इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने पिछले हफ्ते एक आरोपी के खिलाफ दायर रेप केस और पॉक्सो (POCSO) मामले को तब खारिज कर दिया, जब पीड़िता ने कहा कि आरोपी ने उसके खिलाफ कोई यौन अपराध नहीं किया है और खुद उसकी मां ने आरोपी से पांच लाख रुपये ऐंठने के लिए फर्जी मामला दायर करवाई थी। महिला ने बताया कि आरोपी अब उसका पति है। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने यह भी कहा कि पीड़िता की उम्र 18 साल से अधिक है। इसलिए, आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत कोई मामला नहीं बनता है।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट अभियुक्त द्वारा धारा 482 CrPC के तहत चार्जशीट, संज्ञान आदेश, गैर-जमानती वारंट आदेश और उसके खिलाफ मामले में पूरी कार्यवाही को रद्द करने के उद्देश्य से दायर एक याचिका का निस्तारण कर रही थी। आवेदक-आरोपी के वकील का तर्क था कि CrPC की धारा 164 के तहत अपने बयान में पीड़िता ने कहा है कि उसने आवेदक से स्वेच्छा से शादी की थी और वह उसकी पत्नी के रूप में उसके साथ रह रही है।
उसके बाद वकील ने कोर्ट को बताया गया कि इस मामले को लेकर पक्षकारों के बीच समझौता भी हो गया था, क्योंकि पीड़िता और आवेदक पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं और मेडिकल जांच के अनुसार पीड़िता की उम्र भी 18 साल से अधिक है। अतिरिक्त सत्र जज/विशेष जज (पॉक्सो एक्ट), कोर्ट नंबर 1, बरेली की अदालत ने भी पक्षकारों के बीच हुए समझौते की पुष्टि की।
हाई कोर्ट
शुरुआत में अदालत ने प्रवीण कुमार सिंह @ प्रवीण कुमार और 2 अन्य बनाम यूपी राज्य 2023 LiveLaw (AB) 120 और ओम प्रकाश बनाम यूपी राज्य और अन्य 2023 लाइवलॉ (AB) 104 के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह देखा गया था कि आरोपी और पीड़ित के बीच हुए समझौते के आधार पर बलात्कार के मामले या पॉक्सो एक्ट को रद्द करना कानूनी रूप से अस्वीकार्य है। हालांकि, अदालत ने यह भी पाया कि मेडिकल टेस्ट के अनुसार, पीड़िता पर कोई चोट नहीं पाई गई, और पीड़िता के खिलाफ यौन उत्पीड़न के बारे में कोई राय नहीं दी गई, और इसके बावजूद, पुलिस ने जांच के दौरान एकत्र सामग्री को देखे बिना नियमित तरीके से चार्जशीट दायर की।
इसे देखते हुए, न्यायालय ने कहा कि यदि रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री से कोई मामला नहीं बनता है तो पॉक्सो एक्ट के साथ-साथ धारा 376 IPC के तहत कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है। नतीजतन, अदालत ने धारा 363, 366, 376 (2N), 506 आईपीसी और 6 पॉक्सो एक्ट के तहत मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया। अदालत ने इस प्रकार कहा कि हालांकि CrPC में धारा 320 CrPC में उल्लिखित के अलावा किसी भी अपराध को कंपाउंड करने के लिए कोई विशिष्ट प्रावधान शामिल नहीं किया गया है, ऐसे मामले अभी भी हो सकते हैं जहां पीड़ित आरोपी के आचरण को माफ करने के लिए तैयार हो, भले ही आरोप नॉन कंपाउंडेबल हों। इस संबंध में अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में कोर्ट CrPC की धारा 482 के तहत निहित शक्ति का प्रयोग कर सकता है, भले ही अपराध 320 CrPC के तहत गैर-समाधानीय हो।
कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि हाईकोर्ट को आम तौर पर केवल समझौते के आधार पर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराध से जुड़ी आपराधिक कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इस पृष्ठभूमि में अदालत ने कहा कि पीड़िता के CrPC की धारा 164 के बयान के साथ-साथ पीड़िता की रेडियोलॉजिकल जांच के अनुसार कि उसकी उम्र 18 साल से अधिक है और उसने आवेदक-आरोपी से जुलाई 2014 में अपनी मर्जी से शादी की थी।
इसके साथ ही अदालत ने अपने फैसले के आखिरी में CrPC की धारा 164 के बयान पर भरोसा करते हुए कहा कि रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री से आरोपी के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। इसे देखते हुए कोर्ट ने मामले की पूरी कार्यवाही निरस्त कर दी।
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