एक महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उसके द्वारा उसका गला घोंटने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। हालांकि, कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने हाल ही में मामले की सुनवाई के दौरान भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत दायर महिला की शिकायत को खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि महिला कभी ससुराल वालों के साथ रही ही नहीं, इसलिए क्रूरता का सवाल ही नहीं उठता।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं पर IPC की धारा 498A/406/325/307/376/511/120B/
हाई कोर्ट
जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) ने कहा कि शिकायत के ज्ञापन में और CrPC की धारा 164(3) के तहत दिए गए बयानों में शिकायतकर्ता के बयानों में स्पष्ट रूप से असंगति है। जस्टिस दत्त की सिंगल जज पीठ ने पाया कि प्रतिवादी ने CrPC की धारा 164 के अपने बयान में कहा है कि उसने 20 जनवरी 2015 को अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था, लेकिन शिकायत के अपने ज्ञापन में उसने दावा किया कि उसके ससुराल वालों ने दिनांक 22 जनवरी 2015 को उसकी गला घोंटकर हत्या कर दी।
कोर्ट ने कहा, “इस प्रकार, रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता की याचिका में शिकायतकर्ता का बयान CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए उसके बयानों के विपरीत है। यह एक उपयुक्त मामला है जहां शिकायतकर्ता की अंतर्निहित शक्ति है। अदालत/कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए अदालत का प्रयोग किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में आरोपों में कोई दम नहीं है और कोई सामग्री मौजूद नहीं है जिससे प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध में याचिकाकर्ताओं की मिलीभगत का पता चलता है और इस तरह की कार्यवाही यह मामला रद्द करने योग्य है।”
पीठ ने आगे कहा, “धारा 164 CrPC के तहत शिकायतकर्ता के बयान सहित रिकॉर्ड पर सामग्री स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि विपरीत पक्ष/पत्नी कभी भी याचिकाकर्ताओं के साथ नहीं रहती थी और इस प्रकार IPC की धारा 498A के तहत परिभाषित/निर्धारित क्रूरता के साथ होने का सवाल ही नहीं उठता है। उक्त अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक सामग्री वर्तमान मामले में मौजूद नहीं है। इस प्रकार यह देखा गया है कि केस डायरी और चार्जशीट की सामग्री प्रथम दृष्टया अभियुक्तों/याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञेय अपराध का मामला नहीं बनती है जैसा कि आरोप लगाया गया है और अभियुक्तों/याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कोई सामग्री नहीं है।”
इस प्रकार पीठ ने प्रकाश सिंह बादल बनाम पंजाब राज्य एआईआर 2007 एससी 124 के मामले पर भरोसा किया और दोहराया कि ये देखना होगा कि प्रतिवादी द्वारा लगाए गए आरोपों में दम है या नहीं। याचिकाकर्ताओं के साथ कभी नहीं रहने के कारण उनके दावे में कोई दम नहीं था, प्रतिवादी की शिकायत निराधार पाई गई और इस तरह खारिज कर दी गई।
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