाबालिगों सहित सभी रिश्तेदारों को शामिल करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसी कई शिकायतें अंततः परिवारों/पति-पत्नी के बीच सुलझा ली जाती हैं। कोर्ट ने कहा कि हालांकि अधिनियम के हितकारी उद्देश्य को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि चार्जशीट में पुलिस ने कॉलम 12 में उसके नाम का उल्लेख किया था और लेकिन किसी भी कथित अपराध में उसकी संलिप्तता का कोई सबूत नहीं था।
कोर्ट ने कहा, “यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता को चार्जशीट के कॉलम 12 में रखा गया था और तथ्य यह है कि जांच के बाद सबूतों ने अपराधों में उसकी संलिप्तता स्थापित नहीं की, उसे तार्किक रूप से नियुक्ति के लिए उपयुक्त माना जाना चाहिए था। अदालत ने आगे कहा कि केवल FIR में नाम होने से दोषी नहीं माना जा सकता है।
इसके अलावा, पीठ ने कहा कि मामले में याचिकाकर्ता की संलिप्तता को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं होने के बावजूद, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने उसे कोई राहत नहीं दी। अदालत ने कहा, “केवल FIR में नाम लेने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता है कि नियोक्ता एक आवेदक के रोजगार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित रख सकता है, भले ही आवेदक को चार्जशीट के कॉलम 12 में रखा गया हो और उसे तलब नहीं किया गया हो।”
कोर्ट ने आगे कहा कि कैट और पुलिस कमिश्नर सिर्फ इस तथ्य से प्रभावित थे कि याचिकाकर्ता का नाम FIR में था। इन टिप्पणियों के साथ ही पीठ ने अधिकारियों को याचिकाकर्ता को नियुक्त करने का आदेश दिया।
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